फुटबाल बना जांबाज दिव्यांग साइकिलिस्ट जलालुद्दीन

दिव्यांगों के मामले में सरकारी कथनी-करनी में बड़ा अंतर

काश! जलालुद्दीन का भी कोई होता गाड फादर!

श्रीप्रकाश शुक्ला

दरभंगा। भारत में दिव्यांगों की मदद और उन्हें समाज की मुख्य धारा में लाने की सरकारी कोशिशें इतनी निठल्ली हैं कि उनका लाभ दिव्यांगों तक पहुंचने की बजाय कागजों में ही दफन हो जाता है। दिव्यांगों को समान अवसर देने, उनके अधिकारों के संरक्षण तथा सहभागिता की बातों में जरा भी दम नहीं है, यही वजह है कि जलालुद्दीन जैसे लगभग ढाई करोड़ दिव्यांग देशवासी आज भी गुरबत में जी रहे हैं। इन्हें जवाबदेह अधिकारी सिर्फ आश्वासन का झुनझुना थमाकर अपने कर्तव्यों की इतिश्री कर लेते हैं।

दरभंगा जिले की सिरहुल्ली पंचायत का एक होनहार साइकिलिस्ट जलालुद्दीन अंसारी पिछले एक साल से बिहार सरकार से एक अदद साइकिल की मांग कर रहा है। नाकाबिल अधिकारियों की जलालत ने जलालुद्दीन के सपनों को पंख लगाने की बजाय उसकी अंतरराष्ट्रीय उड़ान को ही बाधित कर दिया है। जिस बिहार ने एक सामान्य साइकिल चलाने वाली लड़की ज्योति कुमारी के प्रदर्शन को असामान्य मानते हुए उसे शिखर पर पहुंचा दिया उसी बिहार के जांबाज साइकिलिस्ट जलालुद्दीन को फुटबाल बना दिया गया है।

दिव्यांग जलालुद्दीन बिहार का असामान्य साइकिलिस्ट है। उसे सरकारी मदद की दरकार है लेकिन उसका कोई गाड फादर न होने के चलते निकम्मा शासकीय तंत्र उसकी भावनाओं और उम्मीदों से लगातार खेल रहा है। 31 दिसम्बर, 2011 को दरभंगा में आयोजित साइकिल प्रतियोगिता में एक पैर से साइकिल चलाकर 16 सौ सामान्य प्रतिभागियों के बीच जब जलालुद्दीन ने 14वां स्थान प्राप्त किया था तब तत्कालीन जिलाधिकारी दरभंगा आर. लक्ष्मणन ने उसे सर आंखों पर बिठा लिया था। होनहार दिव्यांग साइकिलिस्ट को न केवल पुरस्कृत किया गया बल्कि उसे सरकारी मदद का भरोसा भी मिला था लेकिन समय बीतने के साथ ही जांबाज साइकिलिस्ट जलालुद्दीन को बिसरा दिया गया। जलालुद्दीन के जांबाज प्रदर्शन की दरभंगा के तत्कालीन डीएम संतोष मल्ल व डॉ. चंद्रशेखर भी प्रशंसा कर चुके हैं।

खेलपथ से दूरभाष पर हुई बातचीत में निराश जलालुद्दीन बताता है कि उसे सहयोग के आश्वासन तो खूब मिले लेकिन पिछले एक साल से साइकिल की मेरी मांग सिर्फ कागजों में ही दौड़ रही है। बिहार में दिव्यांगों के सबसे बड़े पैरोकार डा. शिवाजी कुमार भी जलालुद्दीन के लिए कुछ भी नहीं कर सके। जलालुद्दीन ने साइकिल प्रतियोगिता में देश-विदेश में भाग लेने के लिए सांसद, विधायक सहित जिला व प्रखंडस्तरीय अधिकारियों के लगातार द्वार खटखटाये लेकिन किसी ने उसकी कोई मदद नहीं की। आज भी उसकी मां रजिया खातून और पिता मोहम्मद निजामुद्दीन बिस्कुट बेचकर विभिन्न प्रतियोगिताओं में भाग लेने के लिए उसे बाहर भेजते रहते हैं।

जलालुद्दीन एक पैर से साइकिल चलाकर बिहार के लोगों को प्रेरणा दे रहा है। जलालुद्दीन वर्ष 2015 में तत्कालीन जिलाधिकारी कुमार रवि, एसएसपी मनु महाराज और नगर आयुक्त महेंद्र कुमार के साथ भी साइकिल रेस में भाग ले चुका है। एक पैर से दिव्यांग होने के बावजूद उस प्रतियोगिता में जलालुद्दीन दूसरे नम्बर पर आया था।

जलालुद्दीन में प्रतिभा है और कुछ विशेष कर गुजरने का जुनून भी है लेकिन एक अदद साइकिल के अभाव में वह अपने सपनों को पंख नहीं लगा पा रहा। बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने हाल ही इंटर और स्नातक करने वाली बेटियों की आर्थिक मदद की शुरुआत कर अन्य राज्यों के लिए नजीर पेश की है। बेहतर होता उनकी नजर जलालुद्दीन जैसे होनहार दिव्यांगों की ओर भी जाती। जलालुद्दीन में बिहार को गौरवान्वित करने की अदम्य इच्छाशक्ति है ऐसे में उसकी मदद हर हाल में होनी चाहिए।

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