राहुल कुमार शुक्ला ने पॉवरलिफ्टिंग में फहराया परचम

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कानपुर का बढ़ाया गौरव

नूतन शुक्ला

कानपुर। जिस खेल को सरकार का पर्याप्त सपोर्ट और प्रोत्साहन न मिलता हो उस खेल में यदि कोई खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर पर धाक जमा दे तो उसे समाज की शाबासी मिलनी चाहिए। कानपुर के राहुल कुमार शुक्ला ने राष्ट्रीय ही नहीं अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने पराक्रम से पॉवरलिफ्टिंग में जो शोहरत हासिल की वह खिलाड़ियों के लिए एक उदाहरण है। उत्तर प्रदेश पॉवरलिफ्टिंग एसोसिएशन के सचिव राहुल कुमार शुक्ला आज इस खेल से जुड़े खिलाड़ियों को निःशुल्क प्रशिक्षण और सहायता देकर उनका मनोबल बढ़ा रहे हैं।

1998 में ग्रीनपार्क स्टेडियम से पॉवरलिफ्टिंग का आगाज करने वाले राहुल कुमार आज इस खेल में कानपुर ही नहीं उत्तर प्रदेश की पहचान हैं। पॉवरलिफ्टिंग से अपने जुड़ाव के बारे में राहुल बताते हैं कि कोई तीन दशक पहले मैं अपने पड़ोसी मनीष हजरिया के साथ ग्रीनपार्क में फिटनेस के लिए जाता था। वहां जिम में मेरी मुलाकात के.एस. चौहान से हुई जोकि पॉवरलिफ्टिंग की प्रैक्टिस के लिए वहां आते थे। श्री चौहान ने ही मुझे जबरिया पॉवरलिफ्टिंग में हाथ आजमाने को प्रोत्साहित किया। उन्होंने ही मुझे प्रैक्टिस करवाई। एक महीने ही प्रैक्टिस को हुए थे कि के.एस. चौहान ने मुझे ओपन स्टेट पॉवरलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में उतार दिया। श्री चौहान के भरोसे पर मैं सही साबित हुआ और पहले ही प्रयास में कांस्य पदक जीतने में सफल रहा। राहुल बताते हैं कि इस कांस्य पदक ने मेरे करियर में संजीवनी का काम किया और मेरा आत्मविश्वास बढ़ गया।

पदक जीतने के बाद राहुल ने निश्चय कर लिया कि इस खेल में ही वह अपना करियर बनाएंगे आखिरकार उन्होंने नियमित रूप से प्रैक्टिस शुरू कर दी। लगातार प्रशिक्षण और मेहनत के बाद हुई सब जूनियर स्टेट पॉवरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में राहुल ने गोल्ड जीतकर अपने सपनों को पंख लगा दिए। उत्तर प्रदेश में सब जूनियर का स्वर्ण जीतने के बाद राहुल कुमार शुक्ला ने टाटानगर में हुई सब-जूनियर नेशनल पॉवरलिफ्टिंग प्रतियोगिता में भी कांसे का तमगा जीत दिखाया। राहुल इस मेडल से कतई खुश नहीं थे। उनके मन में स्वर्ण पदक न जीत पाने का बेहद मलाल था। उस प्रतियोगिता में राहुल गोल्ड जीत सकते थे लेकिन तकनीकी कारणों से उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा। गौरतलब है कि उस प्रतियोगिता में सभी खिलाड़ियों ने एक समान वजन उठाया था।

राष्ट्रीयस्तर पर हासिल इस सफलता के बाद राहुल शुक्ला ने अपने अभ्यास के तरीके में बदलाव करते हुए इस खेल के गुर जानने के लिए सप्ताह में तीन दिन लखनऊ जाने का फैसला लिया। लखनऊ में राहुल के कौशल को निखारने का काम जी.एस. तिवारी और राजधर मिश्रा ने किया। नए उस्तादों का सान्निध्य पाकर राहुल कुमार के खेल में आशातीत सुधार हुआ। उसी समय लखनऊ में हुई सब-जूनियर नेशनल प्रतियोगिता में इन्होंने अपने वर्ग के सभी पुराने कीर्तिमानों को तोड़कर गोल्ड मेडल से अपना गला सजाया। इसके बाद राहुल जिस भी राष्ट्रीय प्रतियोगिता में उतरे उनके गले में कोई न कोई मेडल जरूर डला।

राष्ट्रीय स्तर पर अपनी प्रतिभा का जोरदार आगाज करने वाले राहुल कुमार को 2001 में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने का मौका मिला। फिनलैण्ड में हुई ओपन वर्ल्ड पॉवरलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में राहुल के हाथ निराशा लगी। वह वहां उम्मीद के मुताबिक प्रदर्शन नहीं कर सके। राहुल की इस असफलता का प्रमुख कारण फिनलैण्ड का मौसम था। सच कहें तो वह मौसम से तालमेल नहीं बिठा सके। खैर, इसके बाद 2004 में उज्बेकिस्तान में हुई एशियाई पॉवरलिफ्टिंग चैम्पियनशिप में राहुल ने चांदी का पदक जीतकर पिछली असफलता की कालिख को धो डाला। राहुल ने इसके बाद 2005 में एशिया बेंच प्रेस चैम्पियनशिप में भी रजत पदक जीतकर कानपुर को गौरवान्वित किया।

राहुल कुमार शुक्ला को प्रतिस्पर्धी खेल से हटने के बाद 2012 में कानपुर पॉवर लिफ्टिंग एसोसिएशन का सचिव चुना गया। श्री शुक्ला ने 2016 में अपने खर्च से पॉवरलिफ्टिंग के अभ्यास के लिए स्वयं का प्रशिक्षण संस्थान खोला। इस संस्थान में आज कानपुर के पॉवरलिफ्टरों को पूरी तरह से निःशुल्क प्रशिक्षण दिया जा रहा है। यहां से प्रशिक्षण प्राप्त कर रहे कई पॉवरलिफ्टर आज राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर कानपुर के गौरव को चार चांद लगा रहे हैं। राहुल कुमार शुक्ला इस समय उत्तर प्रदेश पॉवरलिफ्टिंग एसोसिएशन के सचिव भी हैं।

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