भारत का सदाबहार मुक्केबाज अमित पंघाल

बड़े भाई ने की आगे बढ़ने में मदद
बाक्सिंग रिंग में जय बजरंगबली के उद्घोष के साथ उतरता है
श्रीप्रकाश शुक्ला

आखिर परिवार की त्याग-तपस्या रंग लाई है, अभावों की तपिश ने अमित पंघाल के घूसों में इतनी ताकत भर दी कि वह टोक्यो ओलम्पिक के लिये अपना टिकट बुक करा चुका है। जब ओलम्पिक के लिये मुकाबला जीतने की खबर आई तो उसके गांव में होली से पहले ही रंगों की रंगत नजर आई। जब छोटी-सी खेती में गुजर-बसर नहीं हुई तो अमित के पिता विजयेंद्र सिंह ने ट्रक चलाकर परिवार की जरूरतें पूरी कीं। भाई अजय के भी बॉक्सर बनने के सपने थे। 
जब अमित दस साल का था तो अजय साइकिल पर बैठाकर उसे अभ्यास के लिये बॉक्सिंग एकेडमी ले जाया करता था। मगर जब अजय ने देखा कि अमित में ज्यादा प्रतिभा है और बड़ी संभावना है तो उसने अपने अरमानों का गला घोटकर भाई को आगे बढ़ाया। अमित को आगे बढ़ाने तथा परिवार को संबल देने के लिये अजय फौज में भर्ती हुआ। आज भाई व पिता के त्याग को अमित दिल से स्वीकार करता है। ओलंपिक के लिये टिकट पक्का होना इस परिवार के बड़े सपने के पूरा होने जैसा ही है। अमित बड़े आत्मविश्वास से कहता है कि भारतीयों ने मुक्केबाजी में दुनिया को दमखम दिखा दिया है। टोक्यो ओलम्पिक में कम से कम दो सोने के मेडल जरूर आएंगे। 
अमित ने छोटी उम्र में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। वह विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में रजत पदक जीतने वाला पहला भारतीय है। जकार्ता एशियाड में उसने स्वर्ण पदक जीता था। ऐसी ही कामयाबी कॉमनवेल्थ गेम्स में दिखायी थी। इन सब उपलब्धियों के चलते आस जगी है कि अमित टोक्यो ओलम्पिक में सोने का मेडल जरूर लेकर आएगा। अभी तक भारत का कोई मुक्केबाज ऐसा नहीं कर पाया है। भारत के हिस्से अब तक सभी ओलम्पिक खेलों में दो ही कांस्य पदक आए हैं। विजयेंद्र सिंह ने 2008 में बीजिंग ओलम्पिक में और मैरीकॉम ने 2012 के लंदन ओलम्पिक में ये पदक जीते। 
अमित को विश्वास है कि भारतीय मुक्केबाजों के प्रदर्शन में हाल के दिनों में खासा सुधार आया है। भारतीयों ने विश्व चैंपियनशिप, एशियाई खेलों व राष्ट्रमंडल खेलों में पदक जीते हैं। अमित से भविष्य में उम्मीदों की वजह यह भी है कि वह एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक के साथ पहले भारतीय के रूप में रिकॉर्ड बनाते हुए विश्व बाक्सिंग चैंपियनशिप में रजत पदक जीता था। यहां तक पहुंचने के लिये अमित ने कड़ी साधना की है। आर्थिक तंगी के बावजूद अमित के हौसले कम नहीं हुए। 
एक समय ऐसा था कि अमित के पास बॉक्सिंग खेलने के लिये ग्लब्स तक नहीं थे। छह महीने उसने बिना ग्लब्स के ही अभ्यास किया। पिता ने उसकी ट्रेनिंग के लिए लोन तक लिया। उसके बावजूद परिवार की विनम्रता बरकरार है। जब एक एकड़ की खेती में गुजारा नहीं हुआ तो पिता ने घर का खर्च चलाने के लिये ट्रक चलाया। आज पिता विजयेंद्र को अमित की उपलब्धियों पर गर्व है। हरियाणा के रोहतक जनपद के मैना गांव में 16 अक्तूबर, 1995 में जन्मे अमित ने मुक्केबाजी के खेल की शुरुआत भाई अजय से प्रेरित हो की। उसे बाक्सिंग अकादमी तक अजय ही लेकर गया। 
अमित ने 2006 में विधिवत बाक्सिंग की शुरुआत की मगर घर की आर्थिक तंगी को देखते हुए बाद में अजय ने मुक्केबाजी छोड़ दी थी। मां ऊषा रानी कहती है कि अमित की मेहनत और हमारे प्रयासों की ऊपर वाले ने सुन ली है। हमें भरोसा है कि वह देश के लिये ओलम्पिक से गोल्ड मेडल लायेगा। फिलहाल भारतीय सेना में जेसीओ अमित की आंख टोक्यो ओलम्पिक के गोल्ड मेडल पर केंद्रित है। वह हनुमान जी का पक्का भक्त है और बाक्सिंग रिंग में जय बजरंगबली के उद्घोष के साथ उतरता है। वह अपने कोच अनिल धनकड़ के योगदान को भी याद करता है। अमित की सबसे बड़ी ताकत हर हालात में हार न स्वीकारना और पंचों की तेजी है। कई बार अमित को एक बाक्सर जैसी डाइट नहीं मिल पाती थी, कभी भूखे पेट भी ट्रेनिंग की। मगर हौसले बुलंद रखे। जी-तोड़ मेहनत और बुलंद हौसले के बूते बड़े नामी मुक्केबाजों को धूल चटाई। अमित के आक्रमण की तेजी उसका सबसे बड़ा हथियार है। जिसका उपयोग वह ज्यादा वजन वाले मुक्केबाजों के खिलाफ करते हैं। अमित की परेशानी यह भी है कि उसने जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक 49 किलो भार वर्ग में जीता था। मगर टोक्यो ओलंपिक में यह भार वर्ग नहीं है, उसने खुद को 52 किलो भार वर्ग के लिये तैयार किया है। अब नये भार वर्ग में उसका मुकाबला ज्यादा तगड़े और लम्बे प्रतियोगियों से होगा जो उसे दूर तक पंच मार सकते हैं। 
अमित का ध्यान अभी नये वर्ग के अनुरूप ताकत बढ़ाने पर है। युवा अमित के पंचों की तेजी उसकी ताकत बनेगी। फिर भी अमित अपनी शक्ति और सहनशक्ति पर काम कर रहे हैं। अपने खेल का दमखम उन्होंने विश्व चैंपियनशिप के फाइनल में 2016 के ओलंपिक चैंपियन उज्बेकिस्तान के शाखोबिदीन जोईरोव के खिलाफ दिखाया था। बहरहाल देश ओलंपिक में उनके गोल्डन पंच के इंतजार में है।

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