क्रिकेट सल्तनत पर वंशवाद का दबदबा
श्रीप्रकाश शुक्ला
दुनिया के सबसे अमीर खेल संगठन भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की सल्तनत पर वंशवाद का काबिज होना हैरत की बात बेशक न हो, पर इससे खेल की अंतरात्मा जरूर आहत हो रही है। 23 अक्टूबर को होने जा रहे भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड के चुनाव से ठीक पहले राज्य इकाइयों के हो रहे चुनावों में एक-एक कर उन्हीं परिवार के लोग चुनकर आ रहे हैं जिनके चलते भद्रजनों की क्रिकेट कलंकित हुई है। छह साल पूर्व आईपीएल में हुए ‘स्पॉट फिक्सिंग’ कांड की वजह से भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की शुचिता पर जो सवाल उठे थे, वे जिन्न की भांति पुनः निकलते दिख रहे हैं।
जस्टिस आरएम लोढ़ा समिति के गठन के बाद क्रिकेट हुक्मरानों की मर्जी पर न केवल अंकुश लगा है बल्कि बीसीसीआई को भी नया संविधान लागू करने पर विवश होना पड़ा है। इस सारी कवायद के बाद लग रहा था कि हमारे क्रिकेट बोर्ड की कमान युवा हाथों में आने के साथ क्रिकेट भ्रष्टाचार मुक्त हो जाएगी तथा उसके कामकाज में पारदर्शिता आएगी, लेकिन आजकल विभिन्न राज्य इकाइयों को हो रहे चुनावों को देखकर लगता नहीं कि इस बोर्ड में कोई बदलाव आने वाला है।
कुछ साल पहले भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड की कमान एन. श्रीनिवासन के हाथों में थी। उनके स्वामित्व वाली आईपीएल टीम चेन्नई सुपरकिंग्स की देख-रेख उनके दामाद गुरुनाथ मयप्पन किया करते थे। वह आईपीएल में अपनी टीम के लिए सट्टेबाजी के आरोपी भी बने। इस कांड के खुलासे से ही लोढ़ा समिति का गठन हुआ और उसकी सिफारिशों के आधार पर बने बीसीसीआई के नए संविधान के मुताबिक हो रहे चुनावों में मयप्पन की पत्नी रूपा को तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष चुना गया है। तमिलनाडु की जहां तक बात है तमिलनाडु प्रीमियर लीग में भी बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार के कई मामले सामने आए हैं। यह पहली बार है जब बीसीसीआई से मान्यता प्राप्त टूर्नामेंट में सट्टेबाजी होने की आशंका जताई गई है। दिलचस्प बात तो यह है कि तमिलनाडु क्रिकेट एसोसिएशन और हरियाणा क्रिकेट एसोसिएशन ने लोढ़ा समिति की सिफारिशों को लागू ही नहीं किया है। बीसीसीआई के प्रशासकों की समिति ने 23 अक्टूबर तक उन्हें संविधान में संशोधन करने को कहा है। मगर इन दोनों एसोसिएशन का मानना है कि प्रशासकों की समिति को यह अधिकार ही नहीं है कि वह अपने आदेशों के अनुसार हमारा संविधान बनवाए।
राज्य एसोसिएशन के चुनावों में जिस तरह का चलन देखने को मिल रहा है, उससे लगता नहीं है कि नए संविधान के मुताबिक होने वाले चुनावों से कोई बदलाव होने जा रहा है। राजनीति का वह फॉर्मूला यहां भी अपना लिया गया है कि दागी नेता अगर खुद नहीं आ सकता, तो उसके परिवार के लोग सत्ता सम्हालेंगे। तमिलनाडु की ही तरह सौराष्ट्र में भी हुआ है। भारतीय क्रिकेट में श्रीनिवासन की तरह ही निरंजन शाह का भी दशकों से दबदबा बना हुआ है। उन्होंने भी अपने बेटे जयदेव शाह को सौराष्ट्र क्रिकेट एसोसिएशन का अध्यक्ष चुनवा दिया है। जयदेव शाह अभी कुछ समय पहले तक प्रथम श्रेणी क्रिकेट खेलते रहे हैं। पर अब उनके हाथ में पूरे सौराष्ट्र क्रिकेट की चाबी आ गई है। इन चुनावों से एक बात साफ है कि भारतीय क्रिकेट में श्रीनिवासन और निरंजन शाह की अहमियत बनी रहने वाली है, भले ही वे खुद किसी पद पर न रहें। हमारे यहां परम्परा यह है कि केन्द्र और राज्यों में जिसकी सरकार आती है, उसके समर्थकों का अपने-अपने एसोसिएशन में दबदबा हो जाता है। मध्य प्रदेश भी इससे परे नहीं है। बीसीसीआई से प्रतिबंधित ललित मोदी का राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन पर दबदबा रहा है। अब वहां ललित मोदी के दबदबे वाले नागौर, अलवर व श्रीगंगानगर जिला संघों की मान्यता खत्म कर दी गई है। इससे मुख्यमंत्री के बेटे वैभव गहलौत का अध्यक्ष बनना तय हो गया है।
अनुराग ठाकुर को फरवरी 2017 में भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड का अध्यक्ष पद छोड़ना पड़ा था। यही नहीं उन्हें कोर्ट की अवमानना के आरोप से बचने के लिए बिना शर्त माफी मांगनी पड़ी थी। वह बीसीसीआई के अध्यक्ष पद पर काबिज रहने से कहीं पहले से हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन पर दबदबा बनाए हुए हैं। इस बार उनके भाई अरुण ठाकुर हिमाचल क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बन गए हैं। इसी तरह बीसीसीआई के उपाध्यक्ष रहे चिरायु अमीन के बेटे प्रणव अमीन बड़ोदरा क्रिकेट एसोसिएशन के अध्यक्ष बने हैं। जबकि पूर्व सचिव जयवंत लेले के बेटे इस एसोसिएशन के सचिव बने हैं। इन परेशान करने वाली खबरों के बीच एक अच्छी खबर भी है। पूर्व भारतीय कप्तान सौरव गांगुली बंगाल क्रिकेट एसोसिएशन तो दागी अजहरुद्दीन हैदराबाद के अध्यक्ष बने हैं। जो भी हो क्रिकेट में जिस तरह वंशवाद हावी होता जा रहा है उसे देखते हुए इस खेल की पारदर्शिता पर सवाल उठते ही रहेंगे।