फर्राटा धावक दुती चंद बनी अर्जुन

लगा था पुरुष होने का आरोप, एशियन गेम्स में जीते दो मेडल
श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। हर रिश्ता विश्वास के कमजोर धागे से बंधा होता है। विश्वास की इस कड़ी में खिलाड़ी और पत्रकार भी शामिल होते हैं। खेलों से जुड़े लोग खेल पत्रकारिता में शून्यता महसूस करते हैं। खेल पत्रकारों पर आरोप यह भी लगते हैं कि वह सच नहीं लिखते जबकि सच्चाई यह है कि खेल जमातियों में हिम्मत का अभाव होता है। वह डरपोक है, उसमें दुती जैसी हिम्मत नहीं होती।

दुती को मैं तब से जानता हूं जब वह शोहरत से बिल्कुल दूर थी। इस लड़की की खासियत इसकी साफगोई है। कल अर्जुन बनी दुती ने पिछले एशियाड खेलों में दो पदक जीते थे। अपनी महिला मित्र को लेकर सुर्खियों में रही दुती इन दिनों सिर्फ टोक्यो का सपना देख रही है। दुती ने 18वें एशियाई खेलों की 200 मीटर के फाइनल में 23.20 सेकेंड का समय निकालते हुए उसने दूसरा स्थान हासिल किया था उसने 100 मीटर स्पर्धा का भी सिल्वर मेडल जीता था।
एशियन गेम्स में भारत का नाम ऊंचा करने वाली इस फर्राटा धाविका ने गांव की गलियों से सिंथेटिक रेसिंग ट्रैक तक का सफर कड़े संघर्षों के बाद तय किया है। दुती चंद का बुरा समय जून 2014 में शुरू हुआ जब एथलेटिक्स फेडरेशन ऑफ इंडिया ने दुती को जेंडर टेस्ट के लिए बुलाया। जेंडर टेस्ट में उनके पुरुष हार्मोन लेवल की जांच होनी थी जिसे हाइपरएन्ड्रोजेनिज्म कहते हैं। बिना किसी जांच और पुष्टि के उसे निलंबित कर दिया गया और वह ग्लास्गो कॉमनवेल्थ खेलों में भाग नहीं ले सकी। हाइपर एंड्रोजेनिम्स एक प्रकार का मेडिकल कंडीशन है, जिसमें महिलाओं के शरीर में एंड्रोजेन्स (टेस्टोस्टेरोन जैसे पुरुष सेक्स हार्मोन) की अधिकता हो जाती है। दुनिया भर में कई एथलीट इस मेडिकल कंडीशन के कारण मुश्किल झेल चुकी हैं।
विपरीत हालातों में दुती चंद ने हार नहीं मानी और इसको लेकर खेल पंचाट (सीएएस) में अपील की, जहां से उन्हें फौरी तौर पर राहत मिली। सीएएस ने सुनवाई में कहा था कि भविष्य में अगर दुती के खिलाफ नए सबूत नहीं ला सका तो आईएएफ को अपना फैसला वापस लेना होगा। उन मुश्किल हालातों में उसकी मदद उसके प्रशिक्षक ने की थी। दुती तब सोचती थी कि अगर इस मामले में फैसला पक्ष में नहीं आया तो क्या करेगी। मेरे साथ के लोग हमेशा कहते थे कि जब तक खेल सकती हो, खेलो। मुश्किल के उन क्षणों में दुती के कोच रमेश ने भी उसकी हिम्मत बढ़ाई। रमेश कहते हैं कि दुती ने उस समय काफी दुख झेला और आज उस दौर से निकल कर वह जहां खड़ी है वह बहुत बड़ी बात है।
पुलेला गोपीचंद ने की मदद
दुती चंद के हालात बदलने में पुलेला गोपीचंद की भूमिका भी उल्लेखनीय है। जब दुती साल 2014 के कॉमनवेल्थ खेलों का हिस्सा नहीं बन सकी थी, उसे सब कुछ शून्य से शुरू करना था। उस समय उन्हें स्पोर्ट्स अथॉरिटी ऑफ इंडिया (साई) के सेंटर में रहना कई मुश्किलों से भरा लग रहा था। इस मौके पर दुती के कोच एन. रमेश अपने मित्र पुलेला गोपीचंद से संपर्क कर मदद मांगी और गोपीचंद ने बिना हिचके दुती को अपनी पुलेला गोपीचंद बैडमिंटन एकेडमी फाउंडेशन के दरवाजे खोल दिए।
तीन फरवरी, 1996 को जन्मी दुती चंद ओडिशा के चाका गोपालपुर गांव की रहने वाली है। उसके पिता गरीब बुनकर हैं। दुती के नौ सदस्यीय परिवार में पांच बहनें और एक भाई है। पिता की 500 से 1000 रुपए आमदनी होने के कारण दुती चंद के परिवार ने काफी गरीबी झेली और इसी वजह से उनके भाई-बहन की अच्छी पढ़ाई-लिखाई नहीं हो सकी। हालांकि, दुती के खेलों में आने के बाद परिवार की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ है। जो भी हो इस बिटिया ने हर परेशानी का डटकर मुकाबला किया है।

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