शख्सियत,
ध्यानचंद ने क्रिकेट में भी मचाया था धमाल
जन्मदिन विशेष
ग्वालियर। हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद के हाथों में थमी हॉकी स्टिक की बाजीगरी को सभी जानते हैं, लेकिन एक बार उन्होंने क्रिकेट खेलते हुए हाथों में बल्ला थामा था और गेंद को एक बार भी विकेट के पीछे नहीं जाने दिया था। ध्यानचंद ने 1961 में माउंट आबू में शौकिया तौर पर क्रिकेट खेली थी। माउंट आबू में ध्यानचंद हॉकी खिलाड़ियों को ट्रेनिंग दे रहे थे। उसी हॉकी मैदान के पास के मैदान पर क्रिकेट की ट्रेनिंग भी चल रही थी। इसी बीच ध्यानचंद भी क्रिकेट पिच पर आ गए और शौकिया अंदाज में बल्ला लेकर बैटिंग करने लगे। गेंदबाज बॉल फेंकते जा रहे थे और ध्यानचंद बॉल को अलग-अलग दिशाओं में बाउंड्री के बाहर बड़ी कुशलता से भेजते जा रहे थे। उन्होंने कोई भी बॉल विकेटकीपर के दस्तानों में नहीं पहुंचने दी।
जब ध्यानचंद से पूछा गया कि आपने तो विकेट के पीछे गेंद ही नहीं जाने दी तब उन्होंने कहा कि हम हॉकी स्टिक के दो इंच के छोटे से ब्लेड से गेंद को पीछे नहीं जाने देते और गेंद को छिटकने नहीं देते तो फिर यह क्रिकेट का चार इंच का चौड़ा बैट है, इससे गेंद पीछे कैसे जा सकती है। क्रिकेट से जुड़ा ध्यानचंद का एक और दिलचस्प किस्सा है। महान क्रिकेटर सुनील गावस्कर जून, 1985 में एक फेस्टिवल मैच खेलने लखनऊ पहुंचे थे। इस फेस्टिवल क्रिकेट मैच के लिए भारत के उस समय के चोटी के क्रिकेट खिलाड़ी सुनील गावस्कर, कपिल देव, सैयद किरमानी, दिलीप वेंगसरकर, संदीप पाटिल आदि लखनऊ पहुंचे थे।
मैच खत्म होने के बाद रात में एक डिनर का आयोजन इन खिलाड़ियों के सम्मान में आयोजित किया गया था। उस डिनर में प्रख्यात मूर्तिकार अवतार सिंह पवार भी उपस्थित थे। अवतार सिंह पवार ख्याति प्राप्त मूर्तिकार और संस्मरणों का खजाना रहे थे। 150 से अधिक महान व्यक्तियों की मूर्ति का निमार्ण पवार के हाथों से हो चुका था। कार्यक्रम उद्घोषक ने घोषणा करते हुए कहा कि प्रख्यात मूर्तिकार कार्यक्रम में कुछ कहना चाहते हैं और साथ ही वो सुनील गावस्कर को अपने हाथों से बनाई गई एक मूर्ति भेंट करना चाहते हैं। स्टेज पर अवतार सिंह पवार पधारे और कहा, 'मैंने अपने जीवन में अनेकों महान व्यक्तियों की मूर्तियों का निमार्ण किया है, आज मैं गावस्कर को एक मूर्ति भेंट करना चाहता हूं क्योंकि आज गावस्कर की उपलब्धियां को देखते हुए मैं यह समझता हूं कि यह मूर्ति के लिए वो उपयुक्त व्यक्ति हैं और वो इसके सही हकदार हैं।'
मूर्ति को गावस्कर को भेंट करते हुए पवार ने फिर कहा कि गावस्कर साहब मेरे पास आपको देने के लिए जमीन, प्लॉट, कार आदि कुछ नहीं है किन्तु मैंने ध्यानचंद जी की एक मूर्ति बड़ी मेहनत और भावना से अपने जीवन में बनाई है, जो मैं आपको भेंट करना चाहता हूं। पवार ने वो मूर्ति गावस्कर को बड़ी ही श्रद्धा के साथ भेंट की। गावस्कर ने मूर्ति ग्रहण करते हुए कहा कि पवार साहब जिंदगी में मुझे बंगला, गाड़ी , प्लॉट बहुत मिले हैं और भी मिल जाएंगे लेकिन आपने मुझे मेजर ध्यानचंद जैसे दुनिया के महानतम खिलाड़ी की मूर्ति भेंट की है, वो मेरे जीवन की सबसे बड़ी धरोहर और उपलब्धि है।
ध्यानचंद जी की मूर्ति जीवन की अमूल्य धरोहरः गावस्कर
गावस्कर ने कहा, 'ध्यानचंद ने देश का नाम पूरी दुनिया में अपने खेल कौशल और व्यक्तित्व से रोशन किया और वो भी ऐसे समय जब हम गुलाम थे, खेलने के लिए कोई साधन नहीं थे, फिर भी ध्यानचंद विपरीत परिस्थितियों में खेलने गए और ओलंपिक खेलों में भारत के लिए एक नहीं दो नहीं बल्कि तीन गोल्ड मेडल जीतकर लाए। उन्होंने भारत वर्ष का नाम दुनिया में स्थापित कर दिया। अगर वह ध्यान सिंह से ध्यान चंद बने तो उन्होंने वास्तव में चांद की रोशनी की भांति ही भारत का नाम भी दुनिया में रोशन कर दिया। मेरे लिए ध्यानचंद जी की मूर्ति जीवन की अमूल्य और सबसे बड़ी धरोहर है और मैं अवतार सिंह पवार का धन्यवाद करता हूं कि उन्होंने मुझे ध्यानचंद जी की मूर्ति भेंट करने के लायक समझा।'