महाराष्ट्र के सिर फिर सजा खेलो इंडिया का ताज
जनान्दोलन बनें खेलो इंडिया युवा खेल
श्रीहरि नटराज और शिवांगी शर्मा का रहा जलवा
श्रीप्रकाश शुक्ला
खेल सिर्फ मनोरंजन का साधन ही नहीं बल्कि ये स्वस्थ राज्य और राष्ट्र का भी सूचक हैं। गुवाहाटी में 13 दिन तक हुए तीसरे खेलो इंडिया युवा खेलों में महाराष्ट्र के खिलाड़ियों ने अपनी बादशाहत कायम रखते हुए इस बात के संकेत दिए हैं, उनका भविष्य उज्ज्वल है। इन खेलों में महाराष्ट्र ने 78 स्वर्ण, 77 रजत और 101 कांस्य पदकों के साथ अपनी लगातार दूसरी खेलो इंडिया यूथ गेम्स ट्रॉफी जीती। महाराष्ट्र पिछले संस्करण में भी सिरमौर रहा था। हरियाणा 68 स्वर्ण, 60 रजत और 72 कांस्य पदकों के साथ दूसरे जबकि दिल्ली 39 स्वर्ण, 36 रजत और 47 कांस्य पदकों के साथ तीसरे स्थान पर रहा। कर्नाटक ने आखिरी दिन चार स्वर्ण पदक जीतते हुए उत्तर प्रदेश को पछाड़कर चौथे स्थान पर कब्जा जमाया। भारत का प्रतिनिधित्व कर चुके तैराक श्रीहरि नटराज ने इन खेलों में सर्वाधिक आठ पदक जीते जिनमें पांच स्वर्ण और तीन रजत पदक शामिल हैं। असम की शिवांगी शर्मा ने भी तैराकी में पांच स्वर्ण और दो रजत जीतते हुए खेलो इंडिया यूथ गेम्स की सबसे सफल महिला खिलाड़ी रहीं।
खेलो इंडिया युवा खेलों के तीसरे संस्करण में 37 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के लगभग साढ़े छह हजार खिलाड़ियों ने 20 खेल स्पर्धाओं में अपने कौशल का प्रदर्शन किया। इन खेलों में कुल 80 नए कीर्तिमान बने जिनमें 56 कीर्तिमान बेटियों ने अपने शानदार कौशल और दमखम से तोड़े। खेलों के इस समागम में चार यूनिटों का खाता भी नहीं खुला तो कई बड़े राज्यों उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और बिहार का प्रदर्शन निराशाजनक कहा जाएगा। खेलो इंडिया युवा खेलों का पहला संस्करण नई दिल्ली में सम्पन्न हुआ था, जबकि दूसरा संस्करण पुणे तथा तीसरा गुवाहाटी में सम्पन्न हुआ।
पहले खेलो इंडिया गेम्स में हरियाणा चैम्पियन बना था। हरियाणा ने तब सर्वाधिक 38 स्वर्ण, 26 रजत और 38 कांस्य पदक जीते थे। 2018 के खेलो इंडिया स्कूल खेलों में महाराष्ट्र 38 स्वर्ण, 32 रजत तथा 42 कांस्य पदक जीतकर दूसरे तथा मेजबान दिल्ली 25 स्वर्ण, 29 रजत तथा 40 कांस्य पदक के साथ तीसरे स्थान पर रहा। खेलो इंडिया युवा खेलों का दूसरा संस्करण पुणे में सम्पन्न हुआ था। दूसरे संस्करण में महाराष्ट्र ने 85 स्वर्ण, 62 रजत और 81 कांस्य सहित कुल 228 पदक जीतकर ओवरऑल ट्रॉफी जीती थी। हरियाणा 62 स्वर्ण, 56 रजत और 60 कांस्य पदक सहित 178 पदक जीतकर दूसरे तथा दिल्ली 48 स्वर्ण, 37 रजत और 51 कांस्य पदक सहित 136 पदक जीतकर तीसरे स्थान पर रहा। देखा जाए तो खेलो इंडिया यूथ गेम्स में कई बड़े राज्य जो कारनामा नहीं कर पाए उसे छोटे-छोटे राज्यों ने कर दिखाया।
खेलो इंडिया के तीसरे संस्करण में कर्नाटक ने अपने 32 में से 21 स्वर्ण तैराकी में जीते, जोकि किसी भी प्रदेश के लिए एक बड़ी बात है हालांकि बाकी क्षेत्रों में भी कर्नाटक के युवा खिलाड़ियों को ध्यान देने की जरूरत है। असम जैसे छोटे से राज्य की युवा जलपरी शिवांगी शर्मा ने तैराकी में पांच स्वर्ण और दो रजत पदक हासिल करते हुए सर्वश्रेष्ठ महिला खिलाड़ी होने का गौरव हासिल किया। दरअसल, इन खेलों में महाराष्ट्र को चैम्पियन बनाने में उसके तैराकों का विशेष योगदान रहा। खेलो इंडिया यूथ गेम्स के तीसरे संस्करण में महाराष्ट्र के तैराकों ने तरणताल से 18 स्वर्ण सहित कुल 46 पदक निकाले जोकि मध्य प्रदेश के कुल पदकों के बराबर हैं। हरियाणा की जहां तक बात है उसके पहलवान और मुक्केबाज काफी शक्तिशाली हैं लेकिन गुवाहाटी में उसके चार मुक्केबाज फाइनल में उलटफेर का शिकार हुए।
खेलो इंडिया यूथ गेम्स प्रतिभावान खिलाड़ियों को अपनी प्रतिभा दिखाने का शानदार मंच है। अगर युवा चैम्पियनों के लिए बेहतर ट्रेनिंग और कोचिंग की व्यस्था की जाए तो ये देश के बेहतरीन खिलाड़ी अंतरराष्ट्रीय स्तर की प्रतियोगिताओं में देश का नाम रोशन कर सकते हैं। सरकार के अच्छे प्रयासों के बावजूद इन खेलों को जनान्दोलन बनाने की जरूरत है। बेहतर होगा इन खेलों में उम्रदराज खिलाड़ियों की जगह उन प्रतिभाओं को मौका मिले जिनमें देश का नाम रोशन करने की अपार सम्भावनाएं हैं। इन खेलों में उम्रदराज खिलाड़ियों की प्रतिभागिता से कम उम्र खिलाड़ियों का मनोबल टूटता है। खेलो इंडिया के तीसरे संस्करण में उम्रदराज खिलाड़ियों की सहभागिता से इन खेलों का महत्व काफी कम हो जाता है।
युवाओं को खेलने का अवसर देने की यह केन्द्र सरकार की अच्छी पहल है, जरूरत पारदर्शितापूर्ण माहौल निर्मित करने की है। इतना ही नहीं जिन बड़े राज्यों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा, उनमें सुधार कैसे हो इसके भी प्रयास होने चाहिए। इन खेलों में उत्तर प्रदेश का पांचवें, राजस्थान का ग्यारहवें, मध्यप्रदेश का बारहवें तथा बिहार का 28वें स्थान पर रहना चिन्ता की बात है। देखा जाए तो इन खेलों में महाराष्ट्र के 256 पदकों के मुकाबले उत्तर प्रदेश को 87, राजस्थान को 51, मध्यप्रदेश को 46 तथा बिहार को सिर्फ नौ ही पदक मिले हैं। खेलो इंडिया युवा खेलों से पूर्व देश के दूर-दराज की प्रतिभाओं को खुद को साबित करने का मौका नहीं मिलता था। उन्हें अपना टैलेंट दिखाने के लिए उचित प्लेटफॉर्म नहीं मिलता था, लेकिन जब से खेलो इंडिया की शुरुआत हुई है, हर बच्चे को खुद को साबित करने का मौका मिला है। अब हर स्कूल की अपनी टीम होती है। अब हर स्तर से बच्चे आगे निकल रहे हैं।
भारत सरकार खेलो इंडिया स्कीम के तहत प्रतिभाओं को न केवल खेलने का मंच मुहैया करा रही बल्कि उन्हें सालाना पांच लाख रुपये की मदद भी प्रदान कर रही है, इसे खेल मंत्रालय का स्वागत योग्य कदम कहा जा सकता है। सरकार की टारगेट ओलम्पिक पोडियम सिस्टम स्कीम उन खिलाड़ियों के लिए किसी सौगात से कम नहीं है, जोकि पैसे के अभाव में समय से पहले खेलों से नाता तोड़ लेते थे। टाप्स स्कीम के तहत खेलों में अच्छा करने वाले खिलाड़ियों को 50 हजार रुपये महीने की आर्थिक मदद दी जाती है। साथ ही प्रतियोगिताओं में शिरकत करने का खर्च भी सरकार ही वहन करती है। कामयाब खिलाड़ियों को सरकार अपने खर्चे पर प्रशिक्षण के लिए बाहर भेजती है। सब कुछ अच्छा होने के बावजूद प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को सरकारी सुविधाओं का ईमानदारी से लाभ मिले, इस बात का ध्यान रखा जाना भी बेहद जरूरी है। आज खेलो इंडिया युवा खेल एक महोत्सव का रूप ले रहे हैं। इन खेलों में भारत के हर कोने से प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का निकलना सुखद संकेत है। भारत में प्रतिभाओं की कमी नहीं है। सवा सौ करोड़ का देश, 35 से कम उम्र के 65 प्रतिशत नौजवान चाहें तो ईमानदार प्रयासों से खेलों में भारत की तकदीर और तस्वीर बदल सकते हैं।
देखा जाए तो खेलों में भारत के फिसड्डी होने का सबसे प्रमुख कारण स्कूली स्तर पर बच्चों में खेल प्रोत्साहन का अभाव है। भारत में शिक्षा प्रणाली भी ऐसी है जहां स्कूलों में खेल गैर-शैक्षिक गतिविधि माने जाते हैं। मोदी सरकार ने इस परम्परा को तोड़ते हुए खेलों को फर्श से अर्श तक पहुंचाने का जो मंतव्य बनाया है, उसमें सुधार की काफी गुंजाइश है। खेलों में भारत को महाशक्ति बनाने के लिए हमें चीन की खेल संस्कृति को नजीर के रूप में लेना चाहिए। चीन में प्रतिभाओं को बहुत कम उम्र में ही चुन लिया जाता है। वहां अभिभावक की बजाय खेलों के जानकार यह तय करते हैं कि किस प्रतिभाशाली खिलाड़ी में किस खेल की काबिलियत है। चीन में इन प्रतिभाओं को ज्यों ही नेशनल सेण्टर में दाखिला मिलता है उनकी जवाबदेही सरकार की हो जाती है। भारत में जिस उम्र में बच्चे को खेलने की आजादी मिलनी चाहिए हम उस पर शिक्षा का बोझ लाद देते हैं।
अब वक्त की मांग है कि देश में हर तहसील या उपखण्ड स्तर पर खेल स्कूल स्थापित किए जाएं और वहां खेल ही प्रमुख पढ़ाई हो। स्कूलों में ऐसे अत्याधुनिक खेल परिसरों का निर्माण किया जाए जहां खिलाड़ियों को हर सुविधा उपलब्ध हो। इन स्कूलों में उन चुनिंदा प्रतिभाओं को तराशा जाए जिनमें हुनर की कमी न हो। अगर हम 10-12 साल के बच्चों को लेकर इस तरह से तैयारी करेंगे तो बहुत जल्दी ही बेहतरीन परिणाम मिलने लगेंगे। बेहतर होगा जो खिलाड़ी देश का प्रतिनिधित्व करते हैं उन्हें सरकार प्रतिमाह वाजिब भत्ता दे ताकि हमारी युवा तरुणाई खेलों को करियर के रूप में देखे, इससे देश में खेल संस्कृति विकसित होगी और प्रतिभाएं खेलों की ओर उन्मुख होंगी।
आज भारत में क्रिकेट, बैडमिंटन, कुश्ती, कबड्डी, फुटबाल और हॉकी जैसे खेलों में लीग प्रणाली परवान चढ़ने लगी है ऐसे में जरूरी है कि अन्य खेलों में भी ऐसी ही पहल हो ताकि अन्य खेलों के खिलाड़ियों को भी बेहतर अवसर और आर्थिक स्थिरता मिल सके। मोदी सरकार यदि गुरु-शिष्य परम्परा की वाकई फिक्रमंद है तो उसे सभी खेल संघों में भी सफाई अभियान चलाकर संगठनों का बेहतर प्रबंधन और अच्छे खिलाड़ियों को तैयार करने का जिम्मा पेशेवर तथा सक्षम पूर्व खिलाड़ियों व प्रशिक्षकों को दिया जाना चाहिए। खेलो इंडिया कार्यक्रम जब तक जनान्दोलन नहीं बनेगा तब तक भारत खेलों की महाशक्ति नहीं बन सकता। खेलों में युवाओं की व्यापक प्रतिभागिता को बढ़ावा देने तथा उत्कृष्टता का विकास करने के लिए ही खेल मंत्रालय ने खेलो इंडिया को मूर्तरूप दिया है।
खेलो इंडिया से मध्य प्रदेश को मिलीं पांच स्वर्ण परियां, मेडल टैली में 12वां स्थान
गुवाहाटी में सम्पन्न खेलो इंडिया यूथ गेम्स से मध्य प्रदेश को पांच स्वर्ण परियां मिली हैं। मध्यप्रदेश के कुल 46 पदकों में 20 पदक 19 खिलाड़ी बेटियों ने जीते हैं। इन खेलों में अनुष्का कुटुम्बले ने टेबल टेनिस, मुस्कान किरार ने तीरंदाजी, नीरू ने निशानेबाजी तो प्रियांशी प्रजापति और पूजा जाट ने कुश्ती में स्वर्ण पदक जीते। प्रदेश की पांच बेटियों ने चांदी तो 10 बेटियों ने कांसे के पदकों से गले सजाए। शूटर नीरू ने निशानेबाजी की मिक्स ट्रैप स्पर्धा में आकाश कुशवाह के साथ स्वर्ण तो एकल ट्रैप स्पर्धा में चांदी का पदक जीता। खेलो इंडिया के तीसरे संस्करण में मध्य प्रदेश 12वें स्थान पर रहा। पुणे में हुए दूसरे खेलो इंडिया संस्करण में भी मध्य प्रदेश को 12वां स्थान ही मिला था। पिछले साल प्रदेश के खिलाड़ियों ने जहां आठ स्वर्ण पदक जीते थे वहीं इस बार उसके खाते में 15 स्वर्ण पदक दर्ज हैं। गुवाहाटी में मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों ने 15 स्वर्ण, 11 रजत तथा 20 कांस्य पदक जीते। मध्य प्रदेश के स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ियों में अर्जुन वास्कले ने 3000 मीटर स्टिपलचेज, विवेक भालाफेंक, संदीप कुमार पोलवाल्ट, इकराम अली डिस्कस थ्रो, सोहेल अख्तर लम्बीकूद, मुस्कान किरार तीरंदाजी, चिराग विद्यार्थी तीरंदाजी, सुनील डावर 1500 मीटर दौड़, अनुष्का कुटुम्बले टेबल टेनिस, आकाश कुशवाह-नीरू मिक्स ट्रैप शूटिंग, प्रियांशी प्रजापति कुश्ती, पूजा जाट कुश्ती, अमित राठौर बैडमिंटन, विश्वजीत सिंह कुश्ती तथा हिमांशु श्रीवास मुक्केबाजी शामिल हैं। देखा जाए तो गुवाहाटी में सफलता हासिल करने वाले खिलाड़ियों में अधिकांश खिलाड़ी उन एकेडमियों के हैं, जहां उन्हें हर तरह की सुविधाएं मिलती हैं। इनमें दो खिलाड़ी भारतीय खेल प्राधिकरण भोपाल तथा दो खिलाड़ी भारतीय सेना (जबलपुर) के हैं। प्रदेश के 46 पदकों में 12 पदक उन खिलाड़ियों ने जीते हैं जिन्हें सरकार की तरफ से कतई मदद नहीं मिलती। प्रदेश के खिलाड़ियों की इस सफलता के बावजूद प्रदेश सरकार को तैराकी सहित उन खेलों की तरफ ध्यान दिए जाने की जरूरत है, जहां सर्वाधिक पदक दांव पर होते हैं।
सरकार की अच्छी पहल
खेलो इंडिया यूथ गेम्स में पदक अर्जित करने वाले प्रदेश के खिलाड़ियों को राज्य शासन द्वारा प्रोत्साहन राशि दिए जाने की घोषणा स्वागतयोग्य कदम है। मुख्यमंत्री कमलनाथ ने गुवाहाटी में आयोजित खेलो इंडिया यूथ गेम्स में मध्य प्रदेश के खिलाड़ियों के प्रदर्शन की सराहना की और पदक विजेता खिलाड़ियों को बधाई देते हुए स्वर्ण पदक विजेता खिलाड़ी को एक लाख रुपए, रजत पदक विजेता को 75 हजार और कांस्य पदक विजेता खिलाड़ी को 50 हजार रुपए की प्रोत्साहन राशि दिए जाने की घोषणा की है।