डायबिटीज की चपेट में हिन्दुस्तान, लैंसेट में प्रकाशित रिपोर्ट कर रही परेशान

खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
बहुचर्चित वैश्विक स्वास्थ्य पत्रिका लैंसेट में प्रकाशित, एक व्यापक भारतीय अध्ययन वाली रिपोर्ट परेशान करती है जिसमें भारत में डायबिटीज के दस करोड़ रोगी होने की बात कही गई है। ज्यादा चिंता यह है कि 13.6 करोड़ भारतीय मधुमेह की पूर्व स्थिति में हैं। 
प्री-डायबिटीज श्रेणी के लोगों में से साठ फीसदी के अगले पांच वर्ष में डायबिटीज की चपेट में आने की आशंका होती है। ये आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन के आंकड़ों से कहीं ज्यादा हैं। जो बताते हैं कि भारतीयों की जीवनशैली और खानपान इतना खराब हो चुका है कि देश मधुमेह की राजधानी बनने की स्थिति में पहुंच चुका है। 
आम बोलचाल की भाषा में शुगर की बीमारी कहा जाने वाला यह रोग अब सम्पन्न व शहरी लोगों का ही रोग नहीं रहा बल्कि छोटे शहरों, कस्बों व ग्रामीण क्षेत्रों में तेजी से पांव पसार रहा है। जो बताता है कि हमारे जीवन में श्रम का महत्व लगातार घटता जा रहा है। वास्तव में मधुमेह के रोगियों के शरीर में शर्करा की मात्रा बढ़ने से यह रोग होता है क्योंकि शरीर में इंसुलिन हार्मोन पर्याप्त मात्रा में नहीं बनता है। 
लैंसेट द्वारा प्रकाशित इस हालिया शोध में देश के तमाम राज्यों का सर्वे शामिल है। ये आंकड़े विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा अनुमानित आंकड़े सात करोड़ से कहीं अधिक है। करीब एक दशक तक चले इस सर्वे में प्रत्येक राज्य के बीस साल से अधिक आयु के एक लाख से अधिक लोगों को शामिल किया गया था। देश में सबसे ज्यादा मधुमेह रोगी गोवा, पुडुचेरी में छब्बीस फीसदी व केरल में पच्चीस फीसदी पाये गये। निस्संदेह इसकी मुख्य वजह हमारी जीवन शैली में कृत्रिमता, सुविधाभोगी जीवन , शिथिलता, प्रदूषण, तनाव व खानपान की आदतों में बदलाव आना है। चिंता की बात यह है कि ग्रामीण जीवन में यह रोग पांव पसारने लगा है।
विडम्बना यह है कि जिस रोग को पहले बड़ी उम्र का रोग कहा जाता था, अब वह युवाओं को अपनी चपेट में ले रहा है। चिंता की बात यह भी है कि यह रोग एक साइलेंट किलर की तरह होता है। इसके रोगियों कोे किडनी की बीमारी होने समेत हार्ट अटैक, स्ट्रोक व नेत्र रोग होने की आशंका बढ़ जाती है। यूं तो दुनिया में हर ग्यारह लोगों में एक व्यक्ति मधुमेह से पीड़ित है, लेकिन भारत में इसकी गति अधिक है। दरअसल, हमारी दिनचर्या में शारीरिक श्रम न होने व आरामतलबी के जीवन से इस रोग के प्रसार की ज्यादा संभावना होती है। वास्तव में जीवन की गतिशीलता शूगर की मात्रा को नहीं बढ़ने देती। 
हमारा शरीर खून में मौजूद शुगर की मात्रा को उपयोग कर लेता है। वो इसे हमारी ऊर्जा में बदल देता है। लेकिन यदि हमारा पेंक्रियाज इंसुलिन हार्मोन के जरिये ग्लूकोज का अवशोषण नहीं करता तो यह रोग जन्म लेता है। लेकिन चिंता की बात यह है कि ज्यादातर लोग ऐसे होते हैं जिन्हें पता ही नहीं होता कि वे प्री-डायबिटीज की स्थिति में हैं या टाइप-वन तरह के मधुमेह से पीड़ित हैं। 
आमतौर पर शरीर में ज्यादा थकावट, अधिक प्यास, बार-बार पेशाब लगना, वजन में गिरावट, बार-बार चश्मे का नंबर बदलना या जख्म भरने में ज्यादा समय लगने को इसके सामान्य लक्षण के तौर पर देखा जाता है, लेकिन चिकित्सक नियमित रक्त जांच की सिफारिश करते हैं ताकि समय रहते इसका उपचार किया जा सके। वहीं रोग प्रसार के अनुवांशिक कारणों को लेकर भी चिकित्सक सहमत हैं। खासकर दक्षिण एशियाई लोगों में इस बीमारी का खतरा ज्यादा रहता है। वहीं पर्यावरणीय कारक भी इसके मूल में हैं। चिकित्सक मानते हैं कि जीवन शैली में सुधार, खानपान की आदतों में बदलाव व फास्ट फूड से दूरी रोग से बचाव में मददगार साबित होती है। खासकर सब्जियां, फल, साबुत अनाज व वे खाद्य पदार्थ जिसमें ओमेगा की मात्रा अधिक होती है, उपयोगी होते हैं। वहीं विशेषज्ञ मानते हैं कि सप्ताह में ढाई घंटे का योग, व्यायाम या एरोबिक्स अभ्यास रोग को दूर करने में खासा मददगार होता है। तेजी से टहलना, लिफ्ट के बजाय सीढि़यों का उपयोग व तामसिक चीजों से परहेज हमें स्वस्थ रखने में मददगार होता है।

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