पैसा नहीं देश के लिए खेलने का जज्बा जरूरीः सौरव गांगुली

चार-पांच साल में आर्थिक रूप से मजबूत लीग ही टिकी रह पाएंगी
खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान सौरव गांगुली ने कहा कि खिलाड़ियों का टी-20 लीग को अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट पर तरजीह देना ज्यादा लम्बे समय तक टिकने वाला नहीं है क्योंकि भविष्य में आर्थिक रूप से मजबूत कुछ ही लीग चल सकेंगी। दुनिया भर में टी-20 लीग की बढ़ती संख्या के बीच अब खिलाड़ी देश के लिए खेलने पर फ्रेंचाइजी क्रिकेट को तरजीह देने लगे हैं। बिग बैश लीग के बाद अब यूएई और दक्षिण अफ्रीका में लीग हो रही है।
इसके अलावा साल के आखिर में अमेरिका में भी एक लीग की योजना है। गांगुली ने एक कार्यक्रम के दौरान कहा- हम दुनिया भर में हो रही लीग के बारे में बात करते रहते हैं। आईपीएल बिल्कुल अलग तरह की लीग है। ऑस्ट्रेलिया में बिग बैश लीग भी अच्छा कर रही है और इसी तरह ब्रिटेन में द हंड्रेड ने अच्छा किया। दक्षिण अफ्रीका लीग भी अच्छा कर रही है। ये सभी लीग उन देशों में हो रही हैं जहां क्रिकेट लोकप्रिय है। मेरा मानना है कि आने वाले चार-पांच साल में कुछ ही लीग बची रहेंगी और मुझे पता है कि वे कौन सी होंगी।
बीसीसीआई के पूर्व अध्यक्ष ने कहा- फिलहाल हर खिलाड़ी नई लीग से जुड़ना चाहता है, लेकिन आने वाले समय में उन्हें पता चल जाएगा कि कौन सी लीग महत्वपूर्ण है। ऐसे में देश के लिए खेलने को लीग क्रिकेट पर तरजीह दी जाएगी। उन्होंने क्रिकेट प्रशासन की अहमियत पर जोर देते हुए जिम्बाब्वे का उदाहरण दिया जहां प्रशासनिक कारणों से क्रिकेट का पतन हो गया। उन्होंने कहा- मैं पांच साल बंगाल क्रिकेट संघ का अध्यक्ष रहा और फिर तीन साल बीसीसीआई का अध्यक्ष रहा। मैंने आईसीसी में भी भारत का प्रतिनिधित्व किया और देखा है कि बुनियादी ढांचे और सहयोग से ही खेल संभव है।
उन्होंने कहा कि 1999 में मैंने पहला विश्वकप खेला था। तब जिम्बाब्वे किसी भी टीम को हरा सकती थी। उस समय संभवत: जिम्बाब्वे के पास उतना पैसा नहीं था, यहां तक कि भारत के पास भी ज्यादा पैसा नहीं था। जब वेस्टइंडीज में माइकल होल्डिंग, एंडी राबर्ट्स और जोएल गार्नर थे, तब पैसा नहीं था। खिलाड़ियों के टिके रहने के लिए कुशल प्रशासनिक व्यवस्थाएं जरूरी हैं। यदि खिलाड़ियों और प्रशासन में अच्छे रिश्ते होंगे तो काफी सारी समस्याएं सुलझ जाएंगी। क्रिकेट में अब ज्यादा पैसा है और मेरा मानना है कि पैसा मुद्दा नहीं है। जरूरत इस बात की है कि खिलाड़ियों में देश के लिए खेलने का जज्बा हो।

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