दंत चिकित्सा में 2डी और 3डी इमेजिंग से आया क्रांतिकारी बदलावः डॉ. अमर शोलापुरकर

के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल के भावी दंत चिकित्सकों को मिली बहुमूल्य जानकारी

मथुरा। पिछले दो-तीन दशक में दंत चिकित्सा ने अपनी सभी शाखाओं में जबरदस्त प्रगति की है। आज के समय में 2डी और 3डी इमेजिंग विधियों से दंत चिकित्सा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया है। सरल इंट्रा-ओरल पेरियापिकल एक्स-रे से कम्प्यूटेड टोमोग्राफी, कोन बीम कम्प्यूटेड टोमोग्राफी, मैग्नेटिक रेजोनेंस इमेजिंग और अल्ट्रासाउंड जैसी उन्नत इमेजिंग तकनीक ने आधुनिक दंत चिकित्सा को काफी सरल और लाभकारी बना दिया है। यह बातें बुधवार को के.डी. डेंटल कॉलेज एण्ड हॉस्पिटल में आयोजित सीडीई कार्यक्रम में अंतरराष्ट्रीय अतिथि वक्ता डॉ. अमर शोलापुरकर, क्लीनिकल डेंटिस्ट्री एण्ड ओरल रेडियोलॉजी संकाय, कॉलेज ऑफ डेंटिस्ट्री, जेम्स कुक यूनिवर्सिटी, स्मिथफील्ड, केर्न्स, ऑस्ट्रेलिया ने यूजी, इंटर्न और पीजी छात्र-छात्राओं तथा संकाय सदस्यों को बताईं।

के.डी. डेंटल कॉलेज के ओरल मेडिसिन और रेडियोलॉजी विभाग द्वारा आयोजित सीडीई कार्यक्रम में अतिथि वक्ता डॉ. अमर शोलापुरकर ने कहा कि एनालॉग से डिजिटल रेडियोग्राफी में बदलाव ने दंत चिकित्सा प्रक्रिया को सरल बनाया है।  त्रि-आयामी इमेजिंग ने जटिल कपाल-चेहरे की संरचनाओं को जांच और गहरे बैठे घावों के शुरुआती तथा सटीक निदान के लिए अधिक सुलभ बना दिया है। डॉ. शोलापुरकर ने छात्र-छात्राओं तथा संकाय सदस्यों को जटिल मौखिक और मैक्सिलोफेशियल रोगों के निदान में 2डी और 3डी इमेजिंग की वर्तमान प्रगति तथा अनुप्रयोगों के बारे में विस्तार से जानकारी दी।

डॉ. शोलापुरकर ने कहा कि रेडियोग्राफ एक मूल्यवान निदान उपकरण है, जो दंत रोगों के निदान में नैदानिक ​​परीक्षण के सहायक के रूप में काम करता है। दंत चिकित्सा पद्धति में दो आयामी पेरियापिकल और पैनोरमिक रेडियोग्राफ का नियमित रूप से उपयोग किया जाता है। हालाँकि, दो आयामी रेडियोग्राफ की कुछ सीमाएं हैं, जिन्हें कोन बीम कम्प्यूटेड टोमोग्राफी, चुम्बकीय अनुनाद इमेजिंग और अल्ट्रासाउंड जैसी त्रि-आयामी इमेजिंग तकनीकों द्वारा दूर किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि 2-डी पारम्परिक रेडियोग्राफ अधिकांश दंत रेडियोग्राफिक आवश्यकताओं के लिए उत्कृष्ट चित्र प्रदान करते हैं। उनका प्राथमिक उपयोग दांतों और सहायक हड्डी की आंतरिक संरचना में अंतर्दृष्टि प्रदान करके नैदानिक ​​​​परीक्षण को पूरक बनाना है ताकि क्षय, पीरियोडोंटल और पेरियापिकल रोग तथा अन्य अस्थि संबंधी स्थितियों का पता लगाया जा सके।

उन्होंने बताया कि पारम्परिक रेडियोग्राफी की एक महत्वपूर्ण बाधा ऊपरी संरचनाओं का सुपरइम्पोजिशन है, जो रुचि की वस्तु को अस्पष्ट करता है। अंततः इसका परिणाम 3-डी संरचनात्मक जानकारी को 2-डी छवि पर ढहने में होता है, जिससे तीसरे आयाम में स्थानिक जानकारी का नुकसान होता है। फिल्म-आधारित रेडियोग्राफी के लिए डार्करूम की उपस्थिति और रखरखाव, रासायनिक हैंडलिंग की आवश्यकता होती है और यह प्रसंस्करण त्रुटियों से परे नहीं है। डिजिटल रेडियोग्राफी के आगमन के साथ ये सभी नुकसान दूर हो जाते हैं। यह क्रांति छवि अधिग्रहण प्रक्रियाओं में तकनीकी नवाचार और छवि पुनर्प्राप्ति तथा संचरण के लिए नेटवर्क कम्प्यूटिंग सिस्टम के विकास दोनों का परिणाम है। उन्होंने कहा कि 3डी प्रिंटिंग और वर्चुअल सर्जिकल प्लानिंग (वीएसपी) का एकीकरण ऑर्थोगैथिक और ओरल मैक्सिलोफेशियल सर्जरी में उन्नत रोगी देखभाल का मार्ग प्रशस्त करता है।

सीडीई कार्यक्रम में सभी प्रतिभागियों के लिए क्विज प्रतियोगिता का आयोजन किया गया तथा अंत में उन्हें प्रमाण पत्र प्रदान किए गए। आर.के. एज्यूकेशनल ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. रामकिशोर अग्रवाल तथा प्रबंध निदेशक मनोज अग्रवाल ने आयोजन की सराहना करते हुए कहा इससे छात्र-छात्राओं तथा संकाय सदस्यों को दंत चिकित्सा के क्षेत्र काफी मदद मिलेगी। प्राचार्य और डीन डॉ. मनेश लाहौरी ने डॉ. अमर शोलापुरकर का आभार मानते हुए कहा कि उन्होंने जो बहुमूल्य जानकारी दी उसका लाभ भावी दंत चिकित्सकों को जरूर मिलेगा। इस अवसर पर ओरल मेडिसिन और रेडियोलॉजी विभाग प्रमुख डॉ. विनय मोहन ने कहा कि इस तरह के कार्यक्रम छात्र-छात्राओं को दंत चिकित्सा के क्षेत्र में वर्तमान प्रगति के बारे में जागरूक और अद्यतन रहने में काफी मददगार साबित होंगे। कार्यक्रम का संचालन ओरल मेडिसिन एवं रेडियोलॉजी विभाग के पीजी छात्र डॉ. पीयूष रावत एवं डॉ. अंकिता ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ. अनुज गौड़ ने किया।

रिलेटेड पोस्ट्स