महेन्द्र सिंह धोनी ने बदली भारतीय क्रिकेट की तस्वीर

मैदान पर कप्तान धोनी के छह बड़े फैसले
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
दुनिया के सबसे सफल कप्तानों में शुमार टीम इंडिया के पूर्व कप्तान महेंद्र सिंह धोनी आज 42 साल के हो गए। अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले चुके माही अब भी आईपीएल खेल रहे हैं। इस साल उन्होंने अपनी टीम चेन्नई सुपर किंग्स को पांचवीं बार चैंपियन बनाया। हालांकि, उनके अगले सीजन में खेलने पर सस्पेंस है। धोनी कब-क्या फैसला लेंगे ये शायद उनके अलावा कोई और नहीं जानता, जैसे वो मैदान में भी अपने फैसलों से सभी को चौंका देते थे। 
सीमित ओवर क्रिकेट में आईसीसी के सभी टूर्नामेंट जीतने वाले धोनी दुनिया के इकलौते कप्तान हैं। टी-20 विश्व कप (2007), वन-डे विश्व कप (2011) और चैंपियंस ट्रॉफी (2013) के खिताब उनकी झोली में हैं। एक नजर मैदान पर लिए गए उनके कुछ फैसलों पर डालते हैं, जिसने भारतीय क्रिकेट की तस्वीर को ही बदल कर रख दिया।
2011 के वर्ल्ड कप के दौरान धोनी लय में नहीं थे, लेकिन फाइनल मुकाबले में वो युवराज सिंह से पहले नंबर पांच पर बल्लेबाजी करने उतरे। जबकि युवराज ने पूरे टूर्नामेंट के दौरान बेहतरीन खेल दिखाया था। धोनी का यह फैसला सही साबित हुआ। भारतीय कप्तान ने 79 गेंदों पर नाबाद 91 रन बनाए जिसमें आठ चौके और दो छक्के शामिल थे। धोनी ने दबाव में बेहतरीन पारी खेली और भारतीय टीम को 275 रन के लक्ष्य तक पहुंचाकर विश्व चैंपियन बनाया। हाल फिलहाल में श्रीलंका के मुथैया मुरलीधरन से जब पूछा गया कि क्या युवराज से पहले धोनी के आने का फैसला सही था तो उन्होंने कहा बिल्कुल सही था और यह बात उन्हें पता थी। मुरलीधरन ने कहा- मैं जानता था कि धोनी आएंगे, क्योंकि युवराज का रिकॉर्ड मेरे खिलाफ खराब रहा है। वहीं, धोनी ने आईपीएल नेट्स में मुझे कई बार खेला था। 
भारत ने 2007 विश्व टी-20 के फाइनल में पाकिस्तान को 158 रन का लक्ष्य दिया था। पाकिस्तान को आखिरी ओवर में जीत के लिए 13 रन की दकरकार थी और धोनी ने जोगिंदर शर्मा के हाथों में गेंद सौंप दी। जोगिंदर शर्मा ने कमाल दिखाते हुए मिस्बाह-उल-हक का विकेट चटकाकर लक्ष्य का बचाव किया। भारत पांच रन से फाइनल जीत टी-20 का पहला विश्व चैंपियन बना था। अनुभवहीन शर्मा पर भरोसा करने का धोनी का निर्णय एक मास्टरस्ट्रोक था। पाकिस्तान को यह हार आज तक परेशान करती है।
रोहित शर्मा वनडे में मध्यक्रम में खेलते हुए लगातार असफल हो रहे थे। धोनी ने उन्हें सलामी बल्लेबाज के रूप में उतारा और उसके बाद तो रोहित ने बतौर ओपनर तूफान ही मचा दिया। रोहित ने अपने वनडे करियर में तीन दोहरे शतक लगाए हैं और यह उपलब्धि हासिल करने वाले एकमात्र क्रिकेटर हैं। रोहित ने इंग्लैंड में खेले गए 2013 के चैंपिंयस ट्रॉफी से ओपनिंग की कमान संभाली और तब से अपने बल्ले से धूम मचा रहे हैं। अपनी शानदार बैटिंग और भरोसे के दम पर ही आज रोहित टीम इंडिया के कप्तान हैं।
मुरली विजय, रवींद्र जडेजा और सुरेश रैना के शुरुआती दिनों में खराब प्रदर्शन के बावजूद भी धोनी ने इन खिलाड़ियों को बैक किया और भरोसा जताया। तीनों ही खिलाड़ियों ने धोनी की उम्मीद पर पानी नहीं फेरा। विजय ने टेस्ट क्रिकेट में सलामी बल्लेबाज के रूप में खुद को साबित किया और खूब रन बनाए। वहीं, रैना काफी समय तक भारतीय मध्यक्रम का अहम हिस्सा रहे। जडेजा अब तीनों प्रारूपों में भारतीय टीम का एक अहम हिस्सा हैं। वह मौजूदा समय में टीम इंडिया के बेस्ट फील्डर भी हैं। उनकी मैच फिटनेस देखने लायक होती है। वहीं, धवन के करियर में एक ऐसा समय आया था जब वह रन नहीं बना पा रहे थे। हालांकि, इसके बाद भी धोनी ने उन्हें बैक किया और उनका बल्ला चला। धवन कई बार अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में चमकने का श्रेय धोनी को दे चुके हैं। 
साल 2012 में धोनी ने ऑस्ट्रेलिया में सीबी त्रिकोणीय सीरीज के दौरान सचिन तेंदुलकर, वीरेंद्र सहवाग और गौतम गंभीर की तिकड़ी को रोटेट करने का फैसला किया। फील्डिंग भी एक बड़ी वजह थी, लेकिन गंभीर ने संन्यास के बाद इस फैसले पर कहा था कि 'ट्राई सीरीज में वो हम तीनों (सचिन, सहवाग, गंभीर) को एक साथ नहीं खिला सकते क्योंकि उन्हें 2015 वनडे विश्व कप के लिए टीम तैयार करनी है। हालांकि उस सीरीज भारतीय टीम सफल नहीं हो पाई थी, लेकिन धोनी के फील्डिंग को लेकर तब का सख्त रवैया आज की नई और युवा टीम साफ दिखता है। उन्होंने फील्डिंग में चुस्ती के लिए अहम और कड़े फैसले लिए।
2013 के चैंपियंस ट्रॉफी फाइनल में एजबेस्टन की धीमी पिच पर भारत ने इंग्लैंड के सामने 130 रन का लक्ष्य रखा था। इस लक्ष्य का पीछा करते हुए इंग्लैंड को अच्छी शुरुआत मिली थी। धोनी ने इंग्लिश बैटर्स को रोकने के लिए रवींद्र जडेजा और आर अश्विन की अपनी भरोसेमंद स्पिन जोड़ी का इस्तेमाल किया। एक वक्त इंग्लैंड को 18 गेंदों में 28 रन की जरूरत थी। हैरानी की बात यह है कि इस मौके पर कप्तान धोनी ने गेंद ईशांत शर्मा को दी, जो 16वें ओवर में 11 रन दे चुके थे।
यह फैसला किसी के समझ में नहीं आया। मॉर्गन ने इस ओवर में छक्का जड़ा और ईशांत ने दो वाइड फेंके। हालांकि, धोनी की चाल तब सामने आई जब ईशांत ने धीमी गेंद से मॉर्गन को चकमा दे दिया और उन्हें अश्विन के हाथों शॉर्ट मिड विकेट पर कैच कराया। इसके बाद उन्होंने अगली गेंद पर रवि बोपारा का विकेट लिया। दो सेट बल्लेबाजों को आउट कर ईशांत ने भारत की राह थोड़ी आसान कर दी थी। धोनी की सूझबूझ ने टीम इंडिया को चैंपियंस ट्रॉफी में चैंपियन बनाया था।

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