प्रधानमंत्री जी मेजर ध्यानचंद स्टेडियम से गृह मंत्रालय का ऑफिस हटाओ
गृह मंत्रालय का कार्यालय होने से यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर के हॉकी टूर्नामेंट नहीं हो पा रहे
खेलपथ प्रतिनिधि
नई दिल्ली। भारत को आखिरी बार 1980 में हॉकी का ओलम्पिक स्वर्ण जिताने वाले कप्तान वासुदेवन भास्करन और मेजर ध्यानचंद के पुत्र पूर्व ओलंपियन अशोक कुमार ने कहा है कि राजधानी स्थित मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम से गृह मंत्रालय का कार्यालय हटाया जाना चाहिए। दोनों पूर्व हॉकी खिलाड़ियों ने एक सुर में कहा कि खेल स्टेडियमों में खेल से जुड़े दफ्तर ही होने चाहिए। 1980 के मास्को ओलम्पिक की स्वर्ण विजेता भारतीय हॉकी टीम के कप्तान भास्करन ने कहा, “स्टेडियमों में मंत्रालयों के बजाय खेल फेडरेशनों को जगह दी जानी चाहिए, जैसे पहले होता था। इसके साथ ही स्टेडियम परिसर में खेल म्यूजियम खोले जाने चाहिए।”
अशोक कुमार ने कहा, “स्टेडियमों में खेल और खिलाड़ियों से जुड़ी गतिविधियां ही होनी चाहिए।” उल्लेखनीय है कि हॉकी प्रेमी राकेश थपलियाल ने राष्ट्रीय खेल दिवस के अवसर पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिख कर मेजर ध्यानचंद स्टेडियम से गृह मंत्रालय का कार्यालय हटवाने और मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न के सम्मान से अलंकृत करने का अनुरोध किया था।
भास्करन ने कहा, “मैं लंदन स्थित लॉर्ड्स स्टेडियम गया तो वहां एक म्यूजियम बना है और उसमें जाने के लिए टिकट लेना पड़ता है। मैं और अशोक कुमार इस मैदान पर 1978 में घास पर चार देशों का हॉकी टूनार्मेट खेले थे। ऐसा ही हमारे देश में हर स्टेडियम में किया जाना चाहिए। पर्यटन विभाग इसका प्रचार करे तो लोग स्टेडियम में आएंगे। मैंने साई को अपना ब्लेजर, हॉकी स्टिक आदि म्यूजियम के लिए दी हुई है।”
अशोक ने कहा, “कहने को तो इस स्टेडियम का नाम ध्यानचंद के नाम पर रख दिया, लेकिन आप देखो कितने साल हो गए वहां कोई अंतरराष्ट्रीय हॉकी टूर्नामेंट ही नहीं हुआ है। न राष्ट्रीय प्रतियोगिता वहां होती है। गृह मंत्रालय काफ़ी संवेदनशील होता है। यह खेल से मेल नहीं खाता है। उसका दफ्तर ध्यानचंद स्टेडियम में खोलने का फैसला अजीब था। यह ठीक नहीं था, इसे बदलना चाहिए। खिलाड़ियों को दिक्कत तो होती होगी। खिलाड़ी तो खुलकर घूमना या इधर उधर जाना चाहते हैं। वो अब हो नहीं पाता है।”
अशोक ने कहा, “जिन लोगों को इस बारे में बोलना चाहिए वो चुप क्यों हैं। हॉकी इंडिया और भारतीय ओलम्पिक संघ को यह मुद्दा उठाना चाहिए। हमारे जैसे रिटायर खिलाड़ी कुछ नहीं कर सकते।” मेजर ध्यानचंद को भारत रत्न दिए जाने की मांग पर अशोक ने कहा, “इस पर मैं कुछ नहीं कहूंगा। यह आप लोगों का विषय है। जिस खिलाड़ी ने देश का नाम रोशन किया उसे सम्मान मिलना चाहिए। वह एक स्तम्भ थे। मैं तो इतना ही कहूंगा कि वह देश के लिए खेले, उन्होंने मैच जीते, स्वर्ण जीते। अगर ऐसा न हुआ होता तो क्या हमारा हॉकी का इतना अच्छा इतिहास होता। शायद नहीं होता।”
राकेश थपलियाल ने प्रधानमंत्री को पत्र में लिखा, “आप हमारे देश के खेल प्रेमी प्रधानमंत्री हैं। आपने देश में खेलों के विकास और खिलाड़ियों को सुविधाएं उपलब्ध कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी है। इससे देश के खेलप्रेमी और खिलाड़ी सामान्य तौर पर प्रसन्न हैं और आपका आभार व्यक्त करते हैं, लेकिन नई दिल्ली स्थित मेजर ध्यानचंद नेशनल स्टेडियम की ऐतिहासिक इमारत के मुख्य हिस्से में गृह मंत्रालय का कार्यालय खोल दिया गया है। पिछले हिस्से में पहले से ही नमामि गंगे का कार्यालय चल रहा है। सरकार के इस कदम से हॉकी ही नहीं, बल्कि सामान्य खेल प्रेमियों में भी बेहद निराशा है।”
थपलियाल ने कहा, “दो पूर्व खेलमंत्री विजय गोयल और कर्नल राज्यवर्द्धन सिंह राठौड़ ने अपने कार्यकाल के दौरान ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय के कायार्लय का विरोध भी किया था। अब किरेन रिजिजू खेल मंत्री हैं। जब वह गृह राज्य मंत्री थे तभी ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय का कार्यालय खोला गया था। ध्यानचंद स्टेडियम में गृह मंत्रालय का कार्यालय होने से यहां अंतरराष्ट्रीय स्तर का हॉकी टूर्नामेंट नहीं हो पा रहा है। कभी यह स्टेडियम अंतरराष्ट्रीय हॉकी प्रतियोगिताओं के आयोजन का गढ़ था, लेकिन अब यहां ऐसा नहीं हो पा रहा है।” उन्होंने पत्र में अनुरोध किया कि इस समस्या का हल निकाल कर इस ऐतिहासिक स्टेडियम में अंतरराष्ट्रीय हॉकी आयोजन की रौनक फिर से शुरू करवाने में मदद करें। हॉकी को बढ़ावा देने में आपका योगदान हमेशा याद रखा जाएगा। हॉकी खिलाड़ी और खेलप्रेमी आपके सदैव आभारी रहेंगे।