राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने प्रशिक्षकों से कहा दूसरा काम क्यों नहीं करते
उत्तर प्रदेश में अब ठेके पर खेल
खेल प्रशिक्षकों की नियुक्ति आउटसोर्सिंग से
खेलपथ प्रतिनिधि
लखनऊ। आप लोग दूसरा काम क्यों नहीं करते। आप लोग आत्मनिर्भर बनें आखिर सरकार किस-किस का ध्यान रखेगी। यह कथन है उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल का। विगत दिवस महामहिम से अपनी आपबीती सुनाने गए संविदा खेल प्रशिक्षकों को मिले इस जवाब से सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि उत्तर प्रदेश सरकार खेलों को लेकर संजीदा नहीं है और वह अपने हाथ खड़ी कर चुकी है। संचालनालय खेल पहले ही प्रदेश में प्रशिक्षकों की नियुक्ति आउटसोर्सिंग (ठेके) से करने का मन बना चुका है।
योगी आदित्यनाथ के उत्तर प्रदेश की सल्तनत में काबिज होते समय खिलाड़ियों और प्रशिक्षकों में यह भरोसा जागा था कि अब उनके दिन बहुरेंगे लेकिन 25 मार्च के बाद खेल प्रशिक्षकों के साथ जो सलूक हुआ उससे सारी उम्मीदें धूल-धूसरित होते दिख रही हैं। उत्तर प्रदेश की राज्यपाल आनंदी बेन पटेल ने पीड़ित खेल प्रशिक्षकों के आंसू पोछने की बजाय जिस तरह की नसीहत दी है उससे साफ हो गया है कि सरकार की प्राथमिकता में खेलों का कोई मूल्य नहीं है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को प्रशिक्षकों की खराब आर्थिक स्थिति को देखते हुए तत्काल इस मामले में संचालनालय खेल को खेल हितैषी निर्णय लेने के निर्देश देने चाहिए। ज्ञातव्य है कि आनंदी बेन पटेल राज्यपाल बनने से पूर्व लम्बे समय तक गुजरात की मुख्यमंत्री रही हैं। गुजरात बेशक प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का राज्य हो लेकिन खेलों के लिहाज से वहां की स्थिति ताली पीटने लायक नहीं कही जा सकती।
उत्तर प्रदेश के खेलनाहारों को इस बात का भान होना चाहिए कि खेल वर्ष भर चलने वाली प्रक्रिया है। खिलाड़ियों का भला ठेके से नहीं किया जा सकता। आउटसोर्सिंग से प्रशिक्षकों की नियुक्ति का फैसला आत्मघाती साबित होगा। गौरतलब है कि इससे पहले उत्तर प्रदेश में खेल प्रशिक्षक संविदा पर रखे जाते थे लेकिन अब खेल निदेशालय ने आदेश दिए हैं कि खेल प्रशिक्षकों की नियुक्ति आउटसोर्सिग से की जाएगी। हर साल एक अप्रैल को संविदा पर तैनात खेल प्रशिक्षकों को रिन्यूवल करवाना होता था, लेकिन पहली बार विभाग ने आउटसोर्सिंग पर खेल प्रशिक्षक रखे जाने के आदेश दिए हैं। खेल निदेशालय ने भेजे गए आदेश में कहा कि जेम पोर्टल पर पंजीकृत ठेकेदारों के माध्यम से आउटसोर्सिंग (ठेका) से खेल प्रशिक्षकों की नियुक्ति होगी।
खेल निदेशालय उत्तर प्रदेश के इस हिटलरशाही फैसले से लगभग साढ़े चार सौ खेल प्रशिक्षकों का भविष्य अधर में लटक गया है। ठेकाप्रथा से प्रशिक्षकों की नियुक्ति करने को यदि संचालनालय खेल उपयुक्त समझता है तो उसे खेल निदेशक और उप-निदेशकों को भी बर्खास्त कर देना चाहिए। मैदानों में खिलाड़ियों की प्रतिभा निखारने का काम यदि ठेके से नियुक्त प्रशिक्षकों को ही करना है तो अधिकारियों पर पैसा बर्बाद करना कहां की बुद्धिमानी है। आज जो अनरीति प्रशिक्षकों के साथ की जा रही है, कल शारीरिक शिक्षकों के साथ भी ऐसा होने से इनकार नहीं किया जा सकता। 25 मार्च से घर बैठे साढ़े चार सौ प्रशिक्षकों को यदि सेवा का अवसर नहीं मिलता तो सच मानिए उत्तर प्रदेश में खेलों का खेल हो जाएगा।