तंज पर रंज न कर छुआ आसमान
सपने सी लगती है स्वप्ना बर्मन की सफलता
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। बुखार, टीबी, रक्तचाप, मधुमेह, थायराइड, आप अनेक बीमारियों के नाम जानते होंगे। बीमारी कोई भी हो, वह व्यक्ति को शारीरिक एवं मानसिक दोनों ही तरह से परेशान करती है। क्या आप जानते हैं कि कुछ खतरनाक बीमारियां ऐसी हैं, जिन्हें बीमारी की श्रेणी में गिना ही नहीं जाता। चिढ़ और चिढ़ना, यह भी ऐसी ही खतरनाक बीमारी में से एक है। एथलीट सपना बर्मन को भी शुरुआती दौर में लोगों की तंज का सामना करना पड़ा लेकिन इस बिटिया ने रंज करने की बजाय अपने आपको फौलादी बनाया और देश का मान बढ़ाकर सबको बलैयां लेने को मजबूर कर दिया।
यदि यह पढ़कर आपको हंसी आ रही है तो जरा ठहरिए और अपने दिमाग पर जोर डालिए कि जब भी कोई आपके कद, योग्यता, कार्यक्षमता पर व्यंग्य करता है तो क्या आप बुरी तरह चिढ़ नहीं उठते हैं? क्या आपका तन-मन तिलमिला नहीं जाता है और क्या आपकी मांसपेशियां एवं भुजाएं क्रोध से फड़कने नहीं लगती हैं। ऐसा ही होता है न जब कोई हमें चिढ़ाता है। हम अपनी आलोचना बर्दाश्त नहीं कर पाते और चिढ़ कर उस पर करारा वार करने के चक्कर में अपना नुकसान कर लेते हैं।
तनाव, चिढ़ और क्रोध की स्थिति में शरीर से नकारात्मक रसायन निकलते हैं जो शरीर के लिए हानिकारक होते हैं। ये रसायन ही शरीर में रक्तचाप जैसी बीमारियों को जन्म देते हैं। यदि चिढ़ को गंभीरता से न लिया जाए और लगातार चिढ़ाने वाले व्यक्तियों को प्रतिक्रिया देने के स्थान पर अपने कार्य में मगन रहा जाए तो व्यक्ति सफलता के सभी कीर्तिमानों को ध्वस्त करते हुए शिखर के उच्चतम बिंदु पर पहुंच जाता है। एक ऐसे उच्च बिंदु पर जहां पर चिढ़ जैसी बातें और भावनाएं बेहद गौण एवं निष्क्रिय हो जाती हैं। पश्चिम बंगाल के जलपाइगुड़ी इलाके में जन्मी स्वप्ना के पैरों में बचपन से ही छह-छह उंगलियां थीं। जब वह थोड़ी बड़ी हुई तो बाकी लोगों के पैरों में पांच और अपने पैरों में छह उंगलियां देखकर बहुत परेशान हो जाती थी। छह उंगलियां होने के कारण उसे जूते पहनने में बड़ी परेशानी होती थी।
उसके परिवार की आर्थिक स्थिति बेहद खराब थी। पिता रिक्शा चलाते थे और मां चाय के बागान में मजदूरी करती थी। जब वह सात साल की थी तो पिता को लकवा मार गया। परिवार की जिम्मेदारी मां पर आ गई। उन दिनों स्वप्ना सरकारी स्कूल में पढ़ती थी। यूनिफाॅर्म के साथ-साथ पैरों में जूते पहनने भी अनिवार्य थे। स्वप्ना का पैर बाकी बच्चों से चौड़ा था, इसलिए उसे नाप के जूते नहीं मिलते थे। उसके मित्र उसका मजाक उड़ाते थे। स्वप्ना में एक गुण था कि वह बहुत तेज दौड़ती थी और उसे खेलना बहुत पसंद था। वह बच्चों से चिढ़ने के बजाय उन्हें कहती कि एक दिन मैं दुनिया में ऐसा काम करूंगी कि न केवल मेरे परिवार को मुझ पर गर्व होगा बल्कि पूरा देश मुझ पर गौरवान्वित होगा।
वह लगातार दौड़ने एवं कूदने का अभ्यास करती रही। पौष्टिक भोजन के अभाव में भी अपने अभ्यास में लगी रहती थी। वह बाधा दौड़, ऊंची कूद और गोला फेंक में अव्वल आकर सबको हैरान कर देती थी। इसी तरह वह सात स्पर्धाओं वाले खेल हेप्टाथलहेप्टाथलन में पारंगत हो चुकी थी। स्वप्ना लोगों के मजाक व चिढ़ का शिकार नहीं बनी और अपनी राह पर चलती रही। एशियाड में तेज दांत दर्द के बावजूद स्वप्ना अपना दर्द भूलकर खेलती रही और आखिर उसने वह कर दिखाया जो दशकों में कोई-कोई ही कर पाता है। स्वप्ना ने हेप्टाथलान में अपनी प्रतिभा के कारण स्वर्ण पदक अपने नाम कर लिया। स्वर्ण पदक जीतकर वह भारत की पहली ऐसी महिला खिलाड़ी बन गई जिसने हेप्टाथलान में स्वर्ण पदक प्राप्त किया हो।
चिढ़ाने वाले व्यक्तियों में उन्हीं लोगों की संख्या अधिक होती है जो अपने कार्य को पूरी ईमानदारी से नहीं करते और जिनमें योग्यता का अभाव होता है। जो व्यक्ति आत्मविश्वासी, साहसी एवं कर्मशील होते हैं, वे अपने कार्य में इतने व्यस्त रहते हैं कि उन पर चिढ़ाने वाले लोगों की बातों का कोई असर ही नहीं पड़ता। जो लोग व्यर्थ में चिढ़ने और चिढ़ाने से बचते हैं, वे ही इतिहास रचते हैं।
मनोविज्ञान में चिढ़ को ‘साइकोलॉजिकल प्रोजेक्शन’ के माध्यम से समझाया गया है कि हम दूसरे व्यक्ति की उन कमियों को देखकर खीझ से भर जाते हैं जिन्हें हम अपने अंदर स्वीकार करने से बचते हैं। इसके साथ ही व्यक्तियों को दूसरों की उन बातों पर भी चिढ़ उठती है, जिन्हें वे खुद करना चाहते हैं लेकिन नहीं कर पाते, वहीं दूसरे व्यक्ति उन्हीं बातों और कार्यों को सहजता से कर लेते हैं। यदि आपके अंदर भी चिढ़ की आदत है और आप भी बात-बात पर चिढ़ कर अपना मूड खराब कर लेते हैं अथवा तनावग्रस्त हो जाते हैं तो तुरंत इस बीमारी को दूर करने का प्रयास कीजिए।
चिढ़-चिढ़ करने और चिढ़ने की आदत को दूर करना कतई मुश्किल नहीं है, बस जब भी आप का मन चिढ़ने का करे तो तुरंत ही उस वातावरण से दूर हो जाएं। स्वयं को व्यस्त रखें, अच्छी सकारात्मक पुस्तकें पढ़ें और चेहरे पर मुस्कराहट रखें। ऐसा करने से आप लोगों को देखकर चिढ़ना और चिढ़-चिढ़ करना छोड़ देंगे।