मेरी सफलता में नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन का अहम योगदानः दिव्या

अर्जुन अवार्डी महिला रेसलर काकरान का जोरदार स्वागत

भविष्य में उत्तर प्रदेश में स्पोर्ट्स अफसर बनने का सपना

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। माथे पर बिखरे बाल, छोटी सी आंखें और उनमें बड़े-बड़े सपने कुछ ऐसी ही हैं अर्जुन अवार्डी महिला रेसलर दिव्या काकरान। हाल ही खेल दिवस पर अर्जुन पुरस्कार से सम्मानित दिव्या काकरान का नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान में जोरदार स्वागत किया गया। इस अवसर पर जांबाज दिव्या काकरान ने अपने अतीत को याद करते हुए कहा कि मेरी सफलता में नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान का अहम योगदान है। इस संस्थान ने अध्ययन के समय फर्श पर पड़ी एक गरीब लड़की को अर्श तक पहुंचाने में विशेष सहयोग किया। संस्थान के चेयरमैन डॉ. सुशील कुमार राजपूत ने दिव्या को शुभकामनाएं देते हुए उसके उज्ज्वल भविष्य की कामना की।

नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान के विभागाध्यक्ष शारीरिक शिक्षा डॉ. आशुतोष राय बताते हैं कि दिव्या ने आज तक जो भी शोहरत हासिल की है उसमें उसकी लगन और मेहनत का ही योगदान है। डॉ. राय ने दिव्या के उज्ज्वल भविष्य एवं ओलम्पिक में बेहतर प्रदर्शन की शुभकामनाएं दीं। संस्थान की प्राचार्य डॉ. प्रतिभा गुप्ता ने दिव्या काकरान को आशीष वचन दिए। स्वागत से खुश दिव्या ने फर्श से अर्श तक के अपने सफर तथा संस्थान में शिक्षा ग्रहण के दौरान उसको दी जाने वाली सुविधाओं एवं सहयोग का विस्तार से जिक्र किया। दिव्या काकरान ने खेल में लड़कियों को आने वाली समस्याओं, परिवार से मिलने वाले सहयोग, समर्थन और समाज की नकारात्मकता पर भी बेबाकी से बात की। नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान में हुए जोरदार स्वागत को दिव्या ने विशेष लम्हा करार देते हुए कहा कि इससे खिलाड़ी का मनोबल बढ़ता है।

इस अवसर पर डॉ. प्रवीण कुमार, डॉ. मनोज कुमार शर्मा, डॉ. पंकज सिंह, डॉ. विशाल सिंह, यशोदा सैनी, मनीष कुमार, पुस्तकालय अध्यक्ष देवेंद्र सिंह चौहान, संस्थान के सभी विभाग के प्राध्यापक, ऑफिस स्टाफ उपस्थित रहा। स्वागत समारोह का संचालन विभागाध्यक्ष डॉ. आशुतोष राय ने किया। दिव्या ने भी संस्थान के सभी लोगों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर दिव्या का छोटा भाई प्रतिभाशाली पहलवान दीपक काकरान और उसकी डाइटीशियन भी मौजूद रहे। दिव्या ने अर्जुन अवार्ड समारोह की स्मृतियों को ताजा करते हुए कहा कि जब ऑनलाइन स्क्रीन पर राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को कुश्ती में मेरी उपलब्धियां बताई गईं तो मैं भावुक हो गई। विज्ञान भवन से बाहर आते ही पापा-मम्मी को फोन मिलाया और कहा कि आपने कठिन परिस्थितियों में कैसे गांव की बेटी को ऊंचे मुकाम पर ला खड़ा किया है। यह कहते ही आंखों से खुशी के आंसू बहने लगे।

राष्ट्रीय खेल दिवस पर नई दिल्ली में अर्जुन पुरस्कार से नवाजी गईं दिव्या काकरान कहती हैं कि राष्ट्रपति के समक्ष वर्चुअली अवार्ड पाने की बारी आई, तो जिन्दगी में किए कड़े संघर्ष और मेहनत का सुखद अहसास हुआ। दिव्या को खेल मंत्री किरेन रिजिजू ने वर्ष 2020 के लिए अर्जुन अवार्ड का प्रमाण-पत्र सौंपा, उस वक्त वह काफी भावुक थी। नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान में शानदार स्वागत से अभिभूत दिव्या कहती हैं कि मैं गांव की साधारण लड़की थी, मगर पापा को मुझे पहलवान बनाने का जुनून था। जब हार न मानने का जज्बा हो तो भगवान भी मदद करते हैं। अभी तक के खेल करियर में सबसे ज्यादा खुशी तब मिली, जब ओलम्पिक क्वालीफाइंग के दौरान वर्ष 2019 में 68 किलो भार वर्ग में एशियन चैम्पियनशिप में चीन में कांस्य पदक जीता, फिर दिल्ली में एशियन चैम्पियनशिप में गोल्ड हासिल किया। दिव्या ने बताया कि वर्ष 2015 में मेरा परिवार बेहद आर्थिक तंगी में था। उस समय मेरी मम्मी ने मेरे सपनों को पर लगाने के लिए अपने गहने तक गिरवी रख दिए थे। मुझे खुशी है कि तब मैं जूनियर एशियन रेसलिंग चैम्पियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने में सफल रही।

उत्तर रेलवे में वरिष्ठ टिकट निरीक्षक दिव्या कहती हैं कि वह भविष्य में उत्तर प्रदेश में स्पोर्ट्स अफसर बनना चाहेंगी ताकि गांव की लड़कियों को कुश्ती में आगे बढ़ा सकूं। अर्जुन अवार्ड सम्मान पाकर घर लौटी बेटी दिव्या को उनकी मां ने दिल्ली के गोकुलपुर आवास पर फूलों की माला पहनाई तथा आरती उतारी। पिता सूरजवीर ने बेजोड़ पुत्री को गले लगाया। दिव्या ने अर्जुन अवार्ड प्रमाण-पत्र पापा को दिया। सूरज वीर बोले, हमने नेशनल स्तर तक ही बेटी को ले जाने का सोचा था, लेकिन सफलताएं शिखर पर ले आईं। दिव्या ने बताया कि पांच साल से उनकी मित्र नीना उनकी डाइट का जिम्मा सम्हाल रही हैं। जिस मां संयोगिता ने अकेली बेटी दिव्या को महिला रेसलिंग में शोहरत दिलाई, वह भी बेटी को अर्जुन पुरस्कार मिलने पर काफी प्रसन्न हैं। वह कहती हैं कि बेटी जब भी दंगल, अखाड़े से कुश्ती जीतकर लौटती थी, मैं आरती जरूर उतारती थी। मुझे उसकी मां होने का गर्व है। बेटियां परिवार की दौलत हैं। दिव्या को अर्जुन अवार्ड मिलने से नोएडा कॉलेज ऑफ फिजिकल एज्यूकेशन संस्थान के साथ ही उसके गांव पुरबालियान में परिजनों तथा ग्रामीणों में भी खुशी की लहर है। दादा राजेंद्र सिंह का कहना है कि मैं आज दिव्या की उपलब्धि से बहुत खुश हूं। एक ही इच्छा है कि उनके जीते-जी दिव्या ओलम्पिक पदक जीते। दादी प्रेमवती, चाचा मोहनवीर, चाची शर्मिष्ठा, सनी आदि परिजन भी बेहद खुश हैं।

कुछ ऐसी रही दिव्या के संघर्ष की दास्तां

उत्तर प्रदेश के मुजफ्फरनगर के पास पुरबालियान से ताल्लुक रखने वाले सूरज करीब 19 साल से दिल्ली में किराए के मकान में अपने परिवार के साथ रहते हैं। वह लंगोट बेचते हैं और दिव्या की मम्मी घर में सिलाई करती हैं। दिव्या ने इन्हीं विषम परिस्थितियों में कड़ी मेहनत के दम पर खुद को एक इंटरनेशनल रेसलर बनाया और कई मेडल जीते। दिव्या के पिता दिल्ली, हरियाणा और यूपी के ऐसे इलाकों में जाकर लंगोट बेचते हैं, जहां पहलवान हों। इसके अलावा आसपास के अखाड़ों के बाहर भी लंगोट बेचने के लिए जाते हैं। जब दिल्ली आए तो उन्होंने जर्राह का काम भी किया लेकिन वह भी ज्यादा नहीं चल सका। इसके बाद उन्होंने अपनी पत्नी को भी यहीं बुला लिया और सिलाई के पेशे से ही घर चलाया।

दिव्या के दादा भी पहलवानी करते थे और पिता ने भी शादी के पहले तक पहलवानी की लेकिन पढ़े-लिखे नहीं होने और संसाधनों के अभाव में वह इसे करियर के तौर पर नहीं चुन सके। दिव्या के परिवार का दिल्ली आने का कारण रोजगार ही था क्योंकि गांव में न तो रोजगार था और न ही संसाधन थे। दिव्या के पिता सूरज वीर बताते हैं कि नौकरी तो कहीं लगी नहीं, हम छोटे ही पहलवान रह गए। वह कहते हैं कि वह दिल्ली में कभी 500 रुपये के मकान में रहते थे, तब उतने रुपये जुटाना भी काफी मुश्किल काम था।

बहन के लिए भाई ने छोड़ी पहलवानी

दिव्या के बड़े भाई देव दिल्ली में पहलवानी के लिए अखाड़े में जाते थे। फिर दिव्या भी उनके साथ गुरु राजकुमार गोस्वामी के अखाड़े में जाने लगी लेकिन कमाई कम होने के चलते देव को अपना करियर दांव पर लगाना पड़ा। इस बारे में उनके पिता सूरज ने बताया कि उन्होंने ही देव से कहा कि अगर तुम्हारी बहन नाम करेगी तो तुम्हारा भी नाम होगा। दिव्या के भाई आज भी उसके साथ ही रहते हैं, लखनऊ के साई सेण्टर में भी साथ रहे, उनके साथ ही दंगल में जाते हैं, हौसलाअफजाई करते हैं। पिता और भाई के सपनों को साकार करने के लिए दिव्या ने लड़कों से अखाड़े में मुकाबले लड़े और कई हजार रुपये बतौर ईनाम जीते।

 

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