उत्तर प्रदेश का मान, लांगजम्पर शैली सिंह महान

जूते नहीं खरीद सकी, नंगे पैर दौड़ी और छालों का दर्द सहा
मां विनीता सिंह ने कपड़े सिलकर बेटी के सपनों को कर रहीं पूरा
श्रीप्रकाश शुक्ला
झांसी।
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ खेलों के उत्थान को प्रतिबद्ध हैं, वह चाहते हैं कि प्रदेश की प्रतिभाओं को दूसरे राज्यों की तरफ पलायन न करना पड़े लेकिन खेल निदेशालय के आलाधिकारी सिर्फ घोषणाएं कर प्रतिभाओं का मन बहला रहे हैं। कल भी उत्तर प्रदेश की प्रतिभाएं पलायन कर रही थीं और आज भी यह सिलसिला जारी है। हम आज अपने पाठकों को एक ऐसी होनहार बेटी लांगजम्पर शैली सिंह के बारे में बताएंगे जिसे आर्थिक अभावों के चलते दूसरे राज्य की शरण जाना पड़ा।
शैली सिंह फिलवक्त देश की सबसे बेजोड़ लांगजम्पर है। हाल ही में उत्तर प्रदेश की शैली सिंह ने श्री कांतीरवा स्टेडियम में एएफआई इंडियन ग्रांप्री 4 एथलेटिक्स मीट में महिलाओं की लम्बीकूद में शानदार 6.76 मीटर प्रयास के साथ अपनी आदर्श अंजू बॉबी जॉर्ज के बाद सर्वकालिक दूसरे स्थान की छलांग लगाई। 19 वर्षीय शैली सिंह ने अपने व्यक्तिगत सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन में 28 सेंटीमीटर का सुधार किया और ऐश्वर्य बाबू (6.73), जेजे शोभा और वी. नीना (6.66), मयूखा जॉनू (6.64), एम. प्रजूशा, नयना जेम्स और एंसी सोजन (6.55) को पछाड़कर सिर्फ अंजू बॉबी जॉर्ज से पीछे रहीं। अंजू बॉबी जॉर्ज (6.83 मीटर) भारतीयों के लिए सर्वकालिक सूची में सिरमौर हैं। शैली सिंह ने एशियाई खेलों के लिए तो क्वालीफाई कर लिया लेकिन 2023 विश्व चैम्पियनशिप क्वालीफाइंग मानक से 9 सेंटीमीटर पीछे रह गई।
इस प्रतियोगिता में शैली सिंह का दबदबा इतना सम्पूर्ण था कि उनकी चार वैध छलांगों में से प्रत्येक उनके लिए सोना पाने के लिए पर्याप्त थी, जो नयना जेम्स के 6.53 मीटर के सर्वश्रेष्ठ प्रयास से आगे थी। शैली सिंह ने सीरीज में 6.58 मीटर, फाउल, 6.76 मीटर, 6.64 मीटर, फाउल और 6.66 मीटर की छलांग लगाई। यह कोच बॉबी जॉर्ज के इस दावे का प्रदर्शन था कि उनकी शिष्या देर-सबेर राष्ट्रीय रिकॉर्ड का दावा करने के लिए तैयार है।
उत्तर प्रदेश की 19 वर्षीय शैली सिंह लम्बी कूद की खिलाड़ी है। शैली के नाम जूनियर नेशनल रिकॉर्ड है और लम्बी कूद की कैटेगरी में छह मीटर से अधिक जम्प कर बेहतर प्रदर्शन कर रही है। शैली की उपलब्धियों के पीछे एक लम्बा संघर्ष रहा है। उनकी मां कपड़े सिलकर उन्हें आगे बढ़ा रही हैं। शैली तीन भाई-बहन हैं। शैली ने लम्बे समय तक आर्थिक तंगी का सामना किया पर हार नहीं मानी। वह कहती हैं, उन्होंने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिए झांसी से 1700 किलोमीटर दूर बेंगलुरू का रुख किया है। उन्होंने ऐसा दौर भी देखा है जब एक समय का भोजन मिलना भी मुश्किल था।
शैली ने बताती हैं कि मेरी मां ने मुझे खेलों में कॅरियर बनाने के लिए प्रोत्साहित किया, लेकिन परिवार आर्थिक तंगी से जूझ रहा था। खेल के लिए स्पाइक्स शूज खरीदना तो बहुत दूर था, मैं सामान्य से एक जोड़ी जूते भी खरीद पाने में असमर्थ थी। ऐसे हालात में नंगे पैर ही दौड़ना शुरू किया। नंगे पैर दौड़ने के कारण पैरों में छाले पड़ गए। जब वापस घर लौटती तो मां छालों को देखकर रो पड़तीं। शैली ने इन हालातों में अपने कॅरियर की शुरुआत की, मुश्किल दौर से गुजरीं लेकिन हार नहीं मानी।
शैली का जन्म उत्तर प्रदेश के झांसी जिले में सात जनवरी, 2004 में हुआ। उनकी परवरिश उनकी मां विनीता सिंह ने की। मां विनीता सिंह उस समय चौंक गईं जब बेटी ने एक एथलीट के तौर पर कॅरियर बनाने की बात कही। चौंकना इसलिए लाजमी था क्योंकि शैली जिस जिले में रह रही थी वहां खेलों से जुड़ी ट्रेनिंग और कोचिंग के लिए काफी कमी थी। अब मां के कंधों पर आर्थिक तंगी से जूझ रहे परिवार को चलाने के साथ बेटी के सपनों को पूरा करने की भी जिम्मेदारी थी। उन्होंने बेटी के जुनून और जज्बे को देखते हुए उसके सपनों को पूरा करने का फैसला लिया। कपड़ों को सिलकर होने वाली कमाई से शैली को 14 साल की उम्र में बेंगलुरू ट्रेनिंग के लिए भेजा। शैली अंजू बॉबी स्पोर्ट्स फाउंडेशन में ट्रेनिंग लेने बेंगलुरू पहुंची।
बेटी शैली ने अपनी मेहनत और लगन से सबको चौंकाया। यही वजह है कि अक्सर उसकी तुलना उनकी मेंटर अंजू के साथ की जाती है। वो पहली ऐसी भारतीय एथलीट हैं जिन्होंने वर्ल्ड चैम्पियनशिप में पदक जीता है। शैली सिंह अंडर-18 श्रेणी में शीर्ष 20 खिलाड़ियों में रह चुकी हैं। शैली से देश को बहुत उम्मीदें हैं, उत्तर प्रदेश सरकार इस उदीयमान बेटी की आर्थिक तंगहाली दूर कर उसके सपनों को पंख लगा सकती है। देखना यह है कि खेल निदेशालय इस होनहार बेटी की कितनी मदद करता है।

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