भारतीय हॉकी का असल उद्धारक नवीन पटनायक
खराब समय में समूची हॉकी को गोलकीपर नवीन ने लिया गोद
2036 तक हॉकी टीमों का आधिकारिक प्रायोजक उड़ीसा ही रहेगा
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली। भारतीय हॉकी एक बार फिर से पटरी पर लौटती दिख रही है। तीन साल में दो ओलम्पिक कांस्य पदक इस बात का साफ संकेत हैं कि भारतीय खिलाड़ी अब किसी टीम को हरा सकते हैं। भारतीय हॉकी के इस फौलादी बदलाव का श्रेय लेने वाले बहुत से लोग हैं लेकिन मैं इसका श्रेय उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक को ही दूंगा क्योंकि उन्होंने भारतीय हॉकी को उस समय गोद लिया जब इस पुश्तैनी खेल को लोग हिकारत की नजर से देख रहे थे।
पेरिस ओलम्पिक 2024 में कप्तान हरमनप्रीत सिंह की अगुआई वाली भारतीय हॉकी टीम ने प्ले-ऑफ मैच में स्पेन को हराकर ब्रॉन्ज मेडल जीता है। इससे पहले 2021 में टोक्यो ओलम्पिक में भी भारतीय टीम ने कांस्य पदक जीतकर घर लौटी थी। 1972 के बाद यह लगातार दूसरी बार हुआ जब भारतीय टीम ओलम्पिक में पदक ले पाई। इस उपलब्धि का मतलब है कि भारतीय टीम दोनों ओलम्पिक में सर्वश्रेष्ठ तीन टीमों में शामिल थी।
जहां तक तक इस बार के पदक की बात है तो भारतीय टीम की जीत के साथ ही अचानक सोशल मीडिया पर उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ट्रेंड करने लगे और यहां कई लोग उनका आभार जता रहे थे। कुछ लोगों के लिए यह भले ही नया हो मगर नवीन बाबू को जानने वाले समझ गए कि इसकी वजह क्या है। करीब 60 साल पहले जब नवीन पटनायक दून स्कूल में पढ़ाई कर रहे थे, तभी से उनका हॉकी प्रेम शुरू हो गया था। वे अपनी टीम के गोलकीपर थे। दून में वे संजय गांधी के सहपाठी थे और राजीव गांधी से तीन साल जूनियर थे। स्कूल के बाद नवीन इतिहास पढ़ने दिल्ली विश्वविद्यालय चले गए, फिर लम्बा अरसा अमेरिका में बिताया और 1997 में 50 वर्ष की पकी उमर में पटनायक राजनीति में आए।
इधर हॉकी में भारत 1980 के ओलम्पिक में एक गोल्ड मेडल जीत चुका था। हालांकि सोवियत संघ में हुए ओलम्पिक में उस साल अमेरिका सहित 66 देशों ने भाग नहीं लिया था। टोक्यो ओलम्पिक 2020 में जब भारतीय हॉकी टीम जाने को तैयार हुई तो 2018 में टीम इंडिया के पास कोई स्पॉनसर नहीं था। स्पॉन्सरशिप से सहारा ने अपने हाथ वापस खींच लिए थे। ऐसे में उड़ीसा के तत्कालीन मुख्यमंत्री नवीन पटनायक आगे आए और उन्होंने उड़ीसा राज्य सरकार को भारतीय हॉकी टीम (पुरुष और महिला दोनों) का स्पॉन्सर बनाया।
उड़ीसा ने एक समझौता किया जिसके तहत राज्य ने पांच साल में 120 करोड़ रुपये देने की घोषणा की, जो हॉकी के लिए बुनियादी ढांचे के निर्माण और मूल सुविधाओं पर खर्च किया जाना था। इसके अलावा, दोनों टीमों के सभी खर्च- बोर्डिंग, प्रशिक्षण, शिक्षा और प्रतिभाओं को बढ़ावा देने का खर्च- राज्य के खजाने से वहन किए गए। राज्य के तत्कालीन खेल मंत्री तुषारकांति बेहरा के मुताबिक, उसी साल उड़ीसा ने अपने खेल बजट, जिससे हॉकी टीमों को पैसा जाता है, को 265 करोड़ रुपये से बढ़ाकर 370 करोड़ रुपये कर दिया।
यह पहली बार था जब कोई राज्य राष्ट्रीय टीम को स्पॉन्सर कर रहा था। 2018 में भी उड़ीसा ने अपने बिल्कुल नए कलिंगा स्टेडियम में पुरुष हॉकी विश्व कप की मेजबानी की थी। उस समय, जब नवीन पटनायक से पूछा गया कि केंद्र को जो करना चाहिए था, उसकी जिम्मेदारी उनका राज्य क्यों ले रहा है, तो उनका बड़ी साफगोई भरा जवाब था, "किसी को तो जिम्मेदारी लेनी ही होगी, ताकि देश और खेल को शर्मिंदगी से बचाया जा सके।"
2020 में होने वाला टोक्यो ओलम्पिक कोरोना वायरस की वजह से टल गया। जब 2021 में यह आयोजित हुआ तो हॉकी टीम की मेहनत के साथ ही ये पटनायक की कोशिशों का ही फल था कि भारत की पुरुष हॉकी टीम ने ओलम्पिक में 41 साल का सूखा समाप्त किया और देश के लिए कांस्य पदक लेकर आई। पिछले एक दशक से भी ज़्यादा समय से हॉकी उड़ीसा राज्य में लोगों का पसंदीदा खेल रहा है। उड़ीसा में एक प्रचलित कहावत है कि बच्चे हॉकी स्टिक हाथ में लेकर चलना सीखते हैं। जो लोग हॉकी स्टिक नहीं खरीद पाते, वे केंदू की टहनी या बांस की टहनी को मोड़कर काम चला लेते हैं।
उड़ीसा में यह खेल इतना लोकप्रिय है कि हॉकी टूर्नामेंट को त्योहार की तरह मनाया जाता है। ओडिशा में मज़ाक में कहा जाता है कि दूल्हे के पास आलीशान नौकरी या सम्पत्ति होना ज़रूरी नहीं है, लेकिन उसके नाम हॉकी मेडल या गोल होना चाहिए। पिछले कुछ सालों में राज्य ने दिलीप टर्की, इग्नेस टर्की, लाजरस बारला और सुनीता लाकड़ा जैसे दिग्गज खिलाड़ी दिए हैं।" 2021 तक उड़ीसा ने कुछ प्रमुख टूर्नामेंटों की मेजबानी कर ली थी, जिसमें 2018 में विश्व कप, 2014 में चैम्पियंस ट्रॉफी और 2017 में हॉकी विश्व लीग फाइनल शामिल हैं। उड़ीसा सरकार ने यह सुनिश्चित किया कि भारतीय खिलाड़ियों को विश्व स्तरीय टूर्नामेंटों में खेलने और अपने कौशल को निखारने के लिए वैश्विक प्रतिभाओं के साथ सम्पर्क का मौका मिले।
जिस साल भारतीय हॉकी टीम ने ओलम्पिक का सूखा ख़त्म किया, उसी साल राजधानी भुवनेश्वर से लगभग 370 किलोमीटर दूर उत्तरी उड़ीसा के सुंदरगढ़ जिले के 17 ब्लॉकों में 17 एस्ट्रोटर्फ पिच बनाने के लिए राज्य सरकार ने 190 करोड़ रुपये खर्च करने की घोषणा की। इसी जगह को हॉकी का उद्गम स्थल भी माना जाता है। उड़ीसा सरकार ने बुनियादी ढांचे को विकसित करने को प्राथमिकता दी ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उभरते हॉकी खिलाड़ियों को इससे परिचित होने और अंतरराष्ट्रीय टूर्नामेंटों में खेलने वाली पिचों जैसी पिच पर खेल के गुर सीखने का अवसर मिले।
देश में पिछले कुछ सालों में हॉकी के विकास के लिए सिर्फ नवीन पटनायक का नाम लिया जाना सही नहीं होगा। उनके साथ ही सीएम पटनायक के तत्कालीन सचिव और अब बीजेडी के नेता वीके पांडियन भी तारीफ के उतने ही हक़दार हैं जिहोंने इनमें से कई सरकारी योजनाओं को अमली जामा पहनाया। पांडियन खुद भी एक खिलाड़ी रह चुके हैं। 2023 में पुरुष हॉकी विश्व कप का आयोजन भी भुवनेश्वर में कलिंगा हॉकी स्टेडियम और राउरकेला में 20,000 सीटों वाले बिरसा मुंडा अंतरराष्ट्रीय हॉकी स्टेडियम में किया गया था।
2024 में भी जब पेरिस ओलम्पिक में टीम ब्रॉन्ज मेडल लेकर आई तब उड़ीसा के पूर्व मुख्यमंत्री ने भारतीय ओलम्पिक पुरुष हॉकी टीम से बात की और 8 अगस्त को पेरिस में उनके शानदार प्रदर्शन के लिए उन्हें बधाई दी। 77 वर्षीय पटनायक उस समय बहुत खुश दिखे जब उन्होंने कांस्य पदक मैच में स्पेन को हराने के कुछ ही क्षण बाद उड़ीसा के हॉकी खिलाड़ी अमित रोहिदास सहित खिलाड़ियों से वीडियो कॉल पर बात की। हॉकी टीम के सितारों में से एक अमित रोहिदास ने नवीन पटनायक को उनके शासन में उड़ीसा सरकार की ओर से हॉकी खिलाड़ियों और महासंघ, हॉकी इंडिया को दिए गए समर्थन के लिए धन्यवाद दिया। नवीन पटनायक ने वीडियो कॉल पर कहा, "उड़ीसा और पूरे भारत की ओर से भारतीय टीम को बहुत-बहुत बधाई। हमें आप पर बहुत गर्व है।" भाजपा के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार ने हाल ही में घोषणा की है कि 2036 तक पुरुष और महिला दोनों टीमों का आधिकारिक प्रायोजक उड़ीसा ही बना रहेगा।