विजयी बिटिया विनेश

मैं खेल रत्न सम्मान का मान रखूंगी

श्रीप्रकाश शुक्ला

खिलाड़ियों का जीवन काफी कष्टदायी होता है। यदि प्रतिभा गरीब घर से ताल्लुक रखती हो तो कष्ट और बढ़ जाता है। विनेश फोगाट भारत की ऐसी ही महिला पहलवान हैं। भारत की यह बिटिया सबसे प्रतिभाशाली है, जिससे देश टोक्यो में पदक की उम्मीद कर सकता है। खेल रत्न विनेश भी ओलम्पिक में पदक जीतना चाहती हैं। भारत की दमखम वाली पहलवान विनेश फोगाट जब 2016 के ओलम्पिक में चोटिल हुईं तो उसके भविष्य को लेकर देश चिंतित था। मगर, वह डेढ़ साल चोट से जूझने के बाद दमखम से उठ खड़ी हुई और सोने-चांदी के तगमे बटोरने लगी। जब वह चोटिल होकर आई तो देश ने उसके संघर्ष को सलाम करते हुए उसे अर्जुन अवार्ड दिया था।

चोट के कारण एक साल से अधिक समय तक बिस्तर पर रहने के बाद उसने शानदार वापसी की। इसके बाद उसने गोल्ड कोस्ट राष्ट्रमंडल खेलों और जकार्ता एशियाई खेलों में स्वर्ण पदक जीता। अब उसे देश के सर्वोच्च खेल पुरस्कार राजीव गांधी खेल रत्न पुरस्कार से नवाजा गया है तो अब  उससे अगले साल होने वाले टोक्यो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। वह कहती भी हैं कि मैं इस सम्मान का मान रखूंगी।

कहते हैं कि संघर्षों की तपिश में ही प्रतिभाएं निखरती हैं। कांटों से गुजरते हुए ही पुष्प खिलते हैं। विनेश फोगाट के जीवन की शुरुआत भी तमाम मुश्किलों के बीच हुई। हरियाणा के दादरी स्थित गांव बलाली में 24 अगस्त, 1994 को जन्मीं विनेश के पिता राजपाल फोगाट की हत्या जमीन विवाद के चलते कर दी गई थी। बिना पिता के जीवन कितना कठिन होता है ये विनेश से ज्यादा कौन समझ सकता है। लेकिन इस मायने में विनेश भाग्यशाली हैं कि उसे द्रोणाचार्य अवार्ड से सम्मानित और बेटियों को पहलवानी सिखाने के लिये चर्चित महावीर फोगाट जैसे ताऊ मिले, जिन्होंने उसे पहलवानी का उम्दा प्रशिक्षण दिया।

उनके जीवन संघर्ष पर आधरित आमिर खान की फिल्म ‘दंगल’ ने फोगाट परिवार के संघर्ष को पूरी दुनिया से अवगत कराया। हरियाणा जैसे समाज में बेटियों को अखाड़े में उतारने का साहस भरा फैसला महावीर फोगाट ने किया। जिसका यश आज हरियाणा ही नहीं पूरा देश बटोर रहा है। विनेश की चचेरी बहन गीता व बबिता भी महिला कुश्ती में बड़ा नाम हैं। विनेश का सौभाग्य कि उसे ऐसा ताऊ और बहनों का सान्निध्य मिला और आज वह देश की नम्बर एक महिला पहलवान हैं। वर्ष 2013 में दिल्ली में हुई एशियन कुश्ती स्पर्धा 51 किलोग्राम भार वर्ग में कांस्य पदक जीतकर विनेश ने अपनी उपस्थिति दर्ज करायी थी। फिर वर्ष 2013 में आयोजित कॉमनवेल्थ कुश्ती चैमिपियनशिप में उसे रजत पदक हासिल हुआ। कालांतर में वर्ष 2015 में दोहा में सम्पन्न एशियन कुश्ती स्पर्धा में विनेश को रजत पदक मिला। फिर बैंकाक में आयोजित एशियन कुश्ती स्पर्धा में कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। 

दरअसल, रियो ओलम्पिक में चोटिल होने और लम्बे समय तक बिस्तर पर रहने के बाद वह जिस नई ऊर्जा के साथ अखाड़े में उतरी उसने पूरे देश की बेटियों में जीत का जज्बा भरा है। आज विनेश उस मुकाम पर पहुंच गई हैं कि उनसे टोक्यो ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने की उम्मीद की जा रही है। वह टोक्यो ओलम्पिक के लिए चुनी जाने वाली अकेली महिला पहलवान है। वह स्वयं कहती हैं कि इस पुरस्कार के लिये लम्बा इंतजार करना पड़ा। लेकिन जब मिला है तो खुशी दुगनी हो गई है। देश का सर्वोच्च खेल सम्मान खेल रत्न मिलने से मेरी जिम्मेदारी और ज्यादा बढ़ गई है।

दरअसल, इस बार विनेश को 53 किलो भार वर्ग में ओलम्पिक के लिए टिकट मिल चुका है, जिसकी तैयारी के लिए वह अपनी ससुराल खरखौदा में लगातार अभ्यास कर रही हैं। लॉकडाउन के शुरुआती दौर में विनेश को खासी परेशानी हुई, लेकिन जल्दी ही उसने सोनीपत में प्रशिक्षण के संसाधन उपलब्ध कराकर खूब पसीना बहाया। पहलवान पति सोमवीर ने उनके इस कड़े अभ्यास में मददगार हैं। विनेश बताती हैं कि इस बार वह 53 किलो भार वर्ग में खेल रही हैं, जिसकी खेल अवधि ज्यादा होती है। जिसके लिए मैं शारीरिक व मानसिक रूप से तैयारी कर रही हूं। इस काम में मेरे पति सोमवीर मेरे मददगार हैं और मेरे खेल के कमजोर पक्षों को दूर करने में मदद कर रहे हैं। वे नये समाधान के साथ मुझे प्रोत्साहित करते हैं। उन्हें मेरी कमजोरी और ताकत का अहसास है, जिससे मेरी बहुत सारी चिंताएं खत्म हो जाती हैं। 

वह कोरोना काल को मुश्किल वक्त बताते हुए कहती हैं कि मेरी चिंताएं बढ़ गई थीं कि मैं टोक्यो ओलम्पिक की तैयारी कैसे कर पाऊंगी। एक खिलाड़ी के लिए घर में बंद हो जाना असहनीय होता है। मैंने इस तनाव से उबरने का संकल्प किया। हमें खेल जीवन जीने का नायाब ढंग भी सिखाता है। खरखौदा के एक स्कूल में खेल की तमाम सुविधाएं जुटाई गईं और जिम की व्यवस्था की गई। छह मैटों की व्यवस्था की गई है, जो मेरी तैयारी के लिए काफी हैं। उनसे जब यह पूछा गया कि वह सोशल मीडिया पर सक्रिय क्यों नहीं रहतीं तो उनका कहना था कि मैं ऐसा कुछ नहीं करना चाहती, जिससे मेरी एकाग्रता भंग हो और लक्ष्य से मेरा ध्यान हटे। कोरोना काल में क्या उन्होंने लोगों की मदद के लिए हाथ बढ़ाया? उनका कहना है कि मैंने अपने आसपास के लोगों की मदद की कोशिश बिना किसी प्रचार के की, जो वास्तव में जरूरतमंद थे। यदि हम अपने आसपास के लोगों की मदद करना शुरू कर दें तो हमें फिर किसी तरह के फण्ड जुटाने की जरूरत न होगी।

 

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