अनुशासन की सीख देते भारतीय अखाड़े

पहलवानों की आपराधिक संलिप्तता से कुश्ती का बड़ा नुकसान
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
कुश्ती सिर्फ खेल ही नहीं भारतीय संस्कृति का अभिन्न दस्तूर है। यही खेल ऐसा है जोकि गांव-गांव खेला जाता है। पिछले महीने दिल्ली के छत्रसाल अखाड़े में जो हुआ उससे न केवल अखाड़े कलंकित हुए बल्कि पहलवानों के दामन पर भी गहरे दाग लग गए हैं। जांच चल रही है, ऐसे में किसी को अभी से गुनहगार ठहराना उचित नहीं है। मामले को देखें तो यह खूनी खेल कई तरह के इशारे करता है।
कुश्ती की जब भी बात होती है हरियाणा की माटी धन्य हो जाती है, वजह यहां के युवा पहलवानों की शानदार उपलब्धियां मानी जा सकती हैं। हरियाणा की माटी से निकलने वाले पहलवानों ने देश-दुनिया में अपनी ताकत और कुश्ती का डंका बजाने का काम किया है। मास्टर चंदगीराम की बात हो या फिर पहले अर्जुन अवार्डी पहलवान उदयचंद की बात हो, दुनिया में इनका नाम है। 
कुश्ती को आगे बढ़ाने का काम योगेश्वर दत्त और सुशील कुमार ने किया लेकिन हजारों पहलवान ऐसे हैं, जो अखाड़े में नामी पहलवान तो हुए, लेकिन उनको खास पहचान नहीं मिली। खास बात यह है कि पहलवानों को कई दशक पहलवानी करने के बाद रोजगार नहीं मिल पाता। यही कारण है कि पहलवान आखिर में अखाड़ा संचालन करते हैं। इनमें से कई गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त हो जाते है, जिसके कारण आपराधिक गतिविधियों में संलिप्तता शुरू हो जाती है। यही चुनिंदा लोग कुश्ती की पवित्रता में दाग लगाने का काम करते हैं।
कुश्ती और पहलवान का अनुशासन से गहरा नाता है। पहलवान काफी अनुशासित होता है। उदाहरण के तौर पर दिल्ली में कैप्टन चांदरूप अखाड़ा, मास्टर चंदगीराम अखाड़ा, गुरु हनुमान, महाबली सतपाल और हरियाणा में कई ऐसे अखाड़े हैं, जहां संचालकों का अनुशासन पर जोर रहता था। अर्जुन अवार्डी अशोक गर्ग बताते हैं कि कैप्टन चांदरूप के अखाड़े में पहलवानी करते थे। गुरुजी सेना में कैप्टन थे, अनुशासन से कोई समझौता नहीं रहता था। उनके सान्निध्य में अभ्यास कर सैकड़ों पहलवानों ने अंतरराष्ट्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बनाई। अखाड़े में नंबर-वन के पहलवान हमेशा से रहे हैं। अगर कोई पहलवान अनुशासन तोड़ता तो उसे अखाड़े से बाहर कर दिया जाता था। गुरुजी के सामने से गुजरना भी उनके लिए सम्भव नहीं होता था। 
अखाड़ा संचालक ईश्वर दहिया का कहना है कि पहलवान की जिंदगी एक दांव जैसी होती है। पहले पहलवान बनाने के लिए परिवार को घर खाली करना पड़ता है। कई दशक तक पहलवानी करने के बाद जब उनको रोजगार नहीं मिलता तो परिवार को गहरा झटका लगता है। कई बार पहलवान न चाहकर भी गैरकानूनी गतिविधियों में संलिप्त हो जाते हैं। कई बार ऐसा होता है कि उनका कोई दोष नहीं होता, लेकिन संगत उनको आपराधिक गतिविधियों में धकेल देती है। लेकिन चुनिंदा लोगों को छोड़ दिया जाए तो अखाड़े और पहलवानों की छवि कायम है। 
ओलम्पिक में जिन आठ पहलवानों ने देश के लिए कोटा हासिल किया है, सभी हरियाणा से हैं। उनके लिए यह गर्व की बात है। रियो ओलम्पिक में साक्षी मलिक देश को पहला मेडल दिलाने वाली महिला पहलवान बनीं। इससे पहले सुशील और योगेश्वर दत्त ने ओलम्पिक में मेडल जीते थे। कुश्ती सम्मानित है और आगे भी रहेगी। 
जाट कॉलेज अखाड़े में कोच सुखवेंद्र ने अपने ही साथी कोच मनोज मलिक, उसकी पत्नी, मासूम बेटे, एक महिला पहलवान, दो कोच की गोलियों से भूनकर हत्या कर दी थी। अखाड़े में होने वाली कमाई को लेकर हत्याकांड का कारण सामने आया था। लेकिन जो भी हुआ, कुश्ती का नुकसान हुआ। इसी तरह हिंद केसरी पहलवान सुरेश अखाड़ा संचालक पर अपने ही अखाड़े के पहलवान की हत्या का आरोप है। रामकरण अखाड़ा संचालक पर भी हत्या का आरोप है। बहुअकबरपुर गांव का रहने वाला संजीत बिद्रो भी कुश्ती का अच्छा खिलाड़ी था, लेकिन बाद में अपराध जगत में वह पुलिस के लिए काफी सिरदर्द बन गया था। पहलवानी छोड़कर उसने खुद का गैंग बना लिया था।
 

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