धरती मां की सेहत सहेजने से ही संवरेगा हमारा कल

विश्व पृथ्वी दिवस पर डॉ. मोनिका शर्मा के विचार
खेलपथ संवाद
हर इन्सान अपने घर को संवारने की सोच रखता है। जिस आंगन में उसकी जिन्दगी का बड़ा हिस्सा बीतता है, उससे प्रेम करता है। कम से कम उसे नुकसान पहुंचाने का काम तो नहीं ही करता। लेकिन विडंबना है कि धरती की जिस गोद में हमारा ही नहीं हमारी पीढ़ियों का भी जीवन संवरना है, उसके रंग छीनने में हमने कोई कसर नहीं छोड़ी। कमोबेश दुनिया के हर देश, हर समाज और हर इन्सान ने धरती मां को सहेजने के मामले में गैर-जिम्मेदारी ही दिखाई है। जिसके चलते आज रूखी, रुष्ट और रंगहीन होती धरती चिंता का विषय है।
धरती को सहेजने के मोर्चे पर आज बरती गई सजगता ही हमारे आने वाले कल को सहेज सकती है। लेकिन उजड़ती धरती और बिगड़ती आबोहवा की चेतावनी देते हालात में भी हम भविष्य की चिंताओं से मुंह फेरे बैठे हैं। कुदरत की सार-संभाल के भावों की नमी लौटाने की सोच ही नदारद है। जबकि धरती मां ही हमारी शक्ति है। हमारा जीवन पृथ्वी के आंगन में ही पलता है। बात चाहे ऊर्जा के नये स्रोत तलाशने की हो या जीवनशैली से जुड़े बदलावों की। हर पक्ष पर सही कवायद किए बिना धरती के रंग सहेजना मुश्किल है। ज्ञात हो कि पृथ्वी दिवस 2025 की थीम भी ‘आवर पावर, आवर प्लेनेट’ ही है। ‘हमारी शक्ति, हमारा ग्रह’ विषय नवीकरणीय ऊर्जा पर भी केंद्रित है। इस थीम के मुताबिक, इस ग्रह के बाशिंदों के पास ही इसे बचाने की शक्ति है। सबकी साझी कोशिशें और सजगता का भाव पृथ्वी को एक स्वस्थ और बेहतर ग्रह बना सकते हैं। जलवायु परिवर्तन व प्रदूषण से जुड़ी दूसरी समस्याओं से निपटने के लिए सजगता और सुधार के प्रयासों में भागीदारी धरती का रंग बचाने के लिए आवश्यक हैं।
मानवीय जीवन की बेहतरी धरती के रंग छीनने का मतलब खुद अपनी जिन्दगी को बेरंग करने जैसा है। जिस धरा के आंचल में हमें सब कुछ मिलता है, उसकी सेहत से ही हमारी सेहत भी जुड़ी है। यूं भी इंसानी की सेहत का हर पहलू प्रकृति से जुड़ा है। पेड़-पौधों बिन कुदरत का सूना आंगन, तरक्की के नाम पर अशुद्ध होता हवा-पानी और सहचर जीव-जंतुओं की मौजूदगी के बिना हमारा मन हो या शरीर, दोनों ही स्वस्थ नहीं रह सकते। अच्छी सेहत के बिना इन्सान के लिए भी कोई सुविधा, कोई तरक्की मायने नहीं रखती। अर्थ डे को इंटरनेशनल मदर अर्थ डे के रूप में भी जाना जाता है। मां की तरह ही धरती अपने बच्चों का ख्याल भी रखती है। अपनी प्राकृतिक सुंदरता का स्नेह और सुविधा के लिए संसाधन हम लुटाती रहती है। धरती मां अपने स्वार्थी बच्चों की हर ज्यादती सहती है। लेकिन हम बच्चे जरूरत भर का लेने के बजाय धरा की झोली ही खाली करने लगे।
संसाधनों की बचत
जो कुछ आभार के साथ लिया जाना था, उसे छीनने का दुस्साहस करने लगे। संसाधनों का सीमित इस्तेमाल करने के बजाय सुविधाजनक जीवनशैली और अंतहीन जरूरतें पूरी करने को कुदरत को ही चोट पहुंचाने लगे। हालांकि समय-समय पर प्राकृतिक आपदाओं, बढ़ती तपिश और बेमौसम गिरते पारे के रूप में धरती अपनी नाराजगी का इशारा भी करती रहती है, पर हम जानबूझकर नासमझ बने बैठे हैं। पृथ्वी की जो गोद भावी पीढ़ी की थाती है, उसे बेहद दोहन करने वाली गतिविधियों से हम रीता कर दे रहे हैं। सिर्फ पाने की सोच रखने वाले इन्सान लौटाने का भाव भूल ही चुके हैं। कम से कम पानी, हवा, मिट्टी के कुदरती रंग बचाने और हरियाली रोपने का काम तो किया ही जाना चाहिए। क्रिस डी लेसी का कहना है कि ‘तुम पृथ्वी से जो लेते हो ,उसे वापस कर देना चाहिए। यही प्रकृति का तरीका है। ‘ लौटाने का यह तरीका ही जीवनदायी सौगात के रूप में धरा को भावी पीढ़ी तक ले जाएगा।
संवारना जानती है धरा
पृथ्वी अपनी पीड़ाओं का इलाज करना जानती है। कुदरत अपने घाव खुद भर लेती है। लेकिन इंसानी स्वार्थ के बार-बार किए जा रहे प्रहार धरती का सीना छलनी करने लगे हैं। हवा-पानी से लेकर पहाड़ और जीव-जंतुओं से लेकर जंगलों तक, अपने सुख के लिए हम प्रकृति के हर पहलू को नुकसान पहुंचा रहे हैं। ये सभी हमारी ज्यादती झेल रहे हैं। जबकि धरती की गोद से रिसते नेह की नमी पर उनका भी हक़ है। मारिओ स्टिंगर के मुताबिक ‘ ये सिर्फ हमारी दुनिया नहीं है।’ सचमुच सबकी साझी ही है यह धरती। पर हम तो हवा, जमीन और पानी हर जगह मनमर्जी चला रहे हैं। बावजूद इसके पृथ्वी खुद को संवारती रहती है। सरकारें और समाज बस इतनी कोशिश करें कि पर्यावरण का कोई बिगाड़ न हो। यह सोच धरती की सुन्दरता बचाने को काफी है। हम गंदगी न फैलाएं तो नदियां खुद को साफ़ रखना जानती हैं। इंसानी गतिविधियां धुंए का गुबार न छोड़ें तो हवा अपनी स्वच्छता बनाये रखना जानती है।
ग्लोबल सिटीजन्स से जुड़ा विषय
‘आवर पावर, आवर प्लेनेट’ थीम प्रशासनिक और औद्योगिक मोर्चे पर ही नहीं, घरेलू मोर्चे पर छोटे-छोटे प्रयास करने का संदेश लिए है। नवीकरणीय ऊर्जा यानी सूर्य के प्रकाश, वायु, पानी, थर्मल एनर्जी आदि माध्यमों का उपयोग बढ़ाकर एनर्जी पैदा करने का संदेश देती है। जो प्रदूषण घटाने और क्लाइमेट चेंज से निपटने में मददगार साबित होगा। इस बार विश्व पृथ्वी दिवस का यह विषय रिन्यूएबल एनर्जी के फ्रंट पर सरकारों और इंडस्ट्रीज से उचित कार्रवाई करने का आह्वान करता है। साथ ही व्यक्तिगत रूप से ऊर्जा की खपत कम करने, कचरा घटाने, पेड़ लगाने और पर्यावरण संरक्षण में जुटे संगठनों का साथ देने का संदेश लिए है। यह थीम ग्लोबल सिटीजन्स को संबोधित करती है कि धरती के हर हिस्से के लोग कुदरत को हरा भरा रखने और सहेजने में भागीदार बनें।