जाने-माने कवियों ने जी.एल. बजाज में जमाया रंग

काव्य-पाठ पर जमकर झूमे छात्र-छात्राएं

मथुरा। उत्तर प्रदेश के जाने-माने कवियों कांची सिंघल (श्रृंगार रस), लटूरी लट्ठ (हास्य रस) तथा मोहित सक्सेना (वीर रस) ने जी.एल. बजाज ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस मथुरा में अपने सस्वर काव्य-पाठ से ऐसा रंग जमाया कि हर प्राध्यापक, विद्यार्थी और कर्मचारी लगभग तीन घंटे तक झूमता नजर आया। कवि सम्मेलन का शुभारम्भ संस्थान की निदेशक प्रो. (डॉ.) नीता अवस्थी ने कवियों का स्वागत करते हुए किया।

जी.एल. बजाज मथुरा द्वारा आयोजित कवि सम्मेलन में वाणी के सरताजों ने जहां ब्रज की खूबियों का बखान किया वहीं देश के वीर जवानों शहीद विक्रम बत्रा, नारी शक्ति व अन्य सामाजिक विकृतियों पर तंज भी कसे। कवि सम्मेलन का संचालन कांची सिंघल ने किया। उन्होंने सरस्वती वन्दना के साथ-साथ नारी शक्ति पर अपनी स्वरचित कविताएं सुनाईं। संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी ने कहा कि एक कवि अपनी रचनाओं के माध्यम से न सिर्फ मौजूदा सामाजिक परिवेश को इंगित करता है बल्कि कई कमियों को भी अपनी रचना के माध्यम से उजागर करता है। उन्होंने कहा कि मंजिलें उनको मिलती हैं, जिनके सपनों में जान होती है। पंखों से कुछ नहीं होता, हौसलों से उड़ान होती है।

कवि मोहित सक्सेना का काव्य-पाठ शहीद विक्रम बत्रा तथा नारी शक्ति को समर्पित रहा। उन्होंने नारी शक्ति को बढ़ावा देने का आह्वान किया। उन्होंने कहा- मां भारती के भाव पर जब कील गाड़ी जा रही हो, और कुरुसभा में रोज पांचाली उघाड़ी जा रही हो। तो दुशासनों का रक्षक फाड़ें क्यूं नहीं, सिंहनी के पुत्र हैं तो हम दहाड़े क्यूं नहीं। उन्होंने अपनी अगली कविता में कहा- जो भाई अपने भाई के काम नहीं आते, कुत्ते भी ऐसे कायर का मांस नहीं खाते।

कवयित्री कांची सिंघल ने श्रृंगार रस तथा नारी शक्ति पर कविताएं और कुछ गजलें पेश कीं। उन्होंने कहा- मोहब्बत की मेरे बच्चों अलग तासीर होती है, ये कच्ची डोर की मजबूत एक जंजीर होती है। लहू आंखों से बहता है, जुबां पर उफ नहीं होती, मोहब्बत की बस एक अजब तस्वीर होती है। उन्होंने अपनी दूसरी कविता में कहा- वो मुझसे प्यार करता है, मगर कहने से डरता है। कभी फरियाद करता है, कभी आहें वो भरता है।

हास्य कवि लटूरी लट्ठ ने कहा कि जीवन में हंसना बहुत महत्वपूर्ण है। हमें सफलता प्राप्ति के लिए अपने बड़ों का अनुसरण करना चाहिए। साथ ही उन्होंने छात्र-छात्राओं से मोबाइल का कम से कम उपयोग करने की सलाह दी। उन्होंने कहा- प्रेमवती रूपवती गुणवती अधिक मतवाला मन को भाय गई, हम आंखन बीच फंसे ऐसे हमें आंखन को रोग लगाय गई। चंचितवंचा हाथचतउ नैनों के तीर चलाय गई, फिर प्यार का पैक लगाय करके दिल में तूफान उठाय गई, हमसे वादा था शादी का, चाची बन घर में आय गई। अंखियन अंखियन बतलाय गई, फिर आंख की डोर लगाय गई, उन आंखन से उभरें कैसे, इन आंखन बीच समाय गई, अब ये आंखें ढूंढ़ रही वाको जो जूतों से पिटवाय गई। कार्यक्रम का संचालन डॉ. सताक्षी मिश्रा ने किया। अंत में संस्थान की निदेशक प्रो. नीता अवस्थी ने कवियों को स्मृति चिह्न भेंटकर उनका आभार माना।

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