पिता के अरमानों को पूरा करने ट्रैक पर उतरी निशू

दिल्ली का दिल जीता, अब अंतरराष्ट्रीय खेल फलक पर धमाल मचाने की तैयारी

श्रीप्रकाश शुक्ला

नई दिल्ली। खेल का क्षेत्र विशाल है। उससे बड़ा है दिल्ली की बेटियों का दिल और जज्बा। इन दिनों जहां देश-दुनिया वैश्विक महामारी कोरोना से जूझ रही है वहीं दूसरी तरफ एक प्रतिभावान एथलीट अपने पिता के अरमानों को पूरा करने को दिल्ली के छत्रसाल स्टेडियम में सुबह-शाम अपनी प्रशिक्षक सुनीता राय की देखरेख में पसीना बहा रही है। 200 और 400 मीटर दौड़ में राष्ट्रीय पहचान बन चुकी निशू सिंह का लक्ष्य देश के लिए दौड़ना और दुनिया में मादरेवतन का मान बढ़ाना है। पिछले कई वर्षों से दिल्ली की सर्वश्रेष्ठ एथलीटों में शुमार निशू की मंजिल ओलम्पिक में भारतीय तिरंगा लहराना है।

खेलपथ से बातचीत में प्रतिभाशाली निशू बताती है कि मेरे खेलने के निर्णय का काफी विरोध था लेकिन राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ की विचारधारा से प्रेरित मेरे पिता किशन सिंह ने मुझे देश के लिए दौड़ने का हौसला दिया। 20 दिन पहले ब्रेन हैमरेज से निशू के सिर से मां मीरा का साया जरूर उठ चुका है लेकिन इस जांबाज खिलाड़ी बेटी के सपने जिन्दा हैं। वह कहती है कि मां की मौत से मैं अपने आपको असहज महसूस कर रही हूं लेकिन अपने संकल्पों से कतई नहीं डिगी हूं।

एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखने वाली 200 और 400 मीटर दौड़ की राष्ट्रीय एथलीट निशू सिंह की उपलब्धियों पर नजर डालें तो यह बेटी 2018 में राष्ट्रीय ओपन एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में 400 मीटर दौड़ में स्वर्णिम सफलता हासिल कर चुकी है। निशू सिंह को जूनियर फेडरेशन कप में चार गुणा 400 मीटर रिले रेस में अपनी दिल्ली टीम को चैम्पियन बनाने का भी श्रेय जाता है। राष्ट्रीय महिला खेलकूद महोत्सव में भी निशू चांदी का पदक जीत चुकी है। यह खिलाड़ी बेटी दो-तीन साल से दिल्ली के सर्वश्रेष्ठ महिला एथलीट का पुरस्कार भी जीत रही है। निशू के पिता अशासकीय सेवक हैं, उनके लिए चार बच्चों का भरण-पोषण आसान बात नहीं है। किशन सिंह की तारीफ करनी होगी कि लाख मुसीबतों के बावजूद वह अपनी बेटी को संगीतज्ञ की बजाय एक सफल खिलाड़ी बनाना चाहते हैं।

निशू की जहां तक बात है दिल्ली की यह बेटी बहुआयामी प्रतिभा की धनी है। निशू खेल ही नहीं संगीत में भी महारत रखती है। निशू हारमोनियम और अन्य वाद्य यंत्रों के बीच जब भजन सुनाती है तो संगीत रसिकों का दिल बाग-बाग हो जाता है। 29 अक्टूबर, 1997 को रोहिनी सेक्टर-38 निवासी किशन-मीरा सिंह के घर जन्मी निशू के एक बड़ी बहन और दो छोटे-छोटे भाई हैं। निशू बताती हैं कि मुझे खेलों में पिताजी का भरपूर सहयोग मिला, उन्हीं के प्रोत्साहन से मैं खेल रही हूं। मेरे पिता को विश्वास है कि मैं एक न एक दिन देश के लिए जरूर दौड़ूंगी।

निशू बताती हैं कि मैं खुशकिस्मत हूं कि मुझे सुनीता राय और अमित कुमार जैसे ट्रेनर मिले। सुनीता मैडम जहां मुझे ट्रैक में कुलांचें भरने के गुर सिखाती हैं वहीं अमित सर हमारी फिटनेस पर ध्यान देते हैं। दिल्ली की इस प्रतिभावान बेटी का कहना है कि मैं ट्रैक पर मनोरंजन के लिए नहीं बल्कि अपने पिता और मातृभूमि को गौरव दिलाने के लिए उतरी हूं। स्नातक तक तालीम हासिल और परास्नातक कर रही निशू के जज्बे को हमें सलाम करना चाहिए कि उसने आर्थिक परेशानियों के बावजूद खेलों को अपना करियर बनाया।

 

 

 

 

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