राजस्थान का एक ऐसा परिवार जिसमें हैं 12 पीटीआई
विजेन्द्र सिंह नरुका गरीब बेटियों को देते हैं हॉकी का प्रशिक्षण
सभी भाई अलग-अलग जगहों पर गरीब परिवार के बच्चों को देते हैं ट्रेनिंग
खेलपथ संवाद
अलवर। राजस्थान के अलवर जिले में एक ऐसा परिवार है जोकि पूरी तरह खेलों को समर्पित है। इस परिवार में एक दर्जन फिजिकल एज्यूकेशन टीचर हैं जोकि विभिन्न स्कूलों में छात्र-छात्राओं को शारीरिक शिक्षा की तालीम दे रहे हैं। इसमें विजेन्द्र सिंह नरुका ऐसे हैं जोकि पुश्तैनी खेल हॉकी को पूरी तरह से समर्पित हैं। इनसे प्रशिक्षण प्राप्त 50 से अधिक गरीब हॉकी बेटियां अपने जिले और राज्य का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं।
अलवर शहर के पास बसे खुदनपुरी गांव के राजकीय स्कूल में पीटीआई पद पर कार्यरत विजेंद्र सिंह नरुका लगभग 12 साल से लड़कियों को हॉकी के गुर सिखा रहे हैं। उनसे प्रशिक्षण पाने वाली 50 से ज्यादा लड़कियां विभिन्न स्टेट व नेशनल प्रतियोगिताओं में अलवर का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं। लड़कियों को खेल के मैदान में आगे बढ़ाने के लिए नरुका को 2019 में राज्यपाल अवॉर्ड से सम्मानित किया गया। इनका कहना है कि लड़कियों को खेलों की बेहतर सुविधाएं मिलें तो वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बना सकती हैं।
नरूका ने करीब 20 साल पहले शारीरिक शिक्षक का प्रशिक्षण लेने के बाद ही ट्रेनिंग देना शुरू कर दिया था। उनके सामने सबसे बड़ी समस्या गरीब परिवार की छात्राओं को खेल के संसाधन उपलब्ध कराने में आई। वर्तमान में इनके पास कोई खेल मैदान नहीं है लेकिन यह गांव कुंदनपुरी के पास सूर्य नगर के एक पार्क में लड़कियों को हॉकी का प्रशिक्षण देते हैं।
विजेंद्र सिंह नरुका का कहना है कि इनके परिवार में 6 भाई हैं। सभी भाई पीटीआई के रूप में राजस्थान के अलग-अलग स्कूलों में कार्यरत हैं। इनके अलावा इनके पूरे परिवार में करीब 12 पीटीआई यानी शारीरिक प्रशिक्षण के विशेषज्ञ हैं। खेलों के प्रति इनके परिवार में शुरू से ही जुनून रहा है। अब सभी भाई अलग-अलग जगहों पर गरीब परिवार के बच्चों को विभिन्न खेलों की ट्रेनिंग देते हैं।
नरुका ने बताया उन्हें बालिकाओं को खेल से जोड़ने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। जब बालिकाओं को खेलते हुए देखकर उन्हें लगा कि ये हॉकी में आगे बढ़ सकती हैं, तब उन्होंने इनके माता-पिता से बात की। लेकिन, लड़कियों के परिजनों ने यह कहकर मना कर दिया कि आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है। विजेंद्र को लड़कियों का साथ मिला और जन सहयोग से हॉकी से संबंधित संसाधन जुटाए। खाली पड़े मैदान को लड़कियों के साथ मिलकर तैयार किया और उन्हें पुश्तैनी खेल का प्रशिक्षण देकर खिलाड़ी बनाया।