अयोध्या के जयप्रकाश सिंह को एक अदद नौकरी की दरकार

मास्टर्स एथलेटिक्स में जीता स्‍वर्ण पदक, पर नहीं मिला कोई प्रोत्साहन
खेलपथ संवाद
अयोध्या।
एक तरफ उत्तर प्रदेश सरकार प्रदेश के खिलाड़ियों को मोटी रकम और नौकरी देकर जहां प्रोत्साहित कर रही है वहीं दूसरी तरफ जयप्रकाश सिंह जैसा जांबाज एथलीट समूची दुनिया में प्रदेश का गौरव बढ़ाने के बावजूद मुफलिसी में जी रहा है। जय प्रकाश सिंह को यदि प्रदेश सरकार एक अदद नौकरी और कुछ आर्थिक मदद कर दे तो यह एथलीट उत्तर प्रदेश को खेलों में उत्तम प्रदेश बनाने की दिशा में बहुत कुछ कर सकता है।
जयप्रकाश सि‍ंह की जहां तक बात है यह अयोध्या के रेटिया में गुरबत के दौर से गुजर रहा है। यह जांबाज गरीबी में पला-बढ़ा यहां तक कि उसने लिफाफे तक बेचे और पेट की आग बुझाने को लंगर का सहारा लिया। बावजूद इसके मजबूत इरादों के दम पर उसने दो साल पहले ओमान की राजधानी मस्कट में हुई मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में वाक रेस में गोल्ड मेडल जीतकर देश का गौरव बढ़ाया है। जयप्रकाश सि‍ंह ने पुरुषों की 35 से 39 आयुवर्ग की मास्टर्स एथलेटिक्स चैम्पियनशिप में स्वर्णिम सफलता हासिल की थी। मास्टर्स एथलेटिक्स फेडरेशन आफ इंडिया की ओर से हिस्सा लेने वाले जयप्रकाश ने यूपी को पहली बार गोल्ड दिलाया था, इससे पहले बनारस की नीलू ने कांस्य पदक जीता था।
जयप्रकाश ने पिता जगदम्बा प्रसाद के कहने पर वर्ष 1999 में गांव में बने अखाड़े में कदम रखा था। चूंकि इसका रुझान एथलेटिक्स में था सो दो साल बाद ही वह पहलवानी से दूर हो गया। वर्ष 2001 से 2004 तक जयप्रकाश राजकीय स्टेडियम फैजाबाद अयोध्या में एथलेटिक्स कोच रहे राकेश शर्मा से प्रशिक्षण लेते रहे। इसके बाद एक चैम्पियनशिप में जयप्रकाश की मुलाकात एथलेटिक्स के कोच रहे मानसि‍ंह से हुई। मान सि‍ंह 2004 से लेकर 2008 तक उनको निखारने में जुटे रहे। इस दौरान जयप्रकाश ने स्टेट लेवल की कई प्रतियोगिताओं में बेहतरीन प्रदर्शन किया। और मेडल जीते।
जयप्रकाश एड़ी में लगी चोट के कारण 2008 से 2014 तक किसी भी प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं ले सका। इससे निराश जयप्रकाश ने 2014 में पंजाब की तरफ रुख किया। यहां उनका सहारा बने बाबा धर्म सि‍ंह। बाबा के घर में रहते हुए जयप्रकाश लिफाफा बनाकर बेचते थे। इससे मिले पैसों से खाना, जूता व किट खरीदते थे। इस दौरान कई बार ऐसा हुआ जब जयप्रकाश के पास न तो पैसे होते थे और न ही खाने को रोटी तो वह गुरुद्वारे में जाकर अपना पेट भरते थे। जयप्रकाश यहां पर दो साल गुजारने के बाद भोपाल चले गए। यहां पर सुरेंद्र पाल से इन्होंने ट्रेनि‍ंग ली।
वर्ष 2016 में जयपुर में एक ट्रायल चल रही थी इससे रियो ओलम्पिक का टिकट मिलना था, लेकिन इस ट्रायल में जयप्रकाश आठवें नम्बर पर रहे। जयप्रकाश ने बताया कि देश के लिए पदक जीतने का सपना शुरू से था, लेकिन सपोर्ट न मिलने से पीछे रह गए। जयप्रकाश ने 2018 में फिर से वर्ल्‍ड चैम्पियनशिप की तैयारी की लेकिन सकारात्मक परिणाम नहीं मिलने से निराश हो गए। वर्ष 2019 में चेन्नई में हुई चैम्पियनशिप में भी हिस्सा लिया लेकिन चयन नहीं हुआ। लगातार तीन बार नकारात्मक परिणाम आने के बाद थोड़ी निराशा जरूर हुई, लेकिन हार नहीं मानी और 2020 -21 में लगातार जमकर अभ्यास किया। इसका परिणाम यह हुआ कि उसने 2022 में मास्टर ग्रुप में गोल्ड जीत लिया।  
जयप्रकाश के जीवन में कई मुश्किलें हैं, लेकिन हौंसले बुलंद हैं। देश के लिए मेडल जीतने के लिए 38 साल की उम्र में भी एथलेटिक्स की प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे हैं। माता-पिता की बीमारी के कारण मौत के बाद घर का सारा बोझ जयप्रकाश के कंधों पर है। वह विवाहित बहन, छोटे भाई और छोटी बहन की जिम्मेदारी भी उठाते हैं। जयप्रकाश के घर की स्थिति अच्छी नहीं होने के चलते वह बहुत परेशान हैं। जयप्रकाश सिंह देश के पहले ऐसे एथलीट हैं, जिन्होंने 35 साल से अधिक आयु वर्ग की प्रतियोगिता में देश को पहला गोल्ड मेडल दिलाया। जयप्रकाश को फिलवक्त आर्थिक मदद की दरकार है। अगर योगी आदित्यनाथ सरकार की तरफ से उसे थोड़ी आर्थिक मदद मिल जाए, तो वह और भी बेहतर प्रदर्शन कर सकता है। इस जांबाज एथलीट को उत्तर प्रदेश सरकार से बहुत उम्मीदें हैं। अब देखना यह है कि प्रदेश कब जयप्रकाश सिंह की सुध लेती है।

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