खेलों का निराला सेवक हरबंश सिंह चौहान

निर्णायक के रूप में बनाई पहचान

मनीषा शुक्ला

कानपुर। कुछ लोग अपने जीवन में एक खिलाड़ी के रूप में नहीं बल्कि खेलप्रेमी और ईमानदार निर्णायक के रूप में पहचाने जाते हैं। ऐसे ही लोगों में कानपुर के हरबंश सिंह चौहान का शुमार है। राष्ट्रीय स्तर पर ताइक्वांडों में स्वर्ण पदक जीत चुके हरबंश सिंह को आज कानपुर ही नहीं समूचा उत्तर प्रदेश एक समर्पित खेल शख्सियत के रूप में जानता-पहचानता है।

खेलों को मनोरंजन मानने वालों को यह समझना चाहिए कि खेल तपस्या है, जिसमें वही संत बनता है जिसने घर-परिवार के मायामोह से परे रात-दिन मैदानों में समय बिताया हो। जहां खिलाड़ी बनना कठिन है वहीं खिलाड़ी तैयार करना भी आसान काम नहीं है। जिनमें अपने लक्ष्य के प्रति जुनून हो वही मैदानों में खिलाड़ियों के साथ पसीना बहाते हुए उन्हें सफलता के गुरु बता सकता है। कानपुर ही नहीं समूचे उत्तर प्रदेश में खेलों को लेकर क्या हो रहा है इस बात का इल्म हरबंश सिंह को हमेशा रहता है।

वर्ष 2009 से कानपुर के लाजपत नगर में गुरुनानक पब्लिक सीनियर सेकेण्ड्री स्कूल में बतौर शारीरिक शिक्षक सेवाएं दे रहे हरबंश सिंह चौहान को बचपन से ही खेलों से लगाव रहा है। 2004 में एस.डी. कालेज से बीपीएड और 2008 में छत्रपति साहू जी महाराज कानपुर विश्वविद्यालय से एमपीएड की तालीम हासिल करने वाले हरबंश सिंह चौहान अपने समय में राष्ट्रीय स्तर के ताइक्वांडो खिलाड़ी रहे हैं। इन्होंने इस खेल में राज्य और ऱाष्ट्रीय स्तर पर दर्जनों मेडल जीते हैं लेकिन हरबंश सिंह चौहान की ख्याति एक खिलाड़ी के रूप में कम एक निर्णायक के रूप में अधिक हुई है।

श्री चौहान पुणे में हुई एशियन ग्रांड प्रिक्स, विशाखापट्टनम में हुई आल इंडिया यूनिवर्सिटी एथलेटिक्स स्पर्धा, झारखण्ड में हुए राष्ट्रीय खेल, 2010 में नई दिल्ली में हुए राष्ट्रमण्डल खेल और आठ साल तक जूनियर नेशनल एथलेटिक्स में निर्णायक की भूमिका का निर्वहन कर चुके हैं। श्री चौहान को केवीआईआईटी, कानपुर यूनिवर्सिटी, केवी अरमापुर तथा मास्टर एथलेटिक्स में भी निर्णायक बतौर काम करने का मौका मिल चुका है। श्री चौहान की छवि एक ईमानदार निर्णायक के रूप में है। इन्हें कानपुर में खेलों से जुड़ा हर शख्स जानता है।

खेलपथ से बातचीत करते हुए हरबंश सिंह चौहान कहते हैं कि मुझे खेलों में जो सुकून मिलता है, उसे बयां नहीं किया जा सकता। श्री चौहान कहते हैं कि मैं बेशक बड़ा खिलाड़ी नहीं बन सका लेकिन मेरी दिली ख्वाहिश है कि मैं देश को कुछ बेहतरीन खिलाड़ी दूं। श्री चौहान कहते हैं कि खेलों में निर्णायक की भूमिका काफी चुनौतीपूर्ण होती है। खासकर राज्य और राष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में काफी दबाव होता है क्योंकि हमारे देश में जिसकी फील्ड उसकी शील्ड का चलन है। मेजबान खिलाड़ी कभी हारना नहीं चाहते ऐसे में निर्णायक को काफी धैर्य और साहस का परिचय देना होता है।

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