गुणों की खान, आर.पी. सिंह महान

धांधली के आरोप में 2013 में किए गए थे निलम्बित

वक्त के साथ बदलने में देर नहीं लगाते

खेलपथ संवाद

लखनऊ। हर इंसान में कुछ न कुछ खूबियां होती हैं, उत्तर प्रदेश के निदेशक खेल आर.पी. सिंह तो गुणों की खान हैं। वह हर समयकाल में अपनी कारगुजारियों से चर्चा में रहे हैं। यद्यपि सितम्बर 2013 में उन्हें धांधली के आरोप में उप-निदेशक खेल के पद से हाथ धोना पड़ा था लेकिन चाटुकारिता में सिद्धहस्त ठाकुर साहब ने हारी बाजी जीतकर तत्कालीन खेल मंत्री नारद राय को स्तब्ध कर दिया था।

उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी की सल्तनत के समय डॉ. आर.पी. सिंह ने मुख्यमंत्री अखिलेश यादव को अपना मुरीद बनाकर निदेशक खेल का पद हासिल किया तो योगी शासन में वह अपनी तिकड़मबाजी से अपना रसूख जिन्दाबाद रखने में सफल हैं। भारतीय जनता पार्टी के यूपी की सल्तनत में काबिज होने के बाद खेल हल्के में आर.पी. के हटने के कयास लगाए जा रहे थे लेकिन यहां भी उन्होंने अपनी गोटियां फिट कर लीं। गोटियां फिट होनी ही थीं क्योंकि खेल निदेशक आर.पी. सिंह जो कर सकते हैं, वह शायद कोई दूसरा नहीं कर सकता।

कल की ही बात है जब के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में कोरोना संक्रमण का हालचाल जानने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को जाना था। योगीजी की आवभगत में ठाकुर साहब ने कोई कोर कसर नहीं छोड़ी। जो काम चपरासियों का था वह काम सभी ने निदेशक खेल को करते देखा। 2013 में जिस शख्स के दामन पर अनगिनत दाग लगने के चलते निलम्बित किया गया था, वही आर.पी. सिंह इन दिनों साढ़े चार सौ अंशकालिक खेल प्रशिक्षकों के पेट पर लात मारने के कसूरवार हैं। 2013 में आर.पी. पर लखनऊ के गोमती नगर स्टेडियम टूटने के बाद वहां से निकले लाखों रुपये का स्क्रैप अवैध तरीके से बेचने, स्वीमिंग पूल में फिल्ट्रेशन प्लांट को उतारने के लिए शासन से मिले रुपये गायब करने समेत कई गंभीर आरोप लगे थे।

तब के खेल मंत्री नारद राय ने मीडिया को बताया था कि लखनऊ में तैनाती के दौरान आर.पी. सिंह पर सरकारी सम्पत्ति का दुरुपयोग करने, खेल छात्रावासों के खिलाड़ियों को अपनी मनमर्जी के हिसाब से खेलने को मजबूर करने के आरोप हैं। इतना ही नहीं लखनऊ के क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी पद पर रहने के दौरान उन पर छात्रावास के खिलाड़ियों के खाने में अनियमितता बरतने व घटिया सामग्री का प्रयोग कराने के भी आरोप लगे थे। के.डी. सिंह बाबू स्टेडियम में क्षेत्रीय क्रीड़ाधिकारी की तैनाती के दौरान मानक के अनुसार पर्यवेक्षण कार्य न करने व शासकीय कार्यों में लापरवाही बरतने की भी गंभीर शिकायतें थीं। जो भी हो जोड़तोड़ में सिद्धहस्त आर.पी. सिंह न केवल सभी आरोपों से बेदाग बच निकले बल्कि आज वह उत्तर प्रदेश के निदेशक खेल और हॉकी  उत्तर प्रदेश के सचिव हैं।

मजे की बात तो यह है कि जो आर.पी. सिंह उत्तर प्रदेश में हॉकी का भला नहीं कर सके वे फिलवक्त हॉकी इंडिया की हाई परफारमेंस एण्ड डेवलपमेंट कमेटी के चेयरमैन हैं। पाठकों को हम बता दें कि यूपी में हॉकी की बदहाली के चलते प्रदेश की अनगिनत खेल प्रतिभाएं दूसरे राज्यों को पलायन कर चुकी हैं। आर.पी. सिंह बेशक अच्छे खिलाड़ी रहे हों लेकिन अच्छे प्रशासक तो कतई नहीं कहे जा सकते। यह अलग बात है कि उत्तर प्रदेश में जिनको हॉकी चलानी है, उन्हें तो ठाकुर साहब की राम-राम करनी ही होगी। आर.पी. सिंह प्रशासकीय अधिकारी हैं, ऐसे में इनका निजी संगठनों का पदाधिकारी होना जांच का विषय है। लम्बे समय से हॉकी उत्तर प्रदेश की अलम्बरदारी कर रहे आर.पी. सिंह बात-बात में कहते हैं कि एक बार फिर वह उत्तर प्रदेश को हॉकी का गढ़ बनाएंगे, मैं जानना चाहता हूं कि वह शुभ दिन कब और कैसे आएगा?

साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों की बाट लगाने के बाद हॉकी तो क्या उत्तर प्रदेश अब शायद ही किसी खेल का गढ़ पाए। हां, उत्तर प्रदेश में जिस तरह की चाटुकारिता को बढ़ावा मिल रहा है उससे वह दिन दूर नहीं जब मैदानों में खिलाड़ियों की जगह चौपाए विचरण करते नजर आएंगे। यह दुख की बात है बलिया वाले पंडित जी जहां आर.पी. की अंधभक्ति का शिकार हैं वहीं मुख्यमंत्री योगीजी गोरखधाम मंदिर के द्वारिका तिवारी की बातों को ही पत्थर की लीक मान लेने की भूल कर बैठते हैं।

भरोसेमंद सूत्र बताते हैं कि आर.पी. सिंह का मीडिया मैनेजमेंट बहुत अच्छा है, इसी वजह से वह गलतियां करने के बाद भी चैन की बांसुरी बजाते हैं। मैं इसे सच नहीं मानता क्योंकि राजधानी में बैठा खेल पत्रकार किसी का पक्षकार कैसे हो सकता है? यदि सूत्रों की ही बात सच है तो ऐसे खेल पत्रकारों को मैदानों की खाक छानने की बजाय पत्रकारिता छोड़ देनी चाहिए। अफसोस और दुख की बात है कि प्रदेश के साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों का अहित करने वाला बहुरुपिया मीडिया की नजर से कैसे बच रहा है।    

 

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