मानव जीवन: एक सुनियोजित पटकथा
– श्रवण कुमार बाजपेयी
आज हम ऐसे विषय पर लिखने का प्रयास कर रहे हैं जहाँ न भाग्य का वश चलता है, न केवल हमारी सोच का। जीवन माता-पिता के मिलन से उत्पन्न वह अद्भुत रचना है जिसे पुत्र या पुत्री का नाम दिया जाता है। इनके बिना जीवन की परिकल्पना भी अभिशाप समान है। इनके बिना न संभव है, न संभावना। औसतन सत्तर वर्ष मानव को प्राप्त होते हैं, जिन्हें हर व्यक्ति अपनी अलग सोच, परिस्थितियों और संस्कारों के अनुसार जीता है।
हर मानव के जीवन की पटकथा अलग होती है, जिसे ब्रह्मा जी पूर्व जन्म के कर्मों के आधार पर निर्धारित करते हैं। उस पटकथा को पूर्ण करने के लिए अनेक नई गतिविधियाँ और घटनाएँ जुड़ती हैं। हर घटना एक कहानी होती है, जिसे पूरा करने के लिए कई पात्रों की आवश्यकता पड़ती है। इसे समझने के लिए हमें त्रेता और द्वापर युग की ओर देखना होगा।
त्रेता में भगवान राम का जन्म एक सुनियोजित पटकथा थी। दशरथ उसके मुख्य पात्र थे, जिनमें राम, रावण, कैकेयी, सीता, जनक और मंथरा प्रमुख भूमिका निभाते हैं। यदि इनमें से एक भी पात्र न होता, तो यह कथा अधूरी रह जाती। राम को ‘राम’ बनाने में कैकेयी की भूमिका अत्यंत महत्वपूर्ण थी, और उस भूमिका को पूरा कराने हेतु मंथरा का होना आवश्यक था। रावण का अंत तभी सम्भव हुआ जब सीता का हरण हुआ, और सीता के लिए जनक का होना जरूरी था। तभी जाकर यह दिव्य कथा पूर्ण हुई।
द्वापर में भी यही क्रम चला। कौरवों और पांडवों की कथा में अनेक पात्रों की आवश्यकता थी। उसका मुख्य उद्देश्य था- धर्म और अधर्म की परिभाषा स्थापित करना। इसके लिए द्रौपदी की आवश्यकता हुई, तो आग लगाने के लिए शकुनि जैसे पात्रों की। कृष्ण का मार्गदर्शन और अनगिनत घटनाएँ इस पटकथा का हिस्सा बनीं, जिनके बिना कहानी आगे नहीं बढ़ सकती थी।
यह प्रक्रिया आज भी जारी है। हर व्यक्ति का जन्म, बचपन, युवावस्था और वृद्धावस्था समान होते हैं; अंतर केवल पालन-पोषण, संस्कार और जीवनशैली का होता है। आपका जीवन, आपका भविष्य, आपका सुख-दुःख और मृत्यु- सब पूर्व निर्धारित हैं। जीवन को पूर्णविराम देने के लिए भी कुछ घटनाओं की आवश्यकता होती है, जिनके लिए परिस्थितियाँ निर्मित की जाती हैं। कभी किसी को दूर किया जाता है, किसी से झगड़ा कराया जाता है, तो किसी को मिलाया जाता है। सब उस नियोजित कथा के हिस्से हैं।
हम केवल पात्र हैं, मोहरे हैं, और ब्रह्मा उस पटकथा के सच्चे लेखक। कभी-कभी हम अपने ही हाथों नुकसान कर बैठते हैं, और बाद में पता चलता है कि वही नुकसान आगे की प्रक्रिया के लिए आवश्यक था। जिस सुखद घटना पर हमने हर्ष मनाया, वही कभी विनाश का कारण बन जाती है। जिसे गलती कहा, वही भविष्य में सुखद परिणाम देती है। कुछ भी वास्तव में हानिकारक नहीं होता- सब कुछ एक उद्देश्य के साथ घटता है। किसी को संतान-सुख नहीं मिलता, किसी का वैवाहिक जीवन संतोषजनक नहीं होता। यह सब भी उस नियोजित पटकथा का हिस्सा है। जीवन की हर घटना आवश्यक है; हर अनुभव अंततः कुछ अच्छा परिणाम लेकर आता है।
जब आप यह लेख पढ़ रहे होंगे, आपके जीवन की अनेक घटनाएँ इन विचारों से जुड़ती प्रतीत होंगी। किसी ने आपका अपमान किया होगा, पर वही आपको आगे सम्मान दिलाएगा; किसी से नाराज़गी भी किसी अच्छे परिणाम की ओर ले जाएगी। कभी-कभी जीवन के कुछ मोड़ इतने दर्दनाक होते हैं कि सब कुछ बिखर जाता है। परंतु समय बीतने के साथ घाव भर जाते हैं, और एक नई शुरुआत होती है- पहले से अधिक सुखद, अधिक सार्थक।
जीवन एक अनमोल उपहार है; इसे सहेजकर रखिए। कभी न कभी वह आनंद अवश्य आएगा जिसकी आपने कल्पना भी नहीं की होगी। बस एक बात याद रखिए- किसी का बुरा मत सोचिए। अपने संस्कारों को मत छोड़िए। माता-पिता और बड़ों का सम्मान, ईमानदारी और करुणा- यही जीवन के मुख्य स्तम्भ हैं। फिर देखिए, यह जिंदगी कितनी खूबसूरत लगने लगेगी। जीवन और मृत्यु के बारे में सोचना छोड़ दीजिए, जो चल रहा है उसका आनंद लीजिए। सोचने या रोने से कुछ हासिल नहीं होगा। हर घटना उसी पटकथा का अंश है जो आपको आपकी पूर्णता की ओर ले जा रही है।
