पहलवान कविता की हिम्मत को सलाम
हिम्मत वालों की कभी हार नहीं होती
खेलपथ प्रतिनिधि
मेरठ। हिम्मत हारने वालों को कुछ नहीं मिलता जिंदगी में, मुश्किलों से लड़ने वालों के पैरों में जहां होता है। अंतरराष्ट्रीय कुश्ती खिलाड़ी कविता गोस्वामी ने अपनी हिम्मत और हौसले से इस बात को सिद्ध कर दिखाया है। कविता को जीवन में इतने दर्द मिले कि दूसरा कोई होता तो टूटकर बिखर जाता लेकिन हिम्मती कविता ने कभी हार नहीं मानी,लगातार हालात से संघर्ष किया और अपने शानदार खेल कौशल से पुलिस में नौकरी हासिल कर समाज के सामने एक नजीर पेश की।
कविता गोस्वामी जब मात्र छह साल की थीं, तब पिता सुभाष पुरी हरियाणा छोड़कर मेरठ में बस गये। करीब दस साल की उम्र में ही कविता में कुश्ती की प्रतिभा दिखने लगी। आखिरकार इस बेटी ने कुश्ती को न केवल आत्मसात किया बल्कि राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर शानदार खेल दिखाया। 2006 से 2010 तक लगातार नेशनल खेलों में स्वर्ण पदक हासिल किये तथा एशियन चैंपियनशिप में कांस्य पदक जीतकर एक नया अध्याय लिखा।
कविता का शानदार सफर जारी था, लेकिन एक घुटने की चोट ने कविता के खेल पर ब्रेक लगा दिया। घुटने की चोट के कारण कविता का बेशकीमती समय अकारथ चला गया। संघर्ष के दौर में परिवार के लोगों ने उसकी शादी का फैसला कर लिया। 21 साल की उम्र में मेरठ में ही कविता की शादी कर दी गई। शादी के बाद कुश्ती से न केवल नाता टूटा बल्कि उसके नए संघर्ष की शुरुआत हो गई।
जयपुर जाने के दौरान कविता के पेट में सात माह का गर्भ था। वहां पहुंचने के बाद पति ने उसे अनजान सी जगह पर अकेला रखा। गर्भवती होने के बावजूद पति ने उसके खाने-पीने और इलाज पर कोई ध्यान नहीं दिया। करीब एक माह बाद पड़ोस की महिलाओं ने कविता को सहारा दिया। इसी दौरान कविता को पति की दूसरी शादी के बारे में पता चला तो उसके पैरों तले से जमीन खिसक गई। आठ माह के गर्भ के साथ कविता जयपुर से अकेली दिल्ली पहुंची। वहां से पिता सुभाष पुरी उसे मेरठ ले आए। कविता का पति जयपुर में नौकरी करता था। वह छह से सात महीने तक घर नहीं आता था। इस पर ससुरालियों ने जबरन कविता को पति के साथ जयपुर भेज दिया जबकि पति कविता को जयपुर ले जाना नहीं चाहता था।
कुछ दिनों बाद कविता ने बेटे को जन्म दिया और पति से तलाक ले लिया। जिंदगी में मिले इस दर्द से टूट चुकी कविता को परिवार के लोगों ने दोबारा शादी करने के लिए कहा, लेकिन उसने इंकार कर दिया। इतना सब होने के कुछ दिनों बाद एक सड़क हादसे में कविता को गंभीर चोटें आईं। उसके हाथ और पैर की हड्डी टूट गई। लेकिन माता सरला देवी, पिता सुभाषपुरी, कोच जबर सिंह सोम, कुश्ती खिलाड़ी अलका तोमर ने कविता का हौसला नहीं टूटने दिया।
शादी से पहले ही कविता बीपीएड कर चुकी थी। हादसे से उबरने के बाद उन्होंने एक स्कूल में खेल प्रशिक्षक की नौकरी की। नौकरी के साथ-साथ चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के कुश्ती हाल में दोबारा अभ्यास शुरू किया। उसके बाद सीनियर स्टेट स्तर पर कई पदक जीते। साल 2018 में लखनऊ पुलिस ट्रायल में प्रतिभाग किया। खेल कोटे से पुलिस विभाग में सिपाही की नौकरी पाई। अब कविता उस समाज के लिए नजीर हैं जो बेटियों को अबला मानने का गुनाह करते हैं।फिलहाल कविता गाजियाबाद में खेलों में व्यस्त हैं। कविता का बेटा अपनी नानी के पास रहता है और वह पुलिस की नौकरी में हैं।