पंजाब की जवानी पर नशे का हमला

तीन करोड़ आबादी में 66 लाख नशैलची
खेलपथ संवाद
चंडीगढ़।
पंजाब पर नशे का भूत सवार है। नशा ही समृद्ध राज्य को खोखला कर रहा है। यह खतरा भयावह है लेकिन पंजाब सरकार बड़ी मछलियों पर शिकंजा कसकर युवाओं का भविष्य बचा सकती है। प्रदेश के लोगों को नशे से बचाया जाना जरूरी है क्योंकि पंजाब की जवानी को नशा खाए जा रहा है।
पंजाब में लगातार बढ़ते नशीली दवाओं के शिकंजे का खतरा जितना भयावह है, हम उसका अंदाजा नहीं लगा पा रहे हैं। ऐसे वक्त में जब नशीली दवाओं के सेवन करने वाले वयस्कों, युवाओं व बच्चों की संख्या निरंतर बढ़ रही है तो इस संकट की घातकता को खत्म करने के लिये समस्या की जड़ पर प्रहार करना जरूरी होगा। बीते गुरुवार को लोकसभा में सामाजिक न्याय और आधिकारिता पर स्थायी संसदीय समिति द्वारा पेश की गई रिपोर्ट बेहद चिंताजनक तस्वीर उकेरती है। 
इस रिपोर्ट के आंकड़े विचलित करने वाले हैं। रिपोर्ट का सबसे चिंताजनक पहलू यह है कि पंजाब व हरियाणा देश के सबसे अधिक नशीले पदार्थों का सेवन करने वाले राज्यों में शामिल हुए हैं। वहीं चंडीगढ़ को सर्वाधिक नशीले पदार्थों के सेवन करने वाले केंद्र शासित प्रदेशों में तीसरे स्थान पर रखा है। सबसे दुखद व खतरनाक बात यह है कि नशीली दवाओं के सेवन करने वालों में बड़ी संख्या बच्चों की भी है। 
निस्संदेह, पंजाब लम्बे समय से इस सामाजिक बुराई से जूझ रहा है, लेकिन सामने आये हालिया आंकड़े चिंता बढ़ाने वाले हैं। ये आंख खोलने वाले आंकड़े बताते हैं कि तीन करोड़ आबादी वाले पंजाब में करीब 66 लाख से अधिक लोग नशीली दवाओं के सेवन करने वाले हैं। जिसमें 21 लाख लोग अफीम से बने नशीले पदार्थों का सेवन करते हैं।
विडम्बना यह है कि हाल के वर्षों में राज्य में नशीले पदार्थों का सेवन करने वालों लोगों की संख्या आश्चर्यजनक ढंग से बढ़ी है। जो सरकारों के उन दावों को नकारती है कि नशे के खिलाफ बड़े पैमाने पर अभियान चलाये जा रहे हैं। हालिया आंकड़े इस बात पर बल देते हैं कि राज्य सरकार की ओर से मादक द्रव्यों के खिलाफ चलाये जाने वाले अभियानों को युद्ध स्तर पर शुरू करने की जरूरत है। नशा उन्मूलन के खिलाफ जहां सरकारी मशीनरी को चुस्त-दुरुस्त करने की जरूरत है, वहीं समाज में भी जनजागरण अभियान तेज करने की जरूरत है।
असली सवाल यह है कि सरकारों द्वारा नशे के खिलाफ चलाये जाने वाले अभियान के परिणाम जमीनी स्तर पर नजर क्यों नहीं आ रहे हैं। पिछले महीने पंजाब पुलिस ने दावा किया था कि उसके नशीली दवाओं के विरोध में चलाये गये विशेष अभियान के सार्थक परिणाम सामने आ रहे हैं। पुलिस का दावा है कि पिछले एक साल में एनडीपीएस अधिनियम के तहत चलाये गये अभियान में 12,218 प्राथमिकी दर्ज की गई थीं। हालांकि,यह भी एक हकीकत है कि ज्यादातर मामले छोटे-मोटे ड्रग्स तस्करों से संबंधित ही थे। जबकि वास्तविकता यह है कि इस संकट पर काबू पाने के लिये नशीले पदार्थों के कारोबार में लगी बड़ी मछलियों पर शिकंजा कसा जाना जरूरी है। 
इस संकट का एक पहलू यह भी है कि सीमा पार से नशीले पदार्थों का कारोबार बड़े पैमाने पर किया जा रहा है। लगातार ड्रोन भारतीय सीमा में दाखिल होकर नशे की खेप व हथियार गिराते रहते हैं। इतना ही नहीं, भारतीय सीमा से भी ड्रोन नशीले पदार्थों की खेप लेने सीमा पार जाने लगे हैं। हाल ही में बाढ़ की आड़ में पाकिस्तान से लाई गई 77 किलो हेरोइन व हथियारों के साथ चार तस्करों की गिरफ्तारी बताती है कि सीमा पार से कितना बड़ा षड्यंत्र रचा जा रहा है। निस्संदेह, यह पुलिस व खुफिया विभाग की बड़ी कामयाबी भी है। 
अन्यथा यह नशा कितने घरों को बर्बाद करने का जरिया बनता, अंदाजा लगाना कठिन नहीं है। बार-बार पड़ताल से यह बात सामने आती रही है कि नशे के इस खतरनाक कारोबार में कानून लागू करने वालों, तस्करों तथा राजनेताओं का अपवित्र गठबंधन लगातार फल-फूल रहा है। निस्संदेह, इस गठजोड़ को खत्म किये बिना नशीले पदार्थों के खिलाफ चलाया जाने वाला कोई अभियान अपने लक्ष्य को हासिल नहीं कर सकता। आये दिन नशे के अधिक सेवन से युवाओं के मरने की खबरें इस भयावह संकट की ओर इशारा कर रही हैं। यदि नशे के खिलाफ बड़े कदम समय रहते न उठाए गये तो लाखों युवा बर्बादी की राह पर जा सकते हैं।

 

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