भारतीय हॉकी बेटियों ने पिज्जा और चाय-मिठाई से बनाई दूरी

कप्तान सविता पूनिया और अन्य खिलाड़ियों का एशियाड में स्वर्ण जीतना है लक्ष्य

खेलपथ संवाद

नई दिल्ली। 19वें एशियाई खेलों में भारत को स्वर्ण पदक दिलाने के वास्ते हॉकी बेटियों ने पिज्जा और चाय-मिठाई से दूरी बना ली है। भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान सविता पूनिया के कंधों पर एशियाई खेलों में 41 साल से देश के खिताबी सूखे को खत्म करने का भार है। महिला हॉकी टीम ने पिछली बार इन खेलों में स्वर्ण पदक 1982 में जीता था और तब टीम पहली बार इन खेलों में खेली थी।

अब एशियाई खेल 23 सितम्बर से चीन के हांगझोऊ शहर में आयोजित होंगे। सविता ही नहीं टीम की अन्य खिलाड़ी भी इन खेलों में देश को स्वर्ण जीतने के लिए कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती हैं। खिलाड़ियों ने स्वर्ण के लिए अपनी फिटनेस को प्राथमिकता देने के लिए खाने की चीजों से दूरी बना ली। गोलकीपर और कप्तान सविता ने इन खेलों में अपनी फिटनेस को प्राथमिकता देने के लिए पिज्जा और गोल-गप्पे खाने भी छोड़ दिए। उन्होंने कहा, ‘हमने तय किया है कि फिटनेस के लिए एशियाई खेलों तक कुछ चीजें छोड़ेंगे। मुझे पिज्जा और गोलगप्पे बहुत पसंद हैं, लेकिन मैंने प्रण किया है कि अब एशियाई खेलों तक नहीं खाऊंगी। मैं 2009 से 2018 तक बेरोजगार रही, लेकिन परिवार ने पूरा साथ दिया और मैंने अपना खेल प्रभावित नहीं होने दिया।’

हरियाणा की सविता कई वर्षों तक बेरोजगार रही थीं। उन्होंने कहा, ‘मुझे 2018 में अर्जुन पुरस्कार मिला तो मेरी मम्मी बोली कि अब नौकरी मिल जाएगी। मेरे लिए यह बहुत मुश्किल दौर था। 2014 एशियाई खेल में पदक था, 2016 में ओलम्पिक खेली और 2017 एशिया कप में पदक था, लेकिन नौकरी नहीं मिली। फिर 2018 में जब भारतीय खेल प्राधिकरण में ओलम्पियन के लिए नौकरी निकली थी तब मैंने सहायक कोच के रूप में जुड़ी थी।’

सविता अप्रैल में शादी के बाद पांचवें दिन ही शिविर में लौट आई थीं। वह अलग टाइम जोन होने के कारण विदेश में बसे अपने पति से फोन पर भी कम बात कर पाती हैं। उन्होंने कहा, ‘इस साल पांच अप्रैल को मेरी शादी हुई थी। लेकिन उसके बाद से सात दिन ही पति के साथ रही हूं। शादी के पांच दिन बाद ही मैं शिविर में आ गई थी।’ मैंने उनसे (पति) कहा है कि मैं बात करने की जिद भी करूं तो आप याद दिलाओगे कि फोन बंद करना है क्योंकि अगले दिन सुबह अभ्यास होता है। कई बार बहुत बातें करने का मन करता है, लेकिन खुद से वादा किया है कि एशियाड तक ऐसा नहीं करना है।’

हरियाणा की मिडफील्डर नेहा गोयल ने अपनी मां को 800 रुपये के लिए महीने भर साइकिल की फैक्ट्री में दिन-रात मजदूरी करते देखा। उन्होंने कहा कि परिवार को इस हालात से बाहर निकालने के लिए हॉकी का खेल जरिया बना। उन्होंने कहा, ‘स्कूल में जूते और कपड़ों के लिए मैंने हॉकी खेलना शुरू किया था। मेरी मम्मी और हम सभी साइकिल के पहिए पर तार बांधने का काम करते थे और सौ तार बांधने पर तीन रुपये मिलते थे। महीने के 800 या 1000 रुपये मिलते जिससे घर चलता था। उन्होंने कहा- मुझे अभ्यास के लिए गांव से 10 किलोमीटर दूर जाना पड़ता था और ऑटो के 20 रुपये मांगने में भी शर्म आती थी।’ नेहा को 2015 में रेलवे में नौकरी मिली जिसके बाद उसने बहनों की शादी कराई और अपनी मां का काम करना बंद कराया। नेहा ने कहा, ‘मैंने तय किया है कि एशियाई खेलों तक कोई जंक फूड नहीं खाऊंगी। मुझे पिज्जा पसंद है, लेकिन अब खेलों के बाद ही खाऊंगी।’

झारखंड के खूंटी जैसे नक्सल प्रभावित आदिवासी इलाके से आई अनुभवी डिफेंडर निक्की प्रधान के पास इतने पैसे भी नहीं थे कि वह हॉकी स्टिक खरीद सके। लेकिन उन्होंने हार नहीं मारी और बांस को छीलकर स्टिक बनाई व खेलना शुरू किया। निक्की ने कहा, ‘हमारे गांव में खेल का मैदान नहीं था और अब भी नहीं है। स्टिक खरीदने के पैसे नहीं थे तो बांस छील कर खेतों या सड़क पर हॉकी खेला करते थे। मैं 2016 में रियो ओलम्पिक खेली और अब पेरिस में पदक तक का सफर तय करना है। इसके लिए हम एशियाई खेलों के जरिये ही सीधे क्वालीफाई करने की कोशिश करेंगे।’ चाय की शौकीन निक्की दिन में आठ से दस कप पी जाती थीं, लेकिन अब अपनी इस आदत से उन्होंने दूरी बना ली। निक्की ने कहा, ‘मैं बहुत चाय पीती थी। जब मिल जाए तब, लेकिन अब मैंने एशियाई खेलों के बाद ही पीने का फैसला किया है।’

ओडिशा की दीप ग्रेस इक्का एशियाई खेलों तक मिठाई नहीं खाएंगी। उन्होंने कहा, ‘मुझे मीठा पसंद है, लेकिन अब नहीं खा रही हूं। हम सभी का ध्यान पूरी तरह से एशियाड पर है। मैंने सुंदरगढ़ में हॉकी का गौरव देखा है और ओलम्पिक पदक के साथ मैं इसका हिस्सा बनना चाहती हूं। परिवार का, अपने जिले का और देश का नाम रोशन करना चाहती हूं।’

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