93 साल पहले दो भारतीय हॉकी योद्धाओं ने अमेरिका पर लगाया था टैरिफ

1932 लॉस एंजिल्स ओलम्पिक में ध्यानचंद और रूप सिंह ने की थी अचूक गोलंदाजी

(हेमंत चंद्र दुबे बबलू बैतूल से)

बैतूल। 12 अगस्त सन् 1932 को लॉस एंजिल्स ओलम्पिक खेलों की हॉकी स्पर्धा में एक कोख के दो सपूतों ने जो जौहर दिखाया था, उसकी दूसरी मिसाल आज तक नहीं मिली। जी हां, हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और छोटे भाई कैप्टन रूप सिंह ने हॉकी के मैदान पर अमेरिका पर 24 गोलों का भारी भरकम टैरिफ लगाया था,जो आज भी ओलम्पिक हॉकी मैदान पर अजेय कीर्तिमान के रूप में कायम है।

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप नित्यप्रति भारत को टैरिफ का जिन्न बोतल से निकाल कर डराते हैं और खौफजदा करते हैं, लेकिन ट्रंप भूल जाते हैं यह हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह का देश है जिन्होंने 1932 के लॉस एंजिल्स ओलम्पिक खेलो में अमेरिकी धरती के हॉकी मैदान पर अमेरिका पर ऐसा टैरिफ लगाया था, जो आज भी हॉकी के मैदान पर दूसरा देश किसी देश पर नहीं लगा सका है।

घटना 1932 लॉस एंजिल्स ओलम्पिक खेलो की है। आर्थिक मंदी के दौर से दुनिया गुजर रही थी और अमरीका अपनी आर्थिक बादशाहत को कायम रखने के लिए दुनिया के दूसरे मुल्कों के साथ दोयम दर्जे का व्यवहार रखे हुआ था, दुनिया के बहुत से देशों ने 1932 ओलम्पिक खेलों का इसी विरोध के चलते बहिष्कार भी किया, लेकिन भारत ने हॉकी में भाग लेने का फैसला किया, किन्तु टीम भेजने के लिए भारतीय हॉकी संघ के समक्ष आर्थिक संकट मुंहबाए खड़ा था, अनेकों प्रयास किए जा रहे थे लगता था कि आर्थिक संकट के चलते टीम को ओलम्पिक खेलो में भेज पाना सम्भव नहीं हो पायेगा।

अंततः पंजाब नेशनल बैंक से ऋण लेकर भारतीय हॉकी टीम पानी के जहाज से लॉस एंजिल्स ओलम्पिक खेलों में भाग लेने के लिए रवाना हुई। जब टीम जापान के कोबे तट पर पहुंची तो उसका स्वागत करने कोई और नहीं  क्रांतिकारी निर्वासन में रह रहे रासबिहारी बोस स्वयं पहुंचते हैं, आप इस बात की कल्पना कीजिए अंग्रेजों का शासन और उस शासन में निर्वासन में रह रहे क्रांतिकारी का भारतीय हॉकी टीम का गर्मजोशी से सार्वजनिक स्वागत करना कोई मामूली बात नहीं कही जा सकती  क्योंकि निर्वासित व्यक्ति से मुलाकात का अर्थ सजा ए मौत था।

सच कहा जाए तो भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन की बड़ी घटना है जिसने विदेशी धरती पर भारत की आजादी की मांग को  मजबूती प्रदान की। भारतीय हॉकी टीम जापान से होते हुए लॉस एंजिल्स ओलम्पिक खेलो में हिस्सा लेने पहुंची। 12 अगस्त 1932 को भारतीय हॉकी टीम का मुक़ाबला मेजबान अमेरिका से होना था, इससे पूर्व भारतीय हॉकी टीम ने जापान को 9 अगस्त, 1932 को 11 के मुक़ाबले एक गोल से पराजित करते हुए पूर्व में ही अपने इरादे जतला दिए थे। अमेरिका के समाचार पत्र लिख रहे थे विज्ञापन  निकाल रहे थे कि जो भी अमेरिका का हॉकी खिलाड़ी भारत के किसी भी खिलाड़ी को तीन गोल करने से रोक लेगा उसे नगद ईनाम दिया जाएगा।

घरेलू दर्शकों की विशाल मौजूदगी,  आर्थिक स्थिति के घमंड  से लबरेज अमेरिका  के खिलाफ गुलाम भारत आर्थिक रूप से इतना कमजोर कि बैंक से ऋण लेकर ओलम्पिक में भाग लेने गया था, आप भारतीय हॉकी खिलाड़ियों  हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद, कैप्टन रूप सिंह की मानसिक स्थिति का अंदाजा लगा सकते हो कि किस मानसिक हीनभावना के दबाव में वे मैदान में अमेरिका के खिलाफ खेलने उतर रहे होंगे।

खेल शुरू होता है और फिर दुनिया ने हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और छोटे भाई कैप्टन रूप सिंह की गोल करने की भूख को देखा, दांतों तले उंगली दबा ली 70 मिनट के खेल में लगभग लगभग हर ढाई से तीन मिनट में हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद और छोटे भाई कैप्टन रूप सिंह ने अमेरिका के खिलाफ 24 गोल जड़ दिए। दोनों भाइयों ध्यानचंद और छोटे भाई कैप्टन रूप सिंह ने हॉकी के मैदान पर 93 वर्ष पूर्व अमेरिका पर जो टैरिफ लगाया वह आज भी ओलम्पिक खेलों के हाकी मैदान पर जस का तस लगा हुआ है।

आज तक उस टैरिफ को कोई हटा और हरा नहीं सका है। अमेरिका के राष्ट्रपति डोनॉल्ड ट्रंप को समझना होगा कि जो देश गुलामी के दौर से आर्थिक संकटों से लड़ते हुए तुम्हारी ही धरती पर तुम्हारे घमंड को चकनाचूर कर सकता है तो वही देश मेजर ध्यानचंद और कैप्टन रूप सिंह से प्रेरणा लेकर, उनकी ईमानदारी, नैतिकता के दम पर आज भी तुम्हारे आर्थिक घमंड को चकनाचूर करने की दम खम रखता है। बस आज अफसोस इस बात का है कि हॉकी  के जादूगर मेजर ध्यानचंद को देश भारत रत्न मानता है लेकिन मेरे देश की सरकारें मानने को तैयार नहीं हुईं। कैप्टन रूप सिंह को उनके हिस्से का सम्मान देने को तैयार नहीं।

अमेरिका यह अच्छी तरह से समझता और जानता है कि भारत में भारत मां का मान बढ़ाने वाले भारत रत्न नहीं होते. इस देश में विल्स सिगरेट की बिक्री बढ़ाने वाले क्रिकेटर और चुनावों की पूर्व बेला में मतदाता को खुश करने वाले राजनेता भारत रत्न होते हैं।  भारत में योग्यता की कोई कीमत नहीं होती इसीलिए अमेरिका टैरिफ नाम की  आंखें दिखाने का दुस्साहस करता है। जिस दिन मेरा देश और मेरे देश की सरकारें योग्यता की कीमत करना सीख जाएंगे, उसी दिन डोनाल्ड अंकल का टैरिफ टैरिफ खेल खत्म हो जाएगा क्योंकि यह देश हॉकी के जादूगर मेजर ध्यानचंद, कैप्टन रूप सिंह का देश है जिसकी मजबूत नींव नैतिकता, ईमानदारी और सच्चाई की बुनियाद मेरे देश के नैतिक ईमानदार खिलाड़ियों और नागरिकों ने मिलकर रखी है।

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