ये खेल है तुम्हारा, खिलाड़ी तुम ही हो कल के
हम को मिटा सके ये जमाने में दम नहीं
हम से जमाना खुद है जमाने से हम नहीं
मशहूर शायर रहे जिगर मुरादाबादी ने शायद युवाओं को सोचकर ही ये शायरी लिखी होगी क्योंकि युवा वह पीढ़ी है जिसके मजबूत कंधों पर ही देश का भविष्य टिका होता है, लेकिन अगर कहीं यह कमजोर हो जाते हैं तो राष्ट्र भी अंधकार में जा सकता है। मगर खेल के मैदान पर इस देश के युवा नित-नए आयाम रच रहे हैं।
'उठो, जागो और तब तक मत रुको जब तक मंजिल प्राप्त न हो जाए' का संदेश देने वाले युवाओं के प्रेरणास्रोत, स्वामी विवेकानंद की जयंती पर नजर डालते हैं देश के उन युवा खिलाड़ियों पर जो अपने-अपने खेल में न सिर्फ देश का नाम रोशन कर रहे हैं बल्कि दुनियाभर के खिलाड़ियों के सामने प्रेरणापुंज भी बने हुए हैं।
युवा माने ऊर्जा। ऊर्जा माने कार्य क्षमता। कार्य क्षमता में जो आगे बढ़ गया वही अपनी ऊर्जा के साथ न्याय कर पाता है। वुशु जैसा खेल जो ऊर्जा, ताकत, दम-खम और स्टामिना पर टिका है, उसमें 22 वर्षीय प्रवीण कुमार ने विश्व खिताब जीत पूरी दुनिया में तिरंगे का मान बढ़ाया। हरियाणा के रोहतक निवासी प्रवीण अक्तूबर 2019 में फिलीपींस में हुई चैंपियनशिप में 28 साल के इतिहास में विश्व चैंपियन बनने वाले भारत के पहले पुरुष खिलाड़ी बने। उनसे दो साल पहले पूजा कादियान स्वर्ण पदक जीतने वाली देश की पहली खिलाड़ी बनी थीं। वुशु में मुक्के और पैर दोनों से हमले किए जाते हैं। कुश्ती की तरह एक-दूसरे को उठाकर पटक भी सकते हैं। इस शारीरिक दमखम और बेहद चुस्ती-फुर्ती वाले खेल में भारत की स्वर्णिम उपलब्धि यह बताती है कि भारतीय युवा किस तरह हर खेल में आगे बढ़ रहे हैं।
मुक्केबाजी में अमित की अमिट छाप
गति सही दिश में बढ़े उसे ही प्रगति कहते हैं। युवा जिस गति के साथ इस देश की प्रगति में आ रहा है उसके जज्बे, सोच और एप्रोच को सही दिशा देने का काम हमारा समाज ही करता है। अगर अमित पंघाल के पास एक दूरदृष्टि भाई नहीं होता तो शायद ही कभी वह वर्ल्ड बॉक्सिंग चैंपियनशिप में इतिहास रच पाते।16 अक्टूबर 1995 को हरियाणा के रोहतक जिले में जन्में अमित, सितंबर 2019 को बॉक्सिंग के इस सबसे बड़े इवेंट में सिल्वर जीतने वाले पहले भारतीय पुरुष मुक्केबाज बने थे। बड़े भाई अजय खुद एक बेहतरीन मुक्केबाज थे, लेकिन परिवार दोनों भाईयों में से किसी एक ही ट्रेनिंग का खर्च वहन कर सकता था, तब वह अजय ही थे, जिन्होंने सामने आकर अपने छोटे भाई अमित को प्रशिक्षण दिलाने पर जोर दिया। लगातार चुनौतियों पर पारा पाते गए अमित पंघाल इकलौते भारतीय मुक्केबाज है, जिन्होंने यूरोप के सबसे पुराने और प्रतिष्ठित प्रतियोगिता स्ट्रांदजा मेमोरियल में लगातार दो बार गोल्ड मेडल जीता।
शतरंज के प्रग्गनानंधा
भारत आज उस मोड़ में खड़ा है, जहां से उसके दोबारा विश्व गुरू बनने का सपना साकार होगा। देश की औसत आयु 29 वर्ष है, जो भारत को दुनिया के नक्शे में सबसे युवा राष्ट्र बनाता है। एक तपस्वी बचपन ही सफल भविष्य की नींव रखता है, ऐसे में आर. प्रग्गनानंधा को भूल जाना बेईमानी ही होगी। महज 12 साल 10 महीने की उम्र में वे भारत के सबसे छोटे और दुनिया के दूसरे सबसे छोटे ग्रांडमास्टर बन गए। भारत के महान शतरंज खिलाड़ी विश्वनाथन आनंद भी 18 साल की उम्र में ग्रांडमास्टर बन पाए थे। प्रग्गनानंधा की उम्र भले ही कम हो, लेकिन उनके इरादे आसमां जितने ऊंचे हैं। आर प्रग्गनानंद को प्यार से प्रग्गू कहा जाता है। अब इस लिटिल ग्रैंड मास्टर का अगला लक्ष्य विश्व चैंपियन बनना है।
कुश्ती के दीपक
हरियाणा के लोग अपनी सभ्यता, परंपरा और मेहनत के बीज को कुछ यूं बोते हैं, कि पूरा देश तरक्की से हरा-भरा हो जाता है। खेलों में तो इस राज्य का कोई सानी नहीं। इस सूबे की मिट्टी को अपने शरीर पर मलकर कई पहलवानों ने देश को कुश्ती में मेडल दिलवाए हैं। दीपक पूनिया भी उन्हीं में से एक है। झज्झर के रहने वाले दीपक ने छत्रसाल स्टेडियम में सुशील कुमार, बजरंग पूनिया जैसे पहलवानों को देखकर कुश्ती के दांवपेच में महारत हासिल की। दीपक ने जब कुश्ती शुरू की थी तब उनका लक्ष्य इसके जरिए नौकरी पाना था, जिससे वह अपने परिवार की देखभाल कर सके। मगर ओलंपिक मेडलिस्ट सुशील की सलाह, 'कुश्ती को अपनी प्राथमिकता बनाओ, नौकरी तुम्हारे पीछे भागेगी।' अब दीपक पूनिया देश के कई और पहलवानों के रोल मॉडल बन चुके हैं।
मुक्केबाजी की निखत
हक के लिए लड़ना। अन्याय के खिलाफ आवाज उठाना। यहां तक की सत्ता से टकरा जाना ही युवाओं की पहचान है। एक ऐसी ही एथलीट हैं निखत जरीन। 23 वर्षीय इस युवा महिला मुक्केबाज को जब लगा कि, उनके साथ गलत हो रहा है तो उन्होंने अपनी आवाज खेलमंत्री और देश के शीर्ष खेल हुक्मरानों तक पहुंचा दी। निखत ने भारतीय मुक्केबाजी संघ के उस फैसले को टक्कर दे दिया, जिसमें मैरीकॉम को बिना क्वालीफायर खेले ही टोक्यो ओलंपिक के लिए भारतीय बॉक्सिंग की टीम में शामिल कर लिया गया था। निखत के लंबे संघर्ष के बाद बॉक्सिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया को एक मैच का आयोजन करवाना पड़ा। हालांकि निखत अनुभवी मैरीकॉम के सामने नहीं टिक पाई। ओलंपिक खेलने का सपना, सपना ही रह गया, लेकिन अपने हक के लिए आवाज बुलंद करने वाली निखत को जमाना याद रखेगा।
क्रिकेट में यशस्वी का यश
हर इंसान की जिंदगी में संघर्ष होता है। विपरित हालातों को जो पार कर जाता है, वही यशस्वी बन पाता है। उत्तर प्रदेश के भदोही जिले के सुरियावां निवासी यशस्वी जायसवाल का सपना क्रिकेटर बनना था। अपने इस ख्वाब को पूरा करने के लिए यशस्वी ने जी-तोड़ मेहनत की। त्याग किया, पेट पालने के लिए आजाद मैदान में राम लीला के दौरान पानी-पूरी और फल बेचे। कई रात भूखे पेट सोए, लेकिन टूटे नहीं। बस आगे बढ़ते गए और आज बन चुके हैं विश्व रिकॉर्डधारी। विजय हजारे ट्रॉफी 2019 में मुंबई की ओर से खेलते हुए यशस्वी ने दोहरा शतक ठोका। इस पारी के बूते ही उन्हें टीम इंडिया में पहुंचने की पहली सीढ़ी आईपीएल मिली, जहां इस 18 वर्षीय बल्लेबाज को राजस्थान रॉयल्स ने दो करोड़ 40 लाख रुपये में खरीदा। अंडर-19 वर्ल्ड कप 2020 टीम का हिस्सा रहे यशस्वी से इस टूर्नामेंट में बेहतर प्रदर्शन की उम्मीद होगी।
संघर्षों के नवदीप
26 वर्षीय नवदीप की गिनती मौजूदा समय में भारत के सबसे तेज गेंदबाजों में की जाती है। वे लगातार 150 किमी प्रति घंटा के आसपास की रफ्तार से गेंद फेंकने में सक्षम हैं। नवदीप की पारिवारिक पृष्ठभूमि बेहद दिलचस्प है। दादा करम सिंह सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिंद फौज में ड्राइवर थे। पिता हरियाणा सरकार में ड्राइवर की नौकरी करते थे। मेहनती सैनी ने जिंदगी में बेहद उतार-चढ़ाव देखें। नवदीप के करियर को परवान चढ़ाने में गौतम गंभीर के योगदान का सैनी आज भी जिक्र करना नहीं भूलते। नवदीप ने टेनिस बॉल से क्रिकेट खेलने की शुरुआत की। टूर्नामेंट में प्रति मैच के लिए 250 से 500 रुपये तक पॉकेट मनी मिलती थी। नवदीप के संघर्ष से हमें सीख मिलती है कि खुद पर विश्वास रखना सीखो, क्योंकि खुद पर विश्वास रखें बिना जीवन में सफलता संभव नहीं।
इतिहास रचेंगे फवाद!
कहते हैं पूत के पांव पालने में नजर आ जाते हैं। फवाद मिर्जा भी उन्हीं में से एक हैं। फवाद के पूर्वज 1808 में ईरान से भारत आए थे। मकसद था घोड़ों का व्यापार। ब्रिटिश कॉलोनी और मैसूर राज्य के साथ उनके संबंध इतने मधुर बन गए कि वह हिंदुस्तान के ही होकर रह गए। इसी परिवार की सातवीं पीढ़ी के फवाद ओलंपिक के घुड़सवारी इवेंट में भारत का प्रतिनिधित्व करेंगे। टोक्यो ओलंपिक में उनसे देश को उम्मीद होगी। खास बात यह है कि 20 साल बाद कोई भारतीय घुड़सवार देश के लिए इस इवेंट में दावेदारी ठोकने जा रहा है। इसमें न तो इक्वेस्ट्रीयन फेडरेशन ऑफ इंडिया (ईएफआई) का योगदान है और न ही खेल मंत्रालय की टॉरगेट ओलंपिक पोडियम स्कीम (टॉप्स) का वह हिस्सा हैं।
देश की बेटी हिमा दास
जो तुम्हारे सपनों से डरते हैं, उड़ान से पहले तुम्हारे पर काटने को तैयार बैठे हैं। हिमा दास के जीवन में भी कई मुश्किलें आईं, लेकिन यह धाविक हंसते-हंसते अपने हर लक्ष्य सो साधती रहीं। असम के एक गांव से निकली हिमा की उम्र भले ही 20 साल हो लेकिन, उन्हें पता है कि संघर्ष से कभी घबराना नहीं चाहिए, क्योंकि संघर्ष जितना बड़ा होगा, सफलता उतनी ही बड़ी मिलेगी। ढिंग एक्सप्रेस के नाम से मशहूर भारत की धाविका हिमा दास ने 2019 में एक महीने के भीतर अलग-अलग खेलों में कुल छह गोल्ड मेडल जीतकर खूब सुर्खियां बटोरी लेकिन फिर अहम मौके पर ओलंपिक में क्वालीफाई करने से चूक गई। हिमा की जिंदगी, हमें बताती है कि खुद पर विश्वास रखना चाहिए, क्योंकि खुद पर विश्वास रखें बिना जीवन में सफलता संभव नहीं।