खिलाड़ियों को संदेश सपने देखना कभी बंद न करो

पेरिस पैरालम्पिक खेलों में शरणार्थी दल भी मचाएगा धमाल
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
ऐमिलियो कास्त्रो ग्रुएसो अब इटली में रहते हैं और पेरिस 2024 में व्हीलचेयर फेंसिंग में हिस्सा लेने के लिए तैयार हैं। जब वो 16 वर्ष के थे, तो उनकी मां का निधन हो गया। चार साल बाद उन्हें एक और यंत्रणा से गुजरना पड़ा जब एक सड़क हादसे में उनके पांव निष्क्रिय हो गए। उन्होंने दिव्यांग खिलाड़ियों को संदेश दिया कि सपने देखना कभी बंद न करो।
शरणार्थी पैरालम्पिक खिलाड़ियों का दल, दुनियाभर में 12 करोड़ जबरन विस्थापितों और 1.2 अरब विकलांगजन का प्रतिनिधित्व करेगा। पैरालम्पिक गेम्स, विकलांगता की अवस्था में रह रहे एथलीट के लिए सबसे बड़ा खेलकूद आयोजन है, जिसे हर चार वर्ष में एक बार आयोजित किया जाता है। पैरा एथलेटिक्स, पैरा पावरलिफ्टिंग, पैरा टेबल टेनिस, पैरा ताइक्वान्डो, पैरा ट्राएथलॉन, व्हीलचेयर फेंसिंग। अन्तरराष्ट्रीय पैरालम्पिक समिति के अध्यक्ष ऐंड्रयू पार्सन्स ने बताया कि वैसे तो सभी पैरालम्पिक खिलाड़ियों के पास सहनसक्षमता के अविश्वसनीय अनुभव हैं। मगर, शरणार्थियों के तौर पर युद्ध व उत्पीड़न से होकर गुजरना और फिर उनका पैरालम्पिक खेलों तक पहुंच कर स्पर्धाओं में हिस्सा लेना, बेहद प्रेरणादायक है।
उन्होंने कहा कि इन एथलीट्स ने पेरिस 2024 तक पहुँचने के लिए अविश्वसनीय दृढ़ता व संकल्प का परिचय दिया है और इनसे विश्व में हर शरणार्थी को उम्मीद मिलेगी। शरणार्थी पैरालम्पिक टीम, खेलकूद के रूपान्तरकारी असर को रेखांकित करती है। ऐमिलियो कास्त्रो ग्रुएसो अब इटली में रहते हैं और पेरिस 2024 में व्हीलचेयर फेंसिंग में हिस्सा लेने के लिए तैयार हैं। जब वो 16 वर्ष के थे, तो उनकी मां का निधन हो गया। चार साल बाद उन्हें एक और यंत्रणा से गुजरना पड़ा जब एक सड़क हादसे में उनके पांव निष्क्रिय हो गए। धमकियों व खतरों की वजह से उन्हें अपनी मातृभूमि छोड़कर भागना पड़ा। वे एक नए देश में एक व्हीलचेयर में पहुंचे, और उन्हें स्थानीय भाषा नहीं आती थी और न ही उनकी मदद करने के लिए कोई था।
अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने के बाद, उन्होंने अपनी कहानी साझा करने के लिए एक किताब लिखने की ठानी, मगर यह महसूस किया कि यदि वे एक पदक जीतने वाले एथलीट होते तो शायद अधिक संख्या में लोग उनकी किताब पढ़ते। ऐमिलियो कास्त्रो ग्रुएसो ने अपनी अब तक सबसे बड़ी उपलब्धि के तौर पर, मई 2024 में ब्राजील में अमेरिकी चैम्पियनशिप में व्हीलचेयर फ़ेंसिंग में कांस्य पदक जीता। उनके अनुभव ने दर्शाया है कि विकट हालात व कठिनाइयों के बावजूद, जीवन का सबसे अहम सबक है कि हमें कभी हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। उन्होंने कहा, "कभी सपने देखना मत छोड़िए और भले ही आपका जीवन या कोई क्षण कितना ही कठिन क्यों ना हो, हिम्मत ना हारें, और लड़ाई जारी रखें।"
अन्य शरणार्थी एथलीट में सीरिया के इब्राहिम अल हुसैन भी हैं। सीरिया में गृहयुद्ध के दौरान 2012 में अपने मित्र को बचाते समय एक विस्फोट में उन्होंने अपना पांव खो दिया। उसके बाद वो एक व्हीलचेयर में ग्रीस चले गए, मगर उनकी जेब खाली थी। इसके बाद उन्होंने एक लम्बा सफर तय किया और यह तीसरी बार है जब इब्राहिम अल हुसैन शरणार्थी पैरालम्पिक टीम का प्रतिनिधित्व करेंगे। वहीं, कैमरून के गिलॉम जूनियर अतनगाना दूसरी बार पैरालम्पिक खेलों की तैयारी में जुटे हैं। इससे पहले, टोक्यो 2020 में 400 मीटर दौड़ में चौथे स्थान पर आए थे।
वह एक बड़े फुटबॉलर बनना चाहते थे, लेकिन अपनी नजरें खो देने के बाद वह एथलीट बनने की दिशा में मुड़ गए। इस साल, वह अपने गाइड और साथी शरणार्थी डोनार्ड न्दिम न्यामुजा के साथ खड़ें होंगे। पैरालम्पिक खेलों में हिस्सा लेने वाले सभी खिलाड़ियों की ये कहानियां, उनके द्वारा झेली गई तमाम विपरीत परिस्थितियों व चुनौतियों को दर्शाती हैं, मगर यह एक प्रेरणा भरा सन्देश भी है कि कुछ भी असम्भव नहीं है।
शरणार्थी पैरालम्पिक टीम की प्रमुख न्याशा म्हाराकुरवा ने बताया कि यह टीम हम सभी के लिए एक प्रतिमान स्थापित करती है। उन्होंने कहा, "उनके लिए हालात भले ही कितने भी कठिन रहे हों, इन एथलीट ने पैरालम्पिक खेलों में सबसे ऊंचे स्तर पर स्पर्धाओं में हिस्सा लेने के लिए अपना रास्ता खोज ही लिया।"

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