तंगहाली के बावजूद फहराया परचम

तीरंदाज डेनिसन सोरेन, आशीष सोरेन और वेटलिफ्टर गनी अंसारी की संघर्षगाथा
रांची।
खेलों को लेकर झारखण्ड सरकार कुछ भी कहे लेकिन वहां के खिलाड़ियों को मदद नहीं मिल रही। हालातों से टूटकर बमुश्किल खिलाड़ी अपना जीवन बसर कर रहे हैं। ऐसे ही गुरबत के दौर से गुजरने वाले खिलाड़ियों में दुमका के दो तीरंदाज डेनिसन सोरेन, आशीष सोरेन और बोकारो के वेटलिफ्टर गनी अंसारी शामिल हैं।
आशीष सोरेन ने 2006 में दुमका तीरंदाजी सेंटर में इंडियन राउंड का अभ्यास शुरू किया। इसी साल आशीष के किसान पिता का निधन हो गया। फिर भी आशीष ने हिम्मत नहीं हारी और अभ्यास जारी रखा। साल के अंत में महाराष्ट्र में आयोजित ग्रामीण राष्ट्रीय खेल में टीम इवेंट में स्वर्ण पदक जीता। 2007 में जमशेदपुर में हुई राष्ट्रीय विद्यालय तीरंदाजी प्रतियोगिता में झारखंड के लिए दो स्वर्ण और एक रजत पदक जीतकर चैंपियन बने। 2008 में महाराष्ट्र में राष्ट्रीय विद्यालय तीरंदाजी प्रतियोगिता में झारखंड का प्रतिनिधित्व किया। 2009 तक राज्यस्तरीय प्रतियोगिओं में आशीष ने आधा दर्जन से अधिक पदक जीते। यह उपलब्धि महज 14 साल की उम्र में आशीष के खाते में थी। वे बेहतर तीरंदाज बनना चाहते थे, लेकिन हालात के आगे विवश हो गए। धनुष छूट गया और कुदाल-फावड़ा हाथों ने थाम लिया। एक निश्चित समय के बाद खिलाड़ियों को सेंटर से बाहर होना पड़ता है। आशीष सोरेन को 2009 में दुमका सेंटर छोड़ना पड़ा। एक साल तक किसी तरह संघर्ष किया, लेकिन आगे बढ़ने के लिए किसी का साथ नहीं मिला। धनुष खरीदने के लिए पैसे नहीं थे। पिता के निधन ने परिवार की कमर पहले ही तोड़ दी थी। मजबूर होकर भाई के साथ मजदूरी करने लगे। 24 वर्ष के आशीष आज भी हर सुबह मजदूरी के लिए लाइन में खड़े होते हैं। आशीष आज भी वापसी करना चाहते हैं, लेकिन परिस्थिति के सामने विवश हैं। 
धनुष नहीं होने से डेनिसन को खेल छोड़ना पड़ा 
डेनिसन सोरेन ने राज्य सरकार के दुमका स्थित आवासीय तीरंदाजी सेंटर में 2009 में प्रवेश लिया। 2015 तक इस सेंटर में रहते हुए एक बार 2011 में महाराष्ट्र में उन्होंने राष्ट्रीय स्कूली तीरंदाजी प्रतियोगिता में पदक जीता। तीन बार स्टेट चैंपियनशिप में खेले। 2015 में समयावधि पूरा होने के कारण सेंटर छोड़ना पड़ा। डेनिसन के परिवार में माता-पिता के अलावा एक भाई और एक बहन हैं। माता-पिता कमाने के लिए दूसरे राज्य जाते थे। सेंटर में रहते हुए डेनिसन को सुविधाएं मिल रही थीं। सेंटर से बाहर होने के बाद बड़ा बेटा होने के कारण भाई और बहन की देख-रेख की जिम्मेदारी डेनिसन पर थी। आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि वह धनुष खरीद सकें और अभ्यास कर सकें। पढ़ाई के लिए ओडिशा के एक संस्थान में दाखिला लिया। डेनिसन बताते हैं कि पहले कहा गया था कि पढ़ाई नि:शुल्क होगी। बाद में पैसे मांगे गए तो संस्थान छोड़ दिया। संस्थान ने मेरे जमा किए गए प्रमाण पत्र भी मुझे नहीं लौटाए। वे पैसे की मांग करते हैं। 
खेतों में काम करने लगे वेटलिफ्टर गनी अंसारी
बोकारो के करमाटांड के रहनेवाले गनी अंसारी 1999 से अपने खेल जीवन की शुरुआत की। 2001 में पहली बार राज्यस्तरीय वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप में पहली बार पदक जीता। इसके बाद 2014 तक लगातार खेले। इस दौरान 10 स्वर्ण पदक राज्यस्तर पर पूर्वी क्षेत्र वेटलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में तीन बार मेडलिस्ट रहे। इसके अलावा ऑल इंडिया इंटर स्टील प्लांट वेटलिफ्टिंग चैंपियनशिप भी 10 गोल्ड मेडल गनी के खाते में हैं। सात बार राष्ट्रीय प्रतियोगिता में भी हिस्सेदारी रही है। गनी के पिता बोकारो स्टील में कार्यरत थे। जब तक पिता की नौकरी थी, तब तक खेल करियर ठीक चला।

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