पिता की हिम्मत बंधाती हाकी बेटियां

गरीब की बेटियों के जज्बे को सलाम

श्रीप्रकाश शुक्ला

ग्वालियर। कहा जाता है कि अगर कुछ कर गुजरने की चाहत हो तो जिन्दगी की कोई भी बाधा बड़ी नहीं लगती। कुछ ऐसी ही कहानी हॉकी हिमाचल प्रदेश की कप्तान सृष्टि भोजगी की है। सृष्टि ने इस मुकाम तक पहुंचने के लिए काफी संघर्ष किया। उसका सपना टीम इंडिया में शामिल होकर देश के लिए खेलने का है। मूल रूप से हिमाचल प्रदेश के सिरमौर जिले के गांव माजरा निवासी सृष्टि के मुताबिक उसके पिता का छोटा सा सैलून है। इसी सैलून में होने वाली आमदनी से घर का खर्च चलता है। पिता की आमदनी इतनी नहीं है कि वह उसकी हर इच्छा पूरी कर सके। इस वजह से कई बार दूसरों की मदद लेनी पड़ी। मसलन कोच उसे फूड सप्लीमेंट लेने के लिए कहते थे तो वह अपने सीनियर्स से मांगती थी। वे उसकी मदद कर देते थे। बकौल सृष्टि वह अपने पैरों पर खड़े होकर अपने पिता को सैलून की बड़ी दुकान खुलवाना चाहती है। देखा जाए तो भारतीय महिला हाकी टीम की अधिकांश बेटियां गरीब घरों से ही ताल्लुक रखती हैं।

सृष्टि ने बताया कि उसके गांव की लड़कियां हॉकी खेलने जाती थीं। उन्हें देखकर उसने भी खेलना शुरू किया। उसके गांव में ही छोटा सा ग्राउंड है, जिसमें उन्हें हॉकी की ट्रेनिंग दी जाती थी। दूसरे साल में ही उसका स्टेट की टीम में चयन हो गया। अब तक वह तीन स्कूल नेशनल और दो सब जूनियर नेशनल खेल चुकी है। वह टीम की कप्तानी भी कर चुकी है। सृष्टि का कहना है कि पुरुष सीनियर हॉकी टीम के कप्तान मनप्रीत सिंह उसके रोल मॉडल हैं। वह बड़े कूल माइंड होकर खेलते हैं। सृष्टि को गायन और नृत्य का शौक है।

मध्य प्रदेश हॉकी एकेडमी टीम की खिलाड़ी ज्योति सिंह ने कुछ साल पहले ही हॉकी खेलना शुरू किया था। उसकी फुफेरी बहन भी हॉकी खेलती है। उसी को देखकर उसने हॉकी खेलना शुरू किया था। उसके पिता भी पहले खिलाड़ी थे तो उन्होंने भी उसे पूरा सपोर्ट किया। वह ग्वालियर एकेडमी में प्रेक्टिस करती है। एक साल में ही उसने पहला सब जूनियर नेशनल टूर्नामेंट खेला, जिसमें उसकी टीम को कांस्य पदक मिला था। ज्योति सब जूनियर नेशनल और जूनियर नेशनल खेल चुकी है। वह सुबह-शाम तीन-तीन घंटे प्रेक्टिस करती है। उसे हॉकी खेलने के अलावा बुक्स पढ़ना व सिंगिंग पसंद है। वह दुनिया की बेस्ट प्लेयर बनना चाहती है। उसका कोई रोल मॉडल नहीं, बल्कि वह दूसरों के लिए रोल मॉडल बनना चाहती है।

रांची की खिलाड़ी सुषमा के मजदूर पिता छोटेलाल हॉकी स्टिक के पैसे न होने पर बांस की स्टिक जुगाड़ते रहते तो हिमाचल की सृष्टि को उनके पिता ने छोटे से सैलून की कमाई से टीम की कप्तानी तक पहुंचा दिया। जूनियर नेशनल हॉकी खेल चुकीं सुषमा को पेनाल्टी शूटआउट में गोल मारने में महारत हासिल है। सुषमा का खिलौना भी पापा, बिछौना भी पापा। श्रमिक पिता की हाकी बेटियां अपनी मेहनत-मशक्कत, विवेक और सफलता से हर दिन 'फॉदर्स डे' मनाती हैं। झारखंड के रांची जिला मुख्यालय से चालीस किलोमीटर दूर केरसई प्रखंड के बासेन पंचायत स्थित कारवारजोर गांव की सुषमा के हौसलों को तमाम विपरीत परिस्थितियां कमजोर नहीं कर पाईं। उनके पिता छोटेलाल बड़ाइक पेशे से मजदूर हैं। एक वक़्त था, जब हॉकी स्टिक के पैसे न होने पर पिता छोटेलाल सुषमा के लिए बांस की स्टिक का इंतजाम किया करते। उन्होंने अपनी बेटी की राह में गरीबी को कभी आड़े नहीं आने दिया। होनहार बेटी को भी वर्ष 2016 में पंद्रह साल से भी कम उम्र में सीनियर झारखंड महिला टीम में चुन लिया गया। सैफई (उ.प्र.) में आयोजित पांचवीं हॉकी इंडिया सीनियर नेशनल चैंपियनशिप के सेमीफाइनल सुषमा के ही शूटआउट ने पहली बार झारखंड टीम को फाइनल में पहुंचाया। सुषमा के पिता छोटेलाल बताते हैं कि बेटी की जरूरतों को पूरा करने के लिए उन्हे कई बार ज्यादा मजदूरी करनी पड़ी है। आज उन्हे अपनी बेटी की कामयाबी पर गर्व होता है।

सुषमा ने शुरुआती शिक्षा उत्क्रमित प्राथमिक विद्यालय करंगगुड़ी से प्राप्त की है। वहीं के फादर बेनेदिक्त कुजूर ने सुषमा को हॉकी की एबीसीडी सिखाई। उसके बाद 2012 में सुषमा का सिमडेगा में आवासीय हॉकी सेंटर के लिए चयन हो गया। उसके बाद से तो सुषमा ने कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। उसने अपनी टीम को कई पदक दिलाए। सुषमा ने ही सबजूनियर नेशनल 2014 के सेमीफाइनल में पेनाल्टी शूटआउट में गोल कर पहली बार झारखण्ड टीम को उपविजेता का तमगा दिलाया था। सिरमौर (हिमाचल) के करीब दो हजार की आबादी वाले सृष्टि के गांव माजरा में तो जैसे हर युवा का दिल हॉकी के लिए ही धड़कता रहता है। इस गांव में अल सुबह खेल के मैदान में अभ्यास के लिए युवाओं का हुजूम उमड़ पड़ता है। इसी गांव की ओर से सीता गोसाई और गीता गोसाई नेशनल खेल चुकी हैं। गांव माजरा में सृष्टि के पिता का एक छोटा सा सैलून है। इसी सैलून की आमदनी से घर का खर्च चलता है। पिता की आमदनी इतनी नहीं रही कि वह बेटी की हर इच्छा पूरी कर पाते।

इस वजह से हॉकी में सृष्टि की गहरी अभिरुचि का सम्मान करते रहने के लिए कई बार उनको दूसरों की मदद लेनी पड़ी। मसलन, कोच उसे फूड सप्लीमेंट लेने के लिए कहते तो पिता को इधर-उधर लोगों के सामने हाथ फैलाना पड़ता ताकि उसका हौसला कम न हो। ऐसे में सृष्टि को अपने सीनियर्स से मदद मिल जाया करती। अब तो सृष्टि पूरी तरह से अपने पैरों पर खड़ी होकर अपने पिता का सैलून और बड़ा कराने के सपने देखती है। सृष्टि बताती हैं कि जब वह अपने गांव की लड़कियों को मैदान पर हॉकी खेलने जाते देखतीं तो हॉकी थामने के लिए उनका भी मन मचल उठता। आखिरकार, एक दिन वह भी उसी टोली में शामिल हो चलीं। अपने गांव के उस छोटे से ग्राउंड में उन्हें भी हॉकी की ट्रेनिंग मिलने लगी। सृष्टि गायन और डांस में भी रुचि रखती हैं।

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