खिलाड़ियों की टीस पर सियासत

श्रीप्रकाश शुक्ला
पहलवानों की लम्बी कवायद के बाद आखिरकार दिल्ली पुलिस ने भारतीय कुश्ती संघ के अध्यक्ष के खिलाफ दो अलग-अलग मामलों में प्राथमिकी दर्ज कर ली है। यह तब हुआ जब उच्चतम न्यायालय ने हस्तक्षेप किया तब। यह कोई अच्छी स्थिति नहीं कही जा सकती कि राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय कुश्ती स्पर्धाओं में पदक जीतने वाली खेल प्रतिभाओं को अपनी मांग को लेकर जंतर-मंतर पर धरने पर बैठना पड़े। यह खेल मंत्रालय और भारतीय कुश्ती महासंघ के लिये भी अच्छा नहीं है कि एक जिम्मेदार पदाधिकारी के खिलाफ यौन दुर्व्यवहार के आरोप लगे हैं। हकीकत जो भी हो, सच्चाई तो सामने आनी ही चाहिए। 
जंतर-मंतर पर महिला पहलवानों के धरने पर विपक्षी राजनीतिज्ञ, सरकार पर हमलावर नेता, खापों व अन्य संगठनों के पदाधिकारिकारियों का जुटना भी मामले की गम्भीरता को दर्शाता है। शीर्ष पहलवानों के सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाने से यथाशीघ्र समाधान की उम्मीद जगी है। बहुत सम्भव है कि भारतीय कुश्ती महासंघ के प्रमुख के खिलाफ लगे आरोपों की नये सिरे से जांच हो। कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को नोटिस भी दिया है कि महासंघ के अध्यक्ष के खिलाफ महिला पहलवानों द्वारा दायर यौन दुर्व्यवहार की शिकायत पर प्राथमिकी दर्ज कर पहलवानों को सुरक्षा मुहैया कराई जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने मामले को गम्भीर बताया है। उल्लेखनीय है कि महिला पहलवानों ने पहले भी इस मामले में आंदोलन किया था। तब इस साल जनवरी माह में खेल मंत्रालय द्वारा जांच के लिये मशहूर बॉक्सर मैरीकॉम की अगुआई में समिति गठित की गई थी। बताया जा रहा है कि इस समिति ने इस माह के पहले सप्ताह में इस बाबत रिपोर्ट सौंप दी है। लेकिन इस संबंध में किसी अंतिम निष्कर्ष की घोषणा न होने से महिला पहलवान क्षुब्ध होकर धरने पर बैठ गयी हैं। जिसके बाद महिला पहलवानों ने राजनीतिक दलों, किसान, खाप व महिला संगठनों से समर्थन मांगा। वहीं दूसरी ओर विवाद के केंद्र में बने महासंघ के प्रमुख इसे व्यक्तिगत रंजिश का मामला कहते हुए खुद को निर्दोष बता रहे हैं। हालांकि, उन्होंने संगठन के आसन्न चुनावों से इसलिये खुद को अलग कर लिया है क्योंकि वे इस पद पर काफी समय से बने हुए थे।
वहीं आंदोलनकारी पहलवानों ने महासंघ के कामकाज में कुप्रबंधन का भी आरोप लगाया है और व्यवस्था में पूरी तरह बदलाव की मांग की है। विडम्बना यह है कि विभिन्न भारतीय खेल संगठनों में दबंग राजनेताओं के वर्चस्व के चलते ऐसे आरोप गाहे-बगाहे लगाये जाते रहे हैं। निस्संदेह, वैश्विक स्तर पर लगातार प्रतिस्पर्धी होते जा रहे खेलों में इस तरह के विवाद खिलाड़ियों की ऊर्जा व एकाग्रता को भंग ही करते हैं। साथ ही भारतीय खेल व्यवस्था की प्रतिष्ठा को भी आंच आती है। दरअसल, ऐसे मामलों में शिकायत निवारण को प्राथमिकता देने तथा पारदर्शी व्यवस्था बनाने की जरूरत है। बहरहाल, प्रकरण में जो भी सच हो, सामने आना ही चाहिए। यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति ही कही जायेगी कि महासंघ के अध्यक्ष पर लगे गंभीर आरोपों को सरकार के स्तर पर गंभीरता से नहीं लिया गया। 
बेहतर होता कि जब खिलाड़ी पहली बार धरने पर बैठे तो शिकायत पर पारदर्शी ढंग से कार्रवाई करके उन्हें संतुष्ट किया जाता ताकि उन्हें फिर से आंदोलन करने की जरूरत न होती। यहां सवाल यह भी है कि बॉक्सर मैरीकॉम की अध्यक्षता में बनी कमेटी ने जब अपनी जांच रिपोर्ट खेल मंत्रालय को सौंप दी है तो सार्वजनिक तौर पर लगाये आरोपों की जांच रिपोर्ट के निष्कर्ष सार्वजनिक क्यों नहीं किये गये? जाहिर है सार्वजनिक रूप से लगे आरोपों पर आई रिपोर्ट पर गोपनीयता बरतना औचित्यहीन ही कहा जायेगा। 
अब यदि पहलवानों की शिकायत व्यक्तिगत दुराग्रह से प्रेरित है तो उसे भी पब्लिक डोमेन में लाया जाना चाहिए। वहीं यदि उनकी शिकायत सही है तो दोषी को दंडित किया जाए। जाहिर है खेल मंत्रालय के समय रहते सक्रिय न होने के कारण ही पहलवानों को फिर से आंदोलन को बाध्य होना पड़ा। निस्संदेह, ऐसे प्रकरण से खेल संगठनों समेत पूरे खेल तंत्र के प्रति देश में अविश्वास पैदा होगा। बहुत सम्भव है कि लोग अपनी बेटियों को खेलों के लिये भेजने में संकोच करने लगें। नीति-नियंताओं के लिये भी यह आत्ममंथन का विषय है कि हमारी महिला खिलाड़ियों के साथ कैसा व्यवहार होता रहा है। साथ ही यह भी कि उनकी शिकायतों को गंभीरता से लेकर समय रहते कार्रवाई होती भी है या नहीं।

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