रोडवेज ने पिता की नौकरी छीनी, बेटी ने रचा इतिहास

मां-बाप और कोच ने बदला जीवन
वाहिद अली
मेरठ।
किसी खिलाड़ी के लिए ओलम्पिक तक का सफर तय करना आसान बात नहीं है। जुलाई में टोक्यो में होने जा रहे ओलम्पिक खेलों का टिकट हासिल करने वाली प्रियंका गोस्वामी का जीवन भी कठिनाइयों से भरा रहा है। रोडवेज ने प्रियंका के पिता परिचालक मदनपाल गोस्वामी की नौकरी छीन ली थी। प्रियंका ने पिता की नौकरी जाने के बाद कमजोर आर्थिक स्थिति और अन्य मुश्किलों का सामना कर ओलम्पिक तक का सफर तय किया है। 
2006 में मुजफ्फरनगर के बुढ़ाना क्षेत्र के सागड़ी गांव से मदनपाल गोस्वामी, पत्नी अनीता गोस्वामी और दोनों बच्चों कपिल व प्रियंका को लेकर मेरठ आ गए थे। पिता मदनपाल रोडवेज में परिचालक थे। मदनपाल का कहना है कि 2010 में रोडवेज के उच्चाधिकारियों ने मिलीभगत कर उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज करा दी और नौकरी से निलम्बित करा दिया। 
नौकरी की बहाली के लिए मदनपाल अधिकारियों के चक्कर काटते रहे। परिवार चलाने और बच्चों की पढ़ाई के लिए मदनपाल ने किराए पर टैक्सी चलाई, किराना स्टोर खोला और आटा चक्की चलाकर न केवल बच्चों को पढ़ाई जारी रखी बल्कि उन्हें खेलों के साथ जोड़ा।
प्रियंका ने कनोहरलाल गर्ल्स स्कूल और बीके माहेश्वरी से स्कूली शिक्षा पूरी की। बीए की पढ़ाई उसने पटियाला में की। इस दौरान पिता उसे हर माह जैसे-तैसे 4 से 5 हजार रुपये भेजते थे। पिता ने बताया प्रियंका एक समय का खाना खुद बनाती तो एक समय का खाना गुरुद्वारा के लंगर में खाती थी। 2011 में पहला पदक हासिल करने के बाद प्रियंका ने पीछे मुडकर नहीं देखा। पदक की मिलने वाली राशि से परिवार चलाया। 
प्रियंका का छोटा भाई कपिल गोस्वामी बॉक्सिंग में प्रदेश स्तर तक खेला है। आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण कपिल ने पटियाला में रहना छोड़ दिया और मेरठ लौट आया। फिलहाल, वह निजी कंपनी में नौकरी कर रहे हैं। प्रियंका ने फोन पर कहा कि उनके जीवन में माता-पिता व कोच गौरव त्यागी ने अहम भूमिका निभाई है। पापा ने घर का एक हिस्सा (घेर) बेचकर मुझे स्कूलिंग व स्टेडियम जाने के लिए स्कूटी दिलाई। मम्मी ने कभी टूटने नहीं दिया। 
पटियाला में 2014-15 में ग्रेजुएशन करने के बाद बेंगलूरू साईं सेंटर में चयन के बाद उसे निःशुल्क प्रशिक्षण मिलना शुरू हुआ। 2018 में खेल कोटे से रेलवे में क्लर्क की नौकरी मिल गई। प्रियंका ने कहा कि वह अपने पिता को फिर से नौकरी पर देखना चाहती हैं। जो गुनाह उन्होंने नहीं किया, उसकी सजा 11 साल से काट रहे हैं।

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