प्रशिक्षकों को घर बैठाया, मैदानों में जड़ दिए ताले

यूपी में प्रशिक्षण के लिए परेशान हो रहे नौनिहाल
खिलाड़ियों और अभिभावकों ने मुख्यमंत्री से की शिकायत
खेलपथ संवाद
लखनऊ।
खेलप्रेमी मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज्य उत्तर प्रदेश के अधिकांश क्रीड़ांगनों में एक फरवरी से ताले जड़े हुए हैं। इसका कारण खेल निदेशालय और आउटसोर्सिंग कम्पनियों के बीच हुआ तीन साल का अनुबंध समाप्त होना बताया जा रहा है। अनुबंध समाप्ति के बाद प्रदेश भर के प्रशिक्षक बेरोजगार हो गए। प्रशिक्षक न होने से अधिकारियों ने खेल मैदानों में ताले जड़ दिए। अब नौनिहाल न केवल खेल प्रशिक्षण से वंचित हो रहे हैं बल्कि कुछ बच्चों और उनके अभिभावकों ने इसकी शिकायत मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी की है।
सूत्रों से मिली जानकारी के अनुसार राजधानी लखनऊ के कुछ बच्चों और उनके अभिभावकों ने खेल मैदानों में ताले बंद किए जाने की शिकायत मुख्यमंत्री से की है। इस मामले की जांच भी शुरू हो चुकी है। जांच की आंच से कुछ खेल अधिकारी बहुत परेशान हैं, उन्हें यह नहीं सूझ रहा कि आखिर क्या जवाब दें। यह समस्या अकेले लखनऊ की नहीं बल्कि समूचे उत्तर प्रदेश की है। आउटसोर्सिंग से तैनात रहे विभिन्न खेलों के प्रशिक्षक अब घर बैठे हैं। दुखद तो यह कि अधिकांश खेल प्रशिक्षकों को मुम्बई की आउटसोर्सिंग कम्पनी ने दो माह का मानदेय भी नहीं दिया है। खेल निदेशालय इस मामले से जहां अपना पल्ला झाड़ चुका है वहीं उसकी समझ में यह नहीं आ रहा कि आखिर वह प्रशिक्षकों के बिना एक अप्रैल से प्रशिक्षण शिविर कैसे शुरू करेगा। प्रशिक्षक नहीं होने से होनहार खिलाड़ी परेशान हैं। इस मामले में किसी के पास कोई ठोस जवाब नहीं है। अब नए सत्र का प्रशिक्षण लोकसभा चुनाव के बाद ही सम्भव दिख रहा है।
विभागीय नियमों के अनुसार, एक अप्रैल से नया खेल सत्र प्रारम्भ हो जाना चाहिए लेकिन सूत्र बताते हैं कि खेल निदेशालय को जिन आउटसोर्सिंग एजेंसियों के माध्यम से प्रशिक्षकों की तैनाती करनी है, उनसे अभी अनुबंध प्रक्रिया ही पूरी नहीं हुई है। पिछली दोनों एजेंसियों से खेल निदेशालय का तीन साल का अनुबंध इसी वर्ष पूरा हो चुका है। ऐसे में नई एजेंसी के चुने जाने के बाद ही प्रशिक्षकों की तैनाती हो सकती है। खिलाड़ियों व खेल के जानकारों का मानना है कि इधर लोकसभा चुनाव के लिए आचार संहिता लग जाने के बाद इन विभागीय प्रक्रियाओं पर असर पड़ेगा। ऐसे में प्रशिक्षकाें की तैनाती में जितना देरी होगी, खिलाड़ियों को इसका उतना ही नुकसान उठाना पड़ेगा।
इस मामले में खेलप्रेमियों का कहना है कि प्रशिक्षकों की देखरेख में ही खिलाड़ी निखरता है। प्रदर्शन के दौरान वह हर खिलाड़ी पर बारीक नजर रखता है और हर कमी पर उसे टोकता है। बिना प्रशिक्षक के अभ्यास करना खिलाड़ियों के आत्मविश्वास को कमजोर बनाता है। खिलाड़ियों का लम्बे समय तक प्रशिक्षण प्रभावित न हो, इसके लिए जल्द से जल्द सभी खेलों के प्रशिक्षकों की तैनाती की जानी चाहिए। इस मामले में खेल निदेशालय के जवाबदेहों का कहना है कि प्रशिक्षण शिविरों की समाप्ति 31 जनवरी को ही कर दी गई थी। अब नए सत्र का शुभारम्भ खेल निदेशालय प्रशिक्षकों की तैनाती के बाद ही कर सकेगा। 

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