चुनावी दौर में भारत रत्न की बहार

देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की गरिमा बनी रहना जरूरी
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
लोकसभा चुनाव से पहले इस समय देश में भारत रत्न की बहार आई हुई है। देश का सर्वोच्च सम्मान मिलना हर किसी के लिए गर्व की बात होती है लेकिन इसकी गरिमा बनी रहे इसका ख्याल भी सरकार को करना होगा। इसमें दो राय नहीं, भारत रत्न देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान है। जिन व्यक्तियों ने देश के लिये असाधारण योगदान राजनीतिक, सामाजिक व आर्थिक क्षेत्र में दिया हो, उन्हें इस सम्मान का हकदार माना जाता रहा है।
निश्चित रूप से केंद्र सरकारें अपनी विचारधारा और राजनीतिक सुविधा से पुरस्कारों की घोषणा करती रही हैं। पिछले दिनों बिहार में सामाजिक क्रांति के अगुवा रहे कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने की घोषणा की गई थी। फिर अयोध्या में राम मंदिर में प्राण प्रतिष्ठा के बाद मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे लालकृष्ण आडवाणी को पुरस्कार दिया गया। शुक्रवार को प्रधानमंत्री ने सोशल मीडिया के जरिये किसान नेता और पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, कांग्रेस नेता और पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव और कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिए जाने की जानकारी दी।
इस साल अब तक पांच लोगों को भारत रत्न दिये जाने की घोषणा की जा चुकी है। सोशल मीडिया पर बधाई देने वालों का तांता लगा है लेकिन लोग यह भी सवाल उठा रहे हैं कि कितने लोगों को एक साल में भारत रत्न पुरस्कार दिया जा सकता है। कहा जा रहा है कि नियम के अनुसार एक साल में अधिकतम तीन लोगों को ही भारत रत्न से सम्मानित किया जा सकता है। ऐसे में प्रश्न उठाए जा रहे हैं कि क्या इस संबंध में सरकार ने नियमों में कतिपय बदलाव किये हैं या फिर इन्हें किसी दूसरे वर्ष में सम्मानित करने का फैसला किया गया है। निस्संदेह, भारत रत्न सर्वोच्च नागरिक सम्मान है और इसकी अपनी गरिमा और प्रतिष्ठा है। जिनके असाधारण प्रयासों से देश को लाभ हुआ हो उन्हीं को इस पुरस्कार के योग्य माना जाता है। उल्लेखनीय है कि वर्ष 1999 में नियम से हटकर चार बड़ी हस्तियों को भारत रत्न के लिये चुना गया था। फिलहाल, विपक्षी दल पुरस्कार की घोषणा के राजनीतिक निहितार्थों की बात कर रहे हैं।
राजनीतिक पंडितों का कहना है कि केंद्र सरकार ने पुरस्कारों के जरिये विभिन्न राज्यों में राजनीतिक समीकरणों को साधा है। चुनावी साल में पांच हस्तियों को देश के सबसे बड़ा नागरिक सम्मान दिये जाने के राजनीतिक निहितार्थ देखे जा रहे हैं। निस्संदेह किसानों के नेता व पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह का जाट समाज में खासा प्रभाव रहा है। यह फैक्टर पश्चिमी उत्तर प्रदेश, हरियाणा, राजस्थान व दिल्ली की जाट बहुल सीटों को प्रभावित कर सकता है। इसे चौधरी चरण सिंह की राजनीतिक विरासत संभाल रहे जयंत चौधरी के भाजपा से जुड़ाव की कवायद के रूप में भी देखा जा रहा है। वहीं पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव को भारत रत्न देकर यह दर्शाने का प्रयास किया कि भाजपा कांग्रेस के पूर्व नेतृत्व को पूरी तरह खारिज नहीं करती। 
राव को मरणोपरांत यह सम्मान देकर भाजपा ने दक्षिण भारत के मतदाताओं को भी प्रभावित करने का प्रयास ही किया है। कृषि क्रांति के सूत्रधार एमएस स्वामीनाथन के असाधारण योगदान पर कोई प्रश्न नहीं उठाया जा सकता। भले ही पुरस्कार की टाइमिंग को लेकर सवाल उठे हों। निस्संदेह पुरस्कार के जरिये दक्षिण भारतीय प्रतिभा को प्रतिष्ठा देने की कोशिश हुई है। जिसको चुनावी वर्ष में दक्षिण के मतदाताओं को प्रभावित करने के तौर पर देखा जा सकता है। यह सर्वविदित है कि किसानों ने पिछले कुछ वर्षों में कृषि सुधारों को लेकर लंबे आंदोलन चलाए हैं। इस कदम को किसानों को संतुष्ट करने के प्रयासों के तौर पर देखा जा रहा है। 
वहीं भाजपा व मंदिर आंदोलन के सूत्रधार रहे पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी को भारत रत्न तब दिया गया जब विपक्ष द्वारा प्राण प्रतिष्ठा समारोह में पूर्व दिग्गजों की अनुपस्थिति को लेकर सवाल उठाये गए थे। पार्टी ने इसके जरिये न केवल अपने मतदाताओं को संदेश दिया बल्कि यह जताने का प्रयास भी किया कि वह अपने सीनियर नेताओं का सम्मान करती है। वहीं बिहार में पूर्व मुख्यमंत्री कर्पूरी ठाकुर को यह सम्मान देने की मंशा वंचित समाज में पैठ बनाने के रूप में देखा गया। बिहार में सत्ता परिवर्तन को इसकी तात्कालिक प्रतिक्रिया के रूप में देखा गया। निस्संदेह, देश के सर्वोच्च नागरिक सम्मान की गरिमा बनी रहनी चाहिए। 

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