खेल टलने से खिलाड़ियों की वर्षों की मेहनत अकारथः निश्चल जोशी

कोरोना संक्रमण से खेलों पर पड़ा विपरीत प्रभाव

नैनीताल। कोरोना वायरस ने विश्व को जितनी क्षति पहुंचाई है उतनी ही क्षति खिलाड़ियों को भी पहुंची है। खिलाड़ी को एक दिन का खाना न मिले तो ज्यादा फर्क नहीं पड़ता लेकिन अगर उसे एक दिन भी प्रैक्टिस का मौका न मिले तो उसे मानसिक असंतुष्टि के साथ लगभग 50 दिन के खेल का नुकसान हो जाता है। कोरोना वायरस की वजह से जहां टोक्यो ओलम्पिक एक साल के लिए टल गए हैं वहीं अन्य खेलों पर भी तुषारापात हो गया है। हम कह सकते हैं कि कोरोना संक्रमण से खिलाड़ियों की वर्षों की मेहनत एक झटके में अकारथ हो गई है। लाकडाउन के बाद खिलाड़ियों का पूरी लय पर आना आसान नहीं होगा।

कोरोना संक्रमण के कारण ओलम्पिक के भविष्य पर पहले से ही खतरा मंडरा रहा था।  अमेरिका, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड द्वारा ओलम्पिक खेलों के लिए खिलाड़ी न भेजने के फैसले के बाद ही खेलों के इस महाकुंभ के टलने का दबाव बन गया था। ओलम्पिक खेलों का आयोजन 24 जुलाई से नौ अगस्त 2020 के बीच होना था अब ओलम्पिक 23 जुलाई, 2021 से होंगे। इन खेलों के टलने से जापान को काफी आर्थिक परेशानी का सामना करना पड़ा है। कोरोना से आईपीएल का आयोजन जहां रद्द हो गया वहीं अंडर-17 फुटबॉल गर्ल्स विश्व कप जोकि भारत में आयोजित होना था वह भी रद्द होता दिख रहा है।

अब अंडर-17 फुटबॉल गर्ल्स विश्व कप यदि होगा भी तो कई खिलाड़ियों के ओवरएज होने से उनके खेलने का सपना चूर-चूर हो जाएगा। सवाल यह भी कि अगले साल तक खिलाड़ी क्या अपने प्रदर्शन के चरम पर होंगे, इसमें भी संदेह है। आप सभी जानते हैं कि कोरोना की रफ्तार अभी भी विश्वभर में थमी नहीं है तो भारत में लाकडाउन का तीसरा चरण शुरू हो गया है, बहुत जगह रियायत मिली है पर खेल और खिलाड़ी अभी भी सफर कर रहे हैं। खिलाड़ी जूझ रहे हैं, बहुत से तो फिजिकल वर्क-आउट कर रहे हैं पर टीम खेलों में एक साथ प्रैक्टिस की आवश्यकता होती है, जोकि नहीं हो पा रही है। इस ब्रेक के कारण कुछ एथलीटों को जहां बेहद परेशानी का सामना करना पड़ रहा है वहीं कुछ खिलाड़ी घर पर ही खुद को फिट रखने की कोशिश कर रहे हैं।

खिलाड़ियों के लिए लाकडाउन सबसे बड़ा अवरोधक सिद्ध हो सकता है। इससे निजात पाने के लिए उन्हें अपने लक्ष्य पर अडिग रहना होगा और प्रेक्टिस जरूर करनी होगी। स्पोर्ट्स हमें हारना कभी नहीं सिखाते। खिलाड़ी या तो जीतता है या फिर सीखता है, हारता कभी नहीं है। उसका यही जज़्बा तो उसे औरों से अलग करता है। अंत में मैं अपने सभी खिलाड़ी साथियों से कहना चाहूंगा की "हौसले के तरकश में कोशिश का तीर जिंदा रखो,  हार जाओ जिंदगी में सब कुछ, फिर भी जीतने की उम्मीद जिंदा रखो"। “कठिन परिस्थितियों में कुछ लोग टूट जाते हैं, तो खिलाड़ी ऐसी परिस्थितियों में रिकॉर्ड तोड़ देते हैं।”

जयहिन्द, जय भारत।

(लेखक बीसीसीआई लेवल-ए कोच हैं तथा बीएलएम एकेडमी सीनियर सेकेण्ड्री स्कूल, नैनीताल में कार्यरत हैं)

 

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