हरियाणा जहां पैदा होते हैं खेल रत्न
हरियाणवी खेल नीति- पदक लाओ, पद पाओ
मध्य प्रदेश खेल नीति- पदक लाओ, घर बैठ जाओ
श्रीप्रकाश शुक्ला
ग्वालियर। खेल दिवस पर दिए जाने वाले राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा हो चुकी है। हमेशा की तरह इस साल भी इन पुरस्कारों में हरियाणा और महाराष्ट्र के बीच ही कांटे की टक्कर रही है। राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों में मध्य प्रदेश पर नजर डालें तो वह कहीं नहीं ठहरता, जबकि यह प्रदेश खेलों पर खर्च के हिसाब से शीर्ष राज्यों में शुमार है। इस साल के राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों में मध्य प्रदेश की एकमात्र सफलता मलखम्ब प्रशिक्षक योगेश मालवीय का द्रोणाचार्य पुरस्कार के लिए चयन है। अफसोस और चिन्ता की बात है कि पिछले डेढ़ दशक में अरबों रुपये खर्च करने के बाद भी मध्य प्रदेश एक भी खेल रत्न नहीं निकाल सका जबकि हरियाणा देश को आठ खेल रत्न दे चुका है। हरियाणा के खेल मंत्री संदीप सिंह चौथे खेलो इंडिया यूथ गेम्स के आयोजन को लेकर न केवल कमर कस चुके हैं बल्कि साफ-साफ कह रहे हैं कि खिलाड़ियों का प्रोत्साहन ही उनका एकमात्र उद्देश्य है।
राष्ट्रीय खेल क्षितिज पर राज्यवार खेलों और खिलाड़ियों के प्रदर्शन का मूल्यांकन करें तो हरियाणा और महाराष्ट्र शीर्ष पर कायम हैं। राज्यवार खेलों का विश्लेषण करने से पहले हम पाठकों को बता दें कि भारत की लगभग 133 करोड़ की आबादी में ओलम्पिक खेलने की पात्रता बमुश्किल सौ से अधिक खिलाड़ी ही हासिल कर पाते हैं। पिछले ओलम्पिक में भारत के 119 खिलाड़ियों ने अपना पौरुष दिखाया था जिसमें पी.वी. सिन्धु और साक्षी मलिक के पदकों की बदौलत किसी तरह हमारा मुल्क दुनिया के सामने शर्मसार होने से बच सका था। हमारी हुकूमतें खेलों को लेकर लाख ढींगें हांकें लेकिन सवा करोड़ की आबादी में सिर्फ एक ओलम्पिक खिलाड़ी निकलना पीठ ठोकने जैसी बात तो कतई नहीं कही जा सकती।
हॉकी, कबड्डी, कुश्ती, मुक्केबाज़ी, निशानेबाजी, एथलेटिक्स किसी भी खेल पर नजर दौड़ाएं तो वहां हरियाणा और महाराष्ट्र के खिलाड़ियों की ही बादशाहत नजर आती है। पिछले ओलम्पिक में हरियाणा के 19 खिलाड़ियों ने अपना कौशल दिखाया था। इनमें भिवानी की एथलीट निर्मला श्योराण, सोनीपत की सीमा अंतिल, कैथल के मुक्केबाज मनोज कुमार, भिवानी के विकास कृष्ण यादव, हॉकी में सविता पूनिया, पूनम मलिक, रानी रामपाल, नवजोत कौर, दीपिका ठाकुर, सरदारा सिंह और सुरेंद्र कुमार, कुश्ती में योगेश्वर दत्त, रविंद्र खत्री, हरदीप सिंह, महिलाओं में विनेश फोगाट, कविता कुमारी और साक्षी मलिक ने अपना दमखम दिखाया था। लंदन ओलम्पिक में भी कुल 81 भारतीय खिलाड़ियों में 18 खिलाड़ी हरियाणा के शामिल थे। मुक्केबाजी के सात भारतीयों में से पांच तो हरियाणा से ही थे।
हरियाणा के खिलाड़ी ओलम्पिक, राष्ट्रमण्डल और एशियाई खेलों में न केवल खेलते हैं बल्कि अपने पराक्रमी खेल से मादरेवतन का मान भी बढ़ाते हैं। खिलाड़ियों के दमखम दिखाने की जहां तक बात है साल 2010 में दिल्ली में हुए राष्ट्रमंडल खेलों में हरियाणवी खिलाड़ियों ने खूब पदक बटोरे थे। दिल्ली राष्ट्रमंडल खेलों में कुल जीते सौ से अधिक पदकों में 16 स्वर्ण, आठ रजत तथा आठ कांस्य पदक समेत कुल 32 पदक हरियाणवी खिलाड़ियों के हिस्से में आए थे। अब सवाल उठता है कि ऐसा क्या है कि हरियाणा इतने खिलाड़ी पैदा कर रहा है और दूसरे राज्यों के खिलाड़ी हरियाणा की ओर से खेलने के लिए लालायित रहते हैं। दरअसल, पिछले कुछ वर्षों से हरियाणा खुद को 'स्पोर्ट्स पावर हाउस' के रूप में प्रोजेक्ट करता रहा है, यही कारण है कि उसने ओलम्पिक और पैरालम्पिक खेलों के लिए ईनामी राशि में भारी बढ़ोत्तरी की है।
हरियाणा सरकार ओलम्पिक में स्वर्ण पदक जीतने वाले खिलाड़ी को छह करोड़, रजत जीतने पर चार करोड़ और कांस्य पदक जीतने पर 2.5 करोड़ रुपए देने को प्रतिबद्ध है। यही नहीं, उसने रियो ओलम्पिक में हिस्सा लेने वाले हरियाणवी खिलाड़ियों को 15-15 लाख रुपए की सहायता दी थी जबकि कोरोना संक्रमण को देखते हुए हरियाणा सरकार ने हाल ही टोक्यो ओलम्पिक क्वालीफाई कर चुके खिलाड़ियों को पांच-पांच लाख रुपये पेशगी देने का ऐलान किया है। ऐसा नहीं कि हरियाणा सरकार सिर्फ ओलम्पिक खेलों के लिए ही फिक्रमंद रहती है वह एशियाई खेलों में स्वर्ण जीतने पर तीन करोड़, रजत जीतने पर डेढ़ करोड़ और कांस्य पदक जीतने पर 75 लाख रुपए देती है। हरियाणा सरकार राष्ट्रमण्डल खेलों, विश्व कप या विश्व चैम्पियनशिप के विजेता खिलाड़ियों को भी भारी-भरकम राशि से सम्मानित करती है।
देखा जाए तो मध्य प्रदेश सरकार खिलाड़ियों की तैयारियों पर पैसा खर्च करने की बजाय खेल आयोजनों पर ही पानी की तरह पैसा बहाती है। पिछले डेढ़ दशक पर नजर डालें तो मध्य प्रदेश सरकार ने खेलों के नाम पर जितना पैसा खर्च किया है उसका पचास फीसदी पैसा भी अन्य राज्य सरकारों ने खर्च नहीं किया है। इस दरम्यान दो-दो बार राष्ट्रीय खेल, एशियाई खेल, राष्ट्रमण्डल तथा ओलम्पिक खेल हुए हैं लेकिन मध्य प्रदेश के एक दर्जन खिलाड़ी भी ऐसे नहीं हैं जिन्हें हम एशियाई या विश्व चैम्पियन कह सकें। कहने को मध्य प्रदेश और हरियाणा दोनों ही जगह भारतीय जनता पार्टी की ही हुकूमतें हैं लेकिन हरियाणा सरकार पदक लाओ, पद पाओ की नीति पर तो मध्य प्रदेश सरकार पदक लाओ, घर बैठ जाओ की नीति पर काम कर रही है।
देखा जाए तो हरियाणा और मध्य प्रदेश की खेल-नीति में जमीन-आसमान का फर्क है। यही वजह है कि हरियाणवी खिलाड़ी न केवल मैदानों में अपने पौरुष का जौहर दिखाते हैं बल्कि राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों में भी बाजी मार ले जाते हैं। इस साल राष्ट्रीय खेल पुरस्कारों की घोषणा होते ही हरियाणा देश को सबसे अधिक आठ खेल रत्न देने वाला राज्य बन गया है जबकि मध्य प्रदेश को आज तक कोई खेल रत्न मिला ही नहीं है। हरियाणा आबादी की दृष्टि से मध्य प्रदेश से छोटा प्रदेश होने के बावजूद यहां पदक विजेता खिलाड़ियों की लम्बी फौज है। खेल पुरस्कारों की बात करें तो 2019 तक महाराष्ट्र और हरियाणा दोनों ने देश को छह-छह खेल रत्न दिए थे जबकि अब हरियाणा के हिस्से में आठ तो महाराष्ट्र के सात खेल रत्न हो गए हैं।
देखा जाए तो खिलाड़ियों के पिछले चार साल के प्रदर्शन के आधार पर राजीव गांधी खेल रत्न देने की शुरुआत 1991-92 में हुई थी और सबसे पहले शतरंज में तमिलनाडु के विश्वनाथन आनंद को खेल रत्न मिला था। 2001 तक केवल एक ही खिलाड़ी को राजीव गांधी खेल रत्न दिया जाता था लेकिन 2002 में पहली बार एथलीट के.एम. बीनामोल तथा शूटर अंजली भागवत को खेल रत्न दिया गया। हरियाणा के हिस्से में सबसे पहला खेल रत्न 2009 में आया, जब बॉक्सर विजेंद्र सिंह को ओलम्पिक में पदक जीतने पर खेल रत्न दिया गया।
वर्ष 2019 तक भारत में 38 खिलाड़ियों को खेल रत्न दिए गए और इस साल के पांच खेल रत्नों के बाद अब इनका आंकड़ा 43 हो गया है, इनमें सबसे ज्यादा हरियाणा के आठ खेल रत्न तो महाराष्ट्र के सात खेल रत्न हो गए हैं। आबादी की दृष्टि से देखें तो हरियाणा में देश की कुल आबादी का 1.9 प्रतिशत हिस्सा रहता है लेकिन खेल रत्न में उसकी हिस्सेदारी 18 प्रतिशत हो गई है। अब तक मुल्क को हरियाणा से आठ, महाराष्ट्र से सात, दिल्ली से चार तथा पंजाब, मणिपुर, आंध्र प्रदेश से तीन-तीन खेल रत्न मिल चुके हैं। मध्य प्रदेश से अभी कोई खेल रत्न न निकलना काफी चिन्तनीय है। हरियाणा ने देश को जो आठ खेल रत्न दिए हैं उनमें मुक्केबाज विजेन्द्र सिंह (2009), पहलवान योगेश्वर दत्त (2012), पहलवान साक्षी मलिक (2016), हाकी खिलाड़ी सरदारा सिंह (2017), पैरालम्पिक एथलीट दीपा मलिक (2019), पहलवान बजरंग पूनिया (2019), रानी रामपाल (2020), पहलवान विनेश फोगाट (2020) शामिल हैं।