सफलता की ओर शैफाली के कदम
सचिन से प्रेरणा ले तोड़ा उन्हीं का रिकॉर्ड
पिछले दिनों जब शैफाली ने भारत की महिला क्रिकेट टीम में सबसे कम उम्र में अर्द्धशतक लगाया तो उसने सचिन तेंदुलकर के तीस साल पुराने रिकॉर्ड को भी तोड़ा। उन्हीं सचिन का जिन्हें देखने वह छोटी-सी उम्र में पापा की अंगुली पकड़कर गई थी। हरियाणा के एक मैदान में आखिरी रणजी मैच खेल रहे सचिन को देखने जितनी भीड़ स्टेडियम में थी, उतनी ही बाहर भी थी। शैफाली के बालमन को लगा कि क्रिकेटर बनना बहुत बड़ी बात है। इसमें बड़ी प्रतिष्ठा-गरिमा और पैसा है। इस घटना से शैफाली के मन में क्रिकेट का जुनून पैदा हुआ। वह गली क्रिकेट से खेल एकेडमी तक जा पहुंची और फिर अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में शैफाली के जलवे दिखायी दिये। जब खबरों में आया कि शैफाली ने सचिन तेंदुलकर का रिकॉर्ड तोड़ा है तो पिता संजीव व मां प्रवीण के आंखों में खुशी के आंसू थे। हो भी क्यों न, कहीं न कहीं वह पिता के क्रिकेटर न बन पाने के सपने पूरे जो कर रही थी।
पिछले दिनों शैफाली ने मीडिया में खूब सुर्खियां बटोरीं। दरअसल, ग्रोस आइलेट में वेस्टइंडीज के खिलाफ खेलते हुए अंतर्राष्ट्रीय टी-20 मैच में उसने 49 गेंदों में 73 रन बनाये। जिसमें छह चौके और चार छक्के भी शामिल थे। उसने महिला क्रिकेट टीम के लिये 143 रन की साझेदारी स्मृति मंधाना के साथ मिलकर की। देश को जिताया भी और साथ ही बना दिया एक रिकॉर्ड भी। इस तरह वह भारत की ओर से अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट में अर्द्धशतक लगाने वाली सबसे कम उम्र की भारतीय खिलाड़ी बन गई। उसने यह उपलब्धि पंद्रह साल 285 दिन में हासिल की, जबकि तीस साल पहले सचिन तेंदुलकर ने यह रिकॉर्ड सोलह साल 214 दिन की उम्र में बनाया था। नि:संदेह रिकॉर्ड तो रिकॉर्ड है, मगर उसका खेल उम्मीद जगाता है। शैफाली के रूप में देश को धुआंधार सलामी बल्लेबाज मिली है जो विकेटकीपिंग भी बखूबी करती है।
नि:संदेह छोटी उम्र में बड़ी कामयाबी ने इस गुमनाम-सी खिलाड़ी को रातों-रात सुर्खियों का सरताज बना दिया। उसने पूरे देश का ध्यान खींचा। वह भी एक जड़ समाज से निकलकर, जहां सार्वजनिक जीवन में लड़कियों की भागीदारी को लेकर सवाल उठते रहे हैं। यहां शैफाली के पिता संजीव की भूमिका रचनात्मक व प्रोत्साहन देने वाली थी। पिता जब गली में क्रिकेट खेलते तो वह कौतूहल से खेल को देखती। जब पिता ने उसे मौका दिया तो उन्हें लगा कि वह तो जल्दी ही उनसे बढ़िया खेलने लगी है। उन दिनों रोहतक में लड़कियों के लिये कोई क्रिकेट अकादमी भी नहीं थी। पिता ने थक-हारकर बड़ी मन्नतों से लड़कों की अकादमी में उसे दाखिला दिलाया। विडंबना यह कि उसे अपने लंबे-सुंदर बाल क्रिकेट के यज्ञ में होम करने पड़े। शैफाली सचिन की दीवानी थी। एक बार जब सचिन अपना अंतिम रणजी मैच खेलने लाहली आए तो संजीव उसे चौधरी बंसीलाल क्रिकेट स्टेडियम मैच दिखाने ले गये। सचिन के ग्लैमर ने शैफाली के अंतर्मन को गहरे तक प्रभावित किया। फिर क्रिकेट जुनून बन गया।
शैफाली के पिता रोहतक के घनीपुरा इलाके में ज्वैलरी की दुकान करते हैं। एक भाई व दो बहन वाले परिवार में शैफाली बीच की है और दसवीं कक्षा में पढ़ती है। पिता ने दूसरी बहन व भाई को भी क्रिकेट खेलने के लिये प्रेरित किया और प्रशिक्षण दिलाया है। उसकी सात साल की बहन नैन्सी ने भी क्रिकेट एकेडमी ज्वाइन की है। संजीव चाहते हैं कि बच्चे बढ़िया खेलें। बहरहाल रोहतक की रामनारायण क्रिकेट अकादमी में प्रशिक्षण और कोच अमन का मार्गदर्शन उसके स्वाभाविक खेल में निखार लाया।
दरअसल, शैफाली ने पांच साल पहले ही क्रिकेट खेलना शुरू किया है। वह पहले-पहले सुर्खियों में तब आयी जब वर्ष 2018-19 में उसने अंतर्राज्यीय महिला टी-20 टूर्नामेंट में नागालैंड के खिलाफ 56 गेंदों में 128 रन की आतिशी पारी खेली थी। फिर इसी वर्ष आईपीएल के मध्य महिला टी-20 चैलेंज में विश्व स्तरीय खिलाड़ियों के विरुद्ध अपना खेल दिखाया। हरियाणा की इस युवा सलामी बल्लेबाज ने पिछले महीने सूरत में दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अपने दूसरे टी-20 अंतर्राष्ट्रीय मैच में 46 रनों की पारी खेली थी।
खास बात यह है कि पंद्रह साल की शैफाली विकेटकीपर व भरोसेमंद सलामी बल्लेबाज है। यही वजह है कि आज उसकी तुलना सचिन तेंदुलकर से होने लगी है। उसमें सचिन सी रनों की भूख है और मैदान में टिके रहने की क्षमता भी है। खेल कलात्मक है और खेलने की क्षमता भी है। जिससे उम्मीदें जगी हैं कि अंतर्राष्ट्रीय महिला क्रिकेट जगत में वह अपना नया मुकाम बनायेगी। यदि उसका ऐसा ही स्वाभाविक खेल जारी रहा तो नि:संदेह वह महिला क्रिकेट टीम का मजबूत स्तंभ बन सकती है। नि:संदेह अवसरों की निरंतरता ऐसी प्रतिभाओं में निखार लाने में सहायक हो सकती है। देश के कोने-कोने में ऐसी कई शैफाली होंगी, जिन्हें मौका दिये जाने की जरूरत है। दरअसल, पर्याप्त अवसर न मिल पाने से कई प्रतिभाएं गुमनामी के अंधेरे में खो जाती हैं। बीसीसीआई और खेल जगत के नीति-नियंता इस दिशा में सोचें।