बेटियों से लाड़-प्यार

केंद्र में भाजपा सरकार बनने के बाद वर्ष 2015 में प्रधानमंत्री ने पानीपत में जिस ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरुआत की थी, उसके सकारात्मक परिणाम सामने आने लगे हैं। जो राज्य कभी नकारात्मक लिंगानुपात में असंतुलन के लिये जाना जाता था, वहां संतुलन की दिशा में धनात्मक रुझान नजर आ रहा है। कुछ अपवाद छोड़ दें तो अधिकांश जनपदों में सकारात्मक बदलाव देखने को मिला है। नई पीढ़ी की प्रगतिशील सोच ने इसमें सकारात्मक भूमिका निभाई है। अब हरियाणा में यह समझ विकसित हुई है कि बेटी-बेटे में कोई फर्क नहीं है। खेल से लेकर तमाम क्षेत्रों में बेटियों ने ‍वे करिश्मे दिखाये हैं कि लिंगभेद का फर्क मिटता जा रहा है। यह वक्त की जरूरत भी है और समय का तकाजा भी कि किसी भी स्तर पर बेटी-बेटियों में फर्क न रहे। यह बदलाव की बयार भी है कि घर-परिवार संवारने वाली बेटियों ने आर्थिक आजादी भी हासिल की है और आने वाली पीढ़ियों की सोच बदलने के लिये पृष्ठभूमि भी तैयार की है। अगस्त, 2020 की लिंगानुपात रिपोर्ट इसी सोच की ओर इशारा कर रही है।

राज्य में हजार बेटों के पीछे 914 बेटियां हैं। हालांकि, तुलनात्मक रूप में देखें तो वर्ष 2019 के मुकाबले इन आंकड़ों में गिरावट दर्ज की गई है। जहां बीते साल हजार लड़कों पर 920 लड़कियां थीं, वह इस साल घटकर 914 रह गई हैं। मगर महत्वपूर्ण यह है कि राज्य के फतेहाबाद में हजार बेटों के पीछे 941 बेटियां हैं। वहीं पानीपत जहां से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ राष्ट्रीय अभियान की शुरुआत प्रधानमंत्री ने की थी, वहां सुधार के चलते जनपद दूसरे पायदान पर है और बेटियों की संख्या बढ़कर हजार के मुकाबले 940 हुई है। इस बदलाव को सुखद ही माना जा सकता है, जिसके आने वाले समय में किसी भी समाज में सकारात्मक परिणाम निश्चित रूप से सामने आएंगे जो कालांतर समाज में बदलाव का वाहक भी बनेंगे।

हरियाणा में लिंग अनुपात में सुधार के बीच अच्छी बात यह भी है कि राज्य के पंद्रह जनपदों में लिंग अनुपात नौ सौ से अधिक है। वहीं राज्य के छह जनपदों में लिंगानुपात नौ सौ से कम है। इनमें गुरुग्राम, रोहतक, भिवानी, करनाल, चरखी-दादरी और झज्जर शामिल हैं। इन जनपदों में लिंगानुपात में गिरावट के कई सामाजिक व अन्य कारण भी हो सकते हैं, लेकिन सवाल राजनेताओं पर  भी है। ये सभी जिले राजनीतिक चेतना व सक्रियता के लिहाज से पूरे प्रदेश में अव्वल रहे हैं। जाहिर है कि राजनेताओं को सामाजिक चेतना जगाने और लिंग अनुपात में सुधार के लिये प्रेरक पहल करनी चाहिए। इसमें दो राय नहीं कि किसी भी समाज में बेहतर लिंगानुपात समाज की सोच और व्यवहार में समतामूलक नजरिये का ही परिचायक है। उदार और प्रगतिशील समाज बेटा-बेटी के भेद को किसी भी स्थिति में स्वीकार नहीं करता। बहरहाल, समाज में धीरे-धीरे सकारात्मक बदलाव आ रहा है। बेटियों ने अपनी जमीन तैयार की है और जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पुख्ता उपस्थिति दर्ज करवायी है। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि बेटियां जिस बेहतर ढंग से अपने माता-पिता का ख्याल रख पाती हैं, वैसा बेटे नहीं रख पाते। यह नजरिया भी समाज में सोच में बदलाव का वाहक बन रहा है।

महत्वपूर्ण घटक यह भी है कि हरियाणा का बड़ा इलाका राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आता है। जहां की जीवन संस्कृति हरियाणवी समाज को गहरे तक प्रभावित करती है। दिल्ली का प्रगतिशील समाज आसपास के जनपदों को प्रेरित करता है कि समाज में लड़कियों की भूमिका बड़ी होने जा रही है। शिक्षा के प्रसार ने भी इस दिशा में उत्प्रेरक की भूमिका निभायी है जो कहीं न कहीं हरियाणवी समाज को भी ऐसा करने के लिये प्रेरित कर रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि जीवन के हर क्षेत्र में अपनी पुख्ता पहचान बनाने वाला हरियाणा आने वाले सालों में बेहतर लिंग अनुपात की वजह से देश में विशिष्ट पहचान बनायेगा। इसमें प्रशासन की सजगता और सक्रियता की भी जरूरत है। जरूरत इस बात की भी है कि पीसी-पीएनडीटी अधिनियम पर भी सख्ती से अमल हो और लिंग जांच करवाने वालों को सख्त सजा दी जाये।

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