खेलों में चांदी की तरह चमकते रजत आदित्य दीक्षित

खिलाड़ियों की मदद के मामले में इनका कोई नहीं जवाब

मनीषा शुक्ला

कानपुर। किसी भी शहर और जिले का खेलों में विकास वहां के संगठनों की सक्रियता पर निर्भर करता है। इसे कानपुर की खुशकिस्मती कह सकते हैं कि यहां रजत दीक्षित जैसे लोग हैं जिनकी रग-रग में खेलों के समुन्नत विकास का जोश और जुनून सवार है। रजत दीक्षित की कार्यकुशलता और मददगार प्रवृत्ति इन्हें सबका प्रिय बनाती है। थ्रोबाल में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करने वाले रजत दीक्षित चूंकि अपने समय के शानदार खिलाड़ी रहे हैं यही वजह है कि वह खिलाड़ियों के मर्म को न केवल समझते हैं बल्कि उसकी हर तरह से मदद भी करते हैं।

रजत दीक्षित अच्छे खिलाड़ी ही नहीं नेकदिल इंसान भी हैं। इनके प्रयासों से अब तक कानपुर महानगर के लगभग सात हजार खिलाड़ी लाभान्वित हो चुके हैं। इनमें लगभग तीन दर्जन इंटरनेशनल तो लगभग दो सौ नेशनल खिलाड़ी शामिल हैं। रजत दीक्षित उत्तर प्रदेश ओलम्पिक संघ के स्पोर्ट्स सेल के चेयरमैन होने के साथ ही इंडियन ओलम्पिक संघ के को-आर्डिनेटर तथा हैण्डबाल फेडरेशन के सचिव पद पर रहते हुए खेलों और खिलाड़ियों का लगातार प्रोत्साहन कर रहे हैं।    

यह बात किसी से छिपी नहीं है कि हमारे देश के अधिकांश खेल संगठनों की कार्यप्रणाली निहायत गैर-जिम्मेदार हाथों में है। शीर्ष पदों पर बरसों से राजनेता, नौकरशाह और कुछ प्रभावशाली लोग कब्जा किए हुए हैं। खेल संगठन उनके लिए अपना प्रभाव क्षेत्र बढ़ाने और विदेशी यात्राएं करने का जरिया मात्र हैं। खेल और खिलाड़ियों के उद्धार में उनकी दिलचस्पी न के बराबर है। कानपुर इस मामले में कुछ अलग है। इसकी वजह रजत दीक्षित जैसे कर्मठ लोग हैं जिनके दिल में पद से कहीं अधिक खिलाड़ियों की भलाई का जज्बा समाया हुआ है। रजत खेलों का कोई भी अवसर हो वहां पहुंच कर खिलाड़ियों का हौसला जरूर बढ़ाते हैं।

रजत दीक्षित की जहां तक बात है इनका बचपन से ही खेलों से विशेष लगाव रहा है। रजत कानपुर में खेलों के विकास को लेकर हर पल कुछ नया करने की कोशिश करते रहते हैं। सौम्य और मिलनसार रजत बहुआयामी प्रतिभा के धनी होने के साथ ही खिलाड़ियों के बीच भी काफी लोकप्रिय हैं। यह लोकप्रियता इनकी कर्मठता और खिलाड़ियों की मदद करने की इच्छाशक्ति के चलते है। रजत दीक्षित ने खेलों की शुरुआत 1985-86 में जुगल देवी सरस्वती विद्या मंदिर से की और उसके बाद नैनीताल के सेंट जोसेफ स्कूल में स्केटिंग सीखी जिसमें इन्हें पहली ही प्रतियोगिता में रजत पदक हासिल हुआ।

इन्होंने सब-जूनियर और जूनियर स्तर पर खो-खो में चार नेशनल खेले तो एथलेटिक्स में स्कूल नेशनल गेमों में जलवा दिखाया। इन्हें स्कूल नेशनल खेलों की ऊंचीकूद प्रतियोगिता में सिल्वर मेडल हासिल करने का गौरव हासिल है। रजत हैण्डबाल के भी अच्छे खिलाड़ी रहे तथा सीनियर नेशनल खेलने के साथ इनका भारतीय शिविर के लिए भी चयन हुआ। रजत हैण्डबाल में बेशक भारत का  प्रतिनिधित्व नहीं कर सके पर इन्होंने थ्रोबाल में भारतीय टीम का प्रतिनिधित्व करते हुए नेपाल और बांग्लादेश की यात्राओं में अपने शानदार खेल से सभी को प्रभावित किया।

विभिन्न खेल संगठनों से वास्ता रखने के बावजूद रजत आदित्य दीक्षित बेबाकी से कहते हैं कि खेलों में भारत की सफलता का सारा श्रेय हमारे खिलाड़ियों की प्रतिभा, लगन और मेहनत को जाता है। इसमें खेल संगठनों का योगदान बहुत ही कम है। खिलाड़ियों को बढ़ावा देने के बजाय कई बार उनके रास्ते में रोड़े अटकाए जाते हैं। मैं चूंकि खिलाड़ी रहा हूं सो खिलाड़ियों की ही बात करता हूं। मैं नहीं चाहता कि खिलाड़ियों को किसी भी तरह की परेशानी का सामना करना पड़े।

देखा जाए तो अंतरराष्ट्रीय ओलम्पिक समिति के चार्टर के मुताबिक सभी राष्ट्रों के खेल संगठन स्वायत्त होते हैं। सरकार उनके कामकाज में दखलंदाजी नहीं कर सकती। स्वायत्तता का यह नियम खेल संगठनों को काम की आजादी देने के उद्देश्य से रखा गया है लेकिन, हमारे देश में खेल संगठन ही नियम-कायदों का दुरुपयोग करते हैं। खेलपथ रजत दीक्षित जैसे कर्मठ लोगों की खूबियों को प्रचारित-प्रसारित कर उम्मीद करता है कि खेल संगठनों से जुड़े नाकारा लोग इनसे कुछ सीखें और अपनी कार्यशैली में सुधार कर खेलों का भला करें।  

 

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