उत्तर प्रदेश में रीजनल स्पोर्ट्स आफीसरों के नौ पद खाली

नौ आरएसओ ही सम्हाल रहे अपने अपने रीजन का कामकाज
खेलपथ संवाद
लखनऊ। एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार अंतरराष्ट्रीय पदक विजेता खिलाड़ियों को राजपत्रित अधिकारी बनाकर खेलप्रेम के लिए अपनी पीठ थपथपा रही है। रिंकू सिंह को जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी बनाये जाने का अजूबा फैसला लेकर सरकार ने कई प्रश्नों को जनम दे दिया है। एक मिडिल पास खिलाड़ी को हम जिले का सबसे बड़ा शिक्षा अधिकारी बनाकर आखिर क्या साबित करना चाहते हैं जबकि उत्तर प्रदेश में सम्भागीय क्रीड़ा अधिकारियों के नौ पद खाली हैं।
यदि उत्तर प्रदेश को खेलों में उत्तम प्रदेश बनाना है तो सबसे पहले सरकार को तेली का काम तमोली से कराए जाने से परहेज करनी चाहिए। बेहतर होगा जिन अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ियों को सरकार राजपत्रित अधिकारी बनाने जा रही है, उन्हें प्रदेश में रिक्त नौ सम्भागीय क्रीड़ा अधिकारियों के पदों पर नियुक्ति देती। सच कहें तो एक खिलाड़ी खेल और खिलाड़ी की दशा तो सुधार सकता है लेकिन हम उससे सामाजिक विकास की अपेक्षा नहीं कर सकते।
देखा जाए तो उत्तर प्रदेश में फिलवक्त नौ सम्भागीय क्रीड़ा अधिकारी अपने अपने सम्भागों में खेलों की गंगोत्री बहा रहे हैं। इन सम्भागीय क्रीड़ाधिकारियों में आले हैदर, अतुल सक्सेना, अनिमेष सक्सेना, जीतेन्द्र यादव, प्रेम कुमार, चंचल मिश्रा, भानु प्रसाद, संजय शर्मा, विमला सिंह शामिल हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश के आधे सम्भागों में ही सम्भागीय क्रीड़ा अधिकारी होंगे तो जो पद खाली हैं, उन्हें कब भरा जाएगा। देखा जाए तो निदेशालय खेल उत्तर प्रदेश नियमित पदों को भरने की तरफ गम्भीर नहीं है। प्रदेश में दर्जनों नियमित सहायक प्रशिक्षकों के पद वर्षों से खाली हैं, उन्हें भरने की बजाय विभाग फुंकी कारतूसों से खेलों का मैदान फतह करने की बेजा कोशिश कर रहा है। विभाग इन फुंकी कारतूसों पर डेढ़ लाख रुपये प्रतिमाह खर्च कर रहा है, जबकि काबिल प्रशिक्षक आउटसोर्सिंग कम्पनी टी एण्ड एम के शोषण का शिकार हैं।
खेल मंत्री गिरीश चंद्र यादव ने जब पदभार सम्हाला था, तब उन्होंने प्रदेश के तीनों स्पोर्ट्स कॉलेजों को नियमित प्रधानाचार्य देने तथा उत्तर प्रदेश खेल प्राधिकरण बनाने का भरोसा दिया था, लेकिन देखा जाए तो उनके भरोसे की हवा निकल चुकी है। सच कहें तो गिरीश चंद्र यादव पर उत्तर प्रदेश के सबसे असफल खेल मंत्रियों का ठप्पा लग चुका है, जोकि कतई गलत भी नहीं है। अब सवाल यह उठता है कि खेल निदेशालय में चल रहे जंगलराज से क्या खेल मंत्री अनभिज्ञ हैं या फिर कुछ न मालूम होने का वह स्वांग कर रहे हैं।