सॉफ्ट पावर दिखाने का जापान का सपना हुआ चूर-चूर!

टोक्यो ओलम्पिकः क्या जापान के लिए सचमुच बन गया है ‘अभिशाप’
टोक्यो।
जापान के यह ऐलान कर देने के बाद कि अगले ओलम्पिक खेलों में विदेशी दर्शकों को नहीं आने दिया जाएगा, जापान में ये आम धारणा बन रही है कि इन खेलों का आयोजन देश के लिए अभिशाप साबित होने जा रहा है। जापानी मीडिया में चल रही चर्चाओं में पिछले साल की गई वित्त मंत्री तारो असो की एक टिप्पणी का अब बार-बार हवाला दिया जा रहा है। असो ने कहा था कि 2020 का ओलम्पिक 'अभिशप्त' हो गया है। उस समय कोरोना महामारी का पहला दौर आया था, जिसकी वजह से ओलम्पिक खेलों को स्थगित करने का फैसला करना पड़ा।
ओलम्पिक जैसे बड़े खेल आयोजनों के साथ मेजबान देश में इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास और आर्थिक मुनाफे की आशा रहती है लेकिन अब अनुमान लगाया जा रहा है कि जापान को 23 अरब डॉलर का चूना लग सकता है। जापान ने टोक्यो ओलम्पिक्स के लिए बड़े पैमाने पर निर्माण किए हैं। उन पर भारी खर्च आया है। लेकिन विदेशी दर्शकों के न आने से विदेशी मुद्रा की आमद की जो आशा थी, वह अब टूट गई है। आशंका यह जताई जा रही है कि कोरोना संक्रमण की हालत अगर अभी जैसी बनी रही, तो देशी दर्शक भी कम ही स्टेडियम में आएंगे। एक अंदेशा यह भी है कि बहुत से विदेशी खिलाड़ी इस टूर्नामेंट से खुद को अलग कर लें। उसका असर टीवी से हासिल होने वाले राजस्व पर पड़ेगा।
कंसाई यूनिवर्सिटी से जुड़े विशेषज्ञ कातसुहिरो मियामोतो ने एक वेबसाइट से कहा है कि अगर नुकसान 23 अरब डॉलर तक ही सीमित रहा, तो उसे राहत की बात मानी जाएगी। सबसे बुरी स्थिति तो यह हो सकती है कि जुलाई में तय ओलम्पिक को फिर टालना पड़े। जापान में अभी भी कोरोना संक्रमण से राहत नहीं मिली है।
अब यहां चर्चा है कि जापान पहले भी एक बार ‘अभिशप्त’ ओलम्पिक का सामना कर चुका है। 1940 में ओलम्पिक खेल टोक्यो में होने थे लेकिन 1939 में दूसरा विश्व युद्ध छिड़ गया, जिस कारण उन खेलों को स्थगित करना पड़ा था। दो और ऐसे मौके हुए, जब राजनीतिक विवादों के कारण ओलम्पिक खेलों की चमक चली गई थी। तत्कालीन सोवियत संघ के अफगानिस्तान में सेना भेजने के विरोध में अमेरिकी गुट के देशों ने 1980 में हुए मास्को ओलम्पिक का बहिष्कार कर दिया था। इसके जवाब में 1984 में अमेरिका के लॉस एंजिल्स शहर में हुए ओलम्पिक खेलों का सोवियत खेमे के देशों ने बायकाट किया था। इससे उन दोनों मौकों पर ओलम्पिक खेलों के आयोजकों को नुकसान हुआ।
जापान के प्रधानमंत्री योशिहिदे सुगा ने उम्मीद जताई है कि जुलाई तक स्थिति सुधर जाएगी और देसी दर्शक खेल देखने पहुंचेंगे। लेकिन देश में हाल में हुए जनमत सर्वेक्षणों में विशाल बहुमत ने इन खेलों के आयोजन को लेकर असहमति जताई है। एक ताजा सर्वे में 80 फीसदी लोगों ने सिर्फ देसी दर्शकों के सामने खेलों का आयोजन करने की योजना से असहमति जताई। विदेशों में भी जापान की ये योजना लोकप्रिय नहीं है। जापान प्रेस इंस्टीट्यूट की तरफ से चीन, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड और फ्रांस में कराए गए एक सर्वे में 70 फीसदी से ज्यादा लोगों ने कहा कि ओलम्पिक खेलों को कम से कम एक और साल के लिए स्थगित कर दिया जाना चाहिए।
जानकारों का कहना है कि पश्चिमी देश अभी भी कोरोना महामारी का सामना कर रहे हैं। इस माहौल में वहां के लोग खेलों में दिलचस्पी लेंगे, इसकी संभावना कम है। इस कारण उन देशों में टीवी प्रसारण अधिकार खरीदने वाली कम्पनियों को भारी नुकसान हो सकता है। जापानी मीडिया में छपी टिप्पणियों में कहा गया है कि ओलम्पिक खेलों का भव्य आयोजन कर जापान ने अपने सॉफ्ट पावर को दिखाने की जो मंशा संजोई थी, वह अब पूरी नहीं हो सकती है। दुनिया में अभी कोई ऐसे पावर को देखने के मूड में नहीं है। ऐसे में अगर खेल होते भी हैं, तब भी ये आयोजन पड़ चुके अभिशाप के साये से नहीं उबर पाएगा।

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