हर दर्द विकास की ओर ले जाता है
दर्द का नियम बिल्कुल गणित के नियमों की तरह होता है। यदि आप नियम को अच्छी तरह समझ कर उसका अभ्यास करते रहते हैं तो आप उसमें पारंगत हो जाते हैं। दर्द का नियम है कि ‘हर दर्द विकास की ओर ले जाता है, आपका परिचय आपसे कराता है और मंजिल तक पहुंचाता है।’ जब भी व्यक्ति का सामना किसी दर्द से होता है तो वह स्वयं को अच्छी तरह से जानने लगता है। दर्द व्यक्ति को इस बात का सामना करने के लिए प्रेेरित करता है कि वह कौन है और कहां है? दर्द पर व्यक्ति की प्रतिक्रिया ही उसे आगे खड़ा होने अथवा पीछे होने के लिए तैयार करती है। कोई भी व्यक्ति यह नहीं कहेगा समस्याएं उसके जीवन में आती रहें। लेकिन कई व्यक्ति इस बात को अवश्य स्वीकार करेंगे कि दर्द के बीच ही उन्हें जीवन की सबसे बड़ी सफलता मिली।
एक दंपति हार्वर्ड यूनिवर्सिटी के कैंपस में पहुंचे। वे दोनों बहुत ही सीधे-सादे लग रहे थे। दंपति सचिव के पास जाकर बोेले कि उन्हंे प्रेसिडंेट से मिलना है। सचिव ने एक नज़र उनके सीधे-सादे व्यक्तित्व और कपड़ों पर डाली। काफी देर प्रतीक्षा करने के बाद उसने उन्हें प्रेसिडेंट से मिलने के लिए कहा। प्रेसिडेंट के केबिन में पहुंचकर पत्नी बोली, ‘सर, हमारा बेटा हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में पढ़ता था। वह बहुत होशियार था, पर दुर्भाग्यवश एक साल पहले उसका निधन हो गया।’ यह कहकर पत्नी की आंखें नम हो गईं। पति बोले, ‘हमारे प्रतिभाशाली बेटे का आकस्मिक निधन एक बहुत बड़ा दर्द था। उस दर्द से उबरने के लिए हमने एक निर्णय लिया है। प्रेसिडेंट बोले, ‘कैसा निर्णय।’ पति बोले, ‘हम अपने बेटे की याद में इस कैंपस में एक मेमोरियल बनवाना चाहते हैं।’ दंपति की बातों से प्रेसिडेंट भी भावुक होकर बोले, ‘यह बड़ी दुखद बात है, लेकिन हम कैम्पस में हर मृत छात्र की मूर्ति नहीं लगवा सकते।’ इस पर पति-पत्नी दोनों एक साथ बोले, ‘नहीं, नहीं हम यहां मूर्ति नहीं बल्कि एक बिल्डिंग बनवाने की सोच रहे हैं।’ दंपति की बातें सुनकर प्रेसिडेंट आश्चर्य से अपनी सीट पर खड़े हो गए। वह उन दोनों के साधारण कपड़ों पर उड़ती हुई नज़र डालकर बोले, ‘क्या आपको पता है कि एक बिल्डिंग कितने की बनती है? करीब 70 लाख डॉलर की इमारतें हैं यहां।’ यह सुनकर पत्नी पति से धीरे से बोली, ‘क्या एक यूनिवर्सिटी आरंभ करने में इतना ही पैसा लगता है तो फिर क्यों न अपनी ही एक यूनिवर्सिटी आरंभ की जाए?’ पति ने इस पर सहमति जताई। प्रेसिडेंट दोनों की बातों से बेहद उलझन में थे। इसके बाद मिस्टर व मिसेज लीलैंड स्टेनफोर्ड वहां से चले गए। कुछ समय बाद उन्होंने कैलिफोर्निया में एक यूनिवर्सिटी की स्थापना की, जिसे आज स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी के नाम से जाना जाता है।
इस यूनिवर्सिटी की स्थापना का निर्णय मिस्टर एवं मिसेज स्टेनफोर्ड ने बेहद दर्द और पीड़ा भरे समय में लिया लेकिन उनका यह सूझबूझ और समझदारी भरा निर्णय एक अमर निर्णय बन गया।
जीवन उतार चढ़ाव भरा ही होता है लेकिन मानवीय स्वभाव केवल चढ़ाव को पसंद करता है। यह संभव नहीं है। चढ़ाव पर चढ़ने के लिए नीचे से ही ऊपर जाना होता है। पक्षियों के पंख होते हैं लेकिन आसमान में उड़ान भरने के लिए वे भी नीचे से ही उड़ते हैं। कोई पक्षी सीधा आसमान में जन्म नहीं लेता, उसका जन्म वृक्षों या ज़मीन के किसी कोने में ही होता है। जीवन की मुश्िकलें और दर्द किसी न किसी रूप में हर व्यक्ति को मिलनी ही हैं। यही जीवन का नियम है, इसीलिए दर्द के नियम को अच्छी तरह से जान लेना ही श्रेयस्कर है। जीवन के दर्द व्यक्ति को पहले जैसा नहीं रहने देते, वे उसे अंदर तक हिला देते हैं। कई बार तो उसके संपूर्ण अस्तित्व को ही बदल देते हैं। अंतर इतना है कि दर्द के नियम को जानने वाले आगे की तरफ बढ़ने को तैयार हो जाते हैं। इस नियम से अनभिज्ञ पीछे की ओर बढ़ते चले जाते हैं और एक दिन अपने अस्तित्व को भी मिटा लेते हैं।
प्रसिद्ध लेखिका वर्जीनिया सेटिर का कहना है कि, ‘जीवन वैसा नहीं है, जैसा इसे होना चाहिए। यह तो वैसा ही है, जैसा यह है। फर्क इस बात से पड़ता है कि आप इससे कैसे निपटते हैं।’ जीवन में घटने वाली कई घटनाओं को नियंत्रित किया जाना असंभव है लेकिन उन पर होने वाली प्रतिक्रियाओं को परिपक्वता के साथ नियंत्रित किया जाना संभव है। दर्द के नियम को समझने के लिए आपको स्वयं को निम्न बातों में कुशल बनाना है :-
दर्द भरे अनुभवों की भावना का तुंरत विश्लेषण कर उनमें सबक खोजने की कोशिश करना।
दर्द का विश्लेषण कर, सबक खोजना और इसके फलस्वरूप प्रोएक्टिव अंदाज में परिवर्तन करना।
ये दो तरीके आपको दर्द के नियम में कुशल बना देंगे और साथ ही साथ आपके जीवन को भी।
-रेनू सैनी