डोपिंग की सजा खिलाड़ी को ही क्यों?

खेलपथ संवाद

नई दिल्ली। 21वीं शताब्दी को वैश्वीकरण, तकनीकी परिवर्तन और कठिन प्रतिस्पर्द्धा का दौर माना जा रहा है। इस प्रतिस्पर्द्धात्मक दौर में कुछ खिलाड़ी प्रतियोगी खेलों में सफल होने के लिए क्षमता बढ़ाने वाले पदार्थों या तकनीक का सहारा ले रहे हैं।  डोपिंग में पकड़े जाने पर उसका करिअर तबाह हो जाता है और वह कहीं का नहीं रहता। खेलों में डोपिंग का बढ़ता चलन सभी खिलाड़ियों, प्रशिक्षकों और स्वास्थ्य क्षेत्र से जुड़े लोगों के लिए एक विचारणीय विषय है। यदि हम अभी नहीं चेते तो खेलो इंडिया झेलो इंडिया बन जाएगा।

गुजरात राष्ट्रीय खेलों में शामिल 10 खिलाड़ी डोप में फंस गए हैं, इनमें सात पदक विजेता शामिल हैं। यह पहली बार है जब लॉन बाउल्स का भी खिलाड़ी डोप में फंसा है। वहीं डोपिंग की पुष्टि के चलते राष्ट्रमंडल खेलों की पदक विजेता जिम्नास्ट दीपा कर्माकर पर 21 माह का प्रतिबंध लगा दिया गया है। वह 11 अक्टूबर, 2021 को बीटा-2 एगोनिस्ट हिगेनामाइन के लिए डोप में फंसी थीं। उनका प्रतिबंध इस साल 10 जुलाई को समाप्त होगा।

गुजरात में 29 सितम्बर से 12 अक्टूबर तक आयोजित राष्ट्रीय खेलों में नाडा की ओर से सैंपलिंग की गई थी। राष्ट्रीय डोप टेस्ट लैबोरेटरी की टेस्टिंग में दो वेटलिफ्टर, दो बार की राष्ट्रमंडल खेलों की स्वर्ण पदक विजेता संजीता चानू, चंडीगढ़ की वीरजीत कौर डोप में फंसी हैं। दोनों ने गुजरात में रजत जीते थे। कुश्ती में 97 किलो में स्वर्ण जीतने वाले हरियाणा के दीपांशु और रजत जीतने वाले रवि राजपाल स्टेरायड मिथेंडियोनॉन के लिए, 100 मीटर में कांस्य जीतने वाली महाराष्ट्र की डियांड्रा स्टेरायड स्टेनोजोलॉल के लिए, लॉन बॉउल में एकल का रजत जीतने वाले पश्चिम बंगाल के सोमेन बनर्जी डाइयूरेटिक्स, एपलेरेनॉन के लिए और फुटबाल का कांस्य जीतने वाली केरल की टीम के सदस्य विकनेश बीटा-2 एगोनिस्ट टरब्यूटालाइन के लिए पॉजिटिव पाए गए हैं।

सात पदक विजेताओं के अलावा साइकिलिस्ट रुबेलप्रीत सिंह, जुडोका नवरूप कौर और वुशू खिलाड़ी हर्षित नामदेव भी डोप में फंसे हैं। इन 10 में से आठ खिलाड़ियों पर अस्थाई प्रतिबंध लगा दिया गया है। विकनेश और सोमेन बनर्जी पर अस्थाई प्रतिबंध नहीं लगा है। उनके नमूने में वाडा की स्पेसीफाइड सूची में शामिल स्टीमुलेंट और बीटा-2 एगोनिस्ट पाए गए हैं।

दीपा कर्माकर की जहां तक बात है अंतरराष्ट्रीय टेस्टिंग एजेंसी (आईटीए) के अनुसार उनका नमूना अंतरराष्ट्रीय जिम्नास्टिक महासंघ की ओर से आउट ऑफ कंपटीशन (टूर्नामेंट से बाहर) लिया गया था। इस मामले को केस समाधान समझौते के तहत सुलझाते हुए उन पर 21 माह का प्रतिबंध लगाया गया है। 11 अक्टूबर, 2021 के बाद से उनके सभी परिणामों को निरस्त कर दिया गया है।

ओलम्पिक खेलों में डोपिंग टेस्ट की शुरुआत वर्ष 1968 के ओलम्पिक से हुई। लेकिन इंटरनेशनल एथलेटिक्स फेडरेशन पहली ऐसी संस्था थी जिसने 1928 में ही डोपिंग को लेकर नियम बनाए थे। वर्ष 1966 में इंटरनेशनल ओलम्पिक काउंसिल ने डोपिंग को लेकर मेडिकल काउंसिल बनाई जिसका काम डोप टेस्ट करना था। वर्ष 1920 में सबसे पहले डोपिंग के अंतर्गत खेलों में कुछ दवाओं पर प्रतिबंध लगाया गया था। डोपिंग में आने वाली दवाओं को पाँच अलग-अलग श्रेणी में बाँटा गया है। स्टेरॉयड, पेप्टाइड हार्मोन, नारकोटिक्स, डाइयूरेटिक्स और ब्लड डोपिंग।

ज्ञातव्य है कि डोपिंग का संजाल सिर्फ भारत में ही नहीं पूरे विश्व भर में फैला हुआ है और इसके चंगुल में विश्व के बड़े-बड़े खिलाड़ी फँस चुके हैं। रियो ओलम्पिक से पहले अंतरराष्ट्रीय खेल पंचाट ने डोपिंग को लेकर रूस की अपील ख़ारिज कर दी थी, जिससे रूस की ट्रैक और फील्ड टीम रियो ओलम्पिक में भाग नहीं ले पाई थी। यहाँ तक कि बीजिंग ओलंपिक 2008 के 23 पदक विजेताओं समेत 45 खिलाड़ी डोप टेस्ट में पॉजीटिव पाए गए थे। बीजिंग और लंदन ओलम्पिक के नमूनों की दोबारा जाँच कराई गई और इसमें कुल 98 खिलाड़ी नाकाम रहे थे।

क्रिकेट में भी कई डोप के मामले सामने आ चुके हैं। ऑस्ट्रेलिया के स्पिनर शेन वॉर्न को 2003 विश्व कप के दौरान डोप टेस्ट में दोषी पाया गया। दक्षिण अफ्रीका में टूर्नामेंट शुरू होने से एक दिन पहले उनके जाँच की रिपोर्ट आई जिसमें वह पॉजिटिव पाए गए और उन्हें वापस भेज दिया गया। उन पर एक साल का प्रतिबंध भी लगा था। पाकिस्तानी तेज गेंदबाज शोएब अख्तर पर भी डोप टेस्ट की गाज गिर चुकी है। वर्ष 2006 में डोपिंग में फंसने के बाद शोएब पर दो वर्ष का प्रतिबंध लगा था। न्यूजीलैंड के पूर्व कप्तान स्टीफन फ्लेमिंग भी डोप टेस्ट के शिकार हो चुके हैं। साल 1993-94 के दौरान फ्लेमिंग डोपिंग में फँसने पर कुछ समय के लिए प्रतिबंधित हुए थे। भारतीय क्रिकेटर पृथ्वी शॉ पर भी डोपिंग का डंक लग चुका है। टीम इंडिया के बल्लेबाज रहे यूसुफ पठान भी 2017 में डोपिंग में फँस चुके हैं। उन्हें भी प्रतिबंधित पदार्थ टरबूटेलाइन लेने के लिए पॉजिटिव पाया गया था। बीसीसीआई ने पठान पर पाँच माह का निलंबन लगाया था।

भारत में पहली बार डोपिंग का खुलासा वर्ष 1968 में हुआ। दिल्ली के रेलवे स्टेडियम में 1968 के मेक्सिको ओलम्पिक के लिए ट्रायल चल रहा था। ट्रायल के दौरान कृपाल सिंह 10 हजार मीटर दौड़ में भागते समय ट्रैक छोड़कर सीढ़ियों पर चढ़ गए, उनके मुँह से झाग निकलने लगा और वह बेहोश हो गए। उनकी जांच में पता चला कि कृपाल सिंह ने नशीले पदार्थ का सेवन किया था, ताकि मेक्सिको ओलम्पिक के लिए क्वालीफाई कर पाएँ। इसके बाद तो भारत में डोपिंग के कई मामले सामने आने शुरू हो गए।

कैसे होता है डोप टेस्ट?

ताकत बढ़ाने वाली दवाओं के इस्तेमाल को जाँचने के लिए डोप टेस्ट किया जाता है। किसी भी खिलाड़ी का किसी भी समय डोप टेस्ट लिया जा सकता है। यह नेशनल एंटी डोपिंग एजेन्सी (नाडा) या वर्ल्ड एंटी डोपिंग एजेन्सी (वाडा) या फिर दोनों की ओर से किया जा सकता है। जांच के पहले चरण को ‘ए’ और दूसरे चरण को ‘बी’ कहते हैं। ए पॉजीटिव पाए जाने पर खिलाड़ी को प्रतिबंधित कर दिया जाता है। यदि खिलाड़ी चाहे तो एंटी डोपिंग पैनल से बी-टेस्ट सैम्पल के लिए अपील कर सकता है। यदि खिलाड़ी बी-टेस्ट सैम्पल में भी पॉजीटिव पाया गया तो उस खिलाड़ी पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है। इस जांच में खिलाड़ियों के मूत्र को वाडा या नाडा की लैब में टेस्ट किया जाता है। नाडा की लैब दिल्ली में है और वाडा की लैब विश्व के अनेक देशों में है।

खिलाड़ी कभी जानबूझकर डोपिंग नहीं लेते: मंजूषा कंवर

भारतीय खिलाड़ी कभी भी जान-बूझकर डोपिंग का सेवन नहीं करते। खिलाड़ी तो सिर्फ खेलना जानता है और जीतना चाहता है लेकिन जब कभी वह प्रतिबंधित दवा के सेवन में पकड़ा जाता है तो पूरा दोष खिलाड़ी का ही माना जाता है और उस पर प्रतिबंध लगा दिया जाता है, जैसा कि रियो ओलम्पिक में भारतीय पहलवान नरसिंह यादव के साथ हुआ।' यह बात भारतीय बैडमिंटन खिलाड़ी रहीं मंजूषा कंवर ने कहीं।

मंजूषा इंडियन ऑइल दिल्ली में मैनेजर के पद पर कार्यरत हैं। उन्होंने कहा कि खिलाड़ी की जीत पर उससे जुड़ी उसकी पूरी टीम (कोच, ट्रेनर, डाइटीशियन) जश्न मनाती है, ठीक उसी तरह डोपिंग में दोषी पाए जाने की सजा सिर्फ खिलाड़ी को मिलती है, टीम को नहीं। ऐसी स्थिति में टीम को भी बदलना चाहिए। 2010 में भारत की चार एथलीटों को डोपिंग के कारण प्रतिबंधित कर दिया गया था। यदि आप इनकी पूरी कहानी पढ़ेंगे तो आंखों में आंसू आ जाएंगे। इनका तो पूरा करियर ही खत्म हो गया...उन्हें मालूम ही नहीं था कि वे क्या ले रहे हैं।

मंजूषा के मुताबिक खिलाड़ी जब इंडिया कैंप में होते हैं तो महीनों तक अपने घरों से दूर रहते हैं। ऐसे में उनका कोच और ट्रेनर ही माता-पिता होता है। भारत में कैंप में रहने वाले खिलाड़ी गरीब तबके से आते हैं और उनका एक ही उद्देश्य होता है कि सीने पर भारत की जर्सी पहनना और पदक जीतकर देश का सम्मान बढ़ाना। चूंकि मैं खुद इंडियन ऑइल में स्पोटर्स कॉर्डिनेटर रही हूं लिहाजा हर खेल के खिलाड़ियों के दर्द को पहचानती हूं। असल में हमारे सिस्टम में सुधार की जरूरत है।

प्रधानमंत्री मोदी ने 2024 के ओलम्पिक में 50 पदक जीतने के लिए 'एक्शन प्लान' बनाया है। इस तरह की प्लानिंग तो बहुत पहले से होनी चाहिए थी। दुनिया भर में सबसे अच्छे प्लान भारत में ही बनते हैं, जरूरत है उनके अमलीकरण की। इस प्लान में हर तीन महीने की रिपोर्ट सामने आनी चाहिए। आप जापान को ही लें, जापान ने पिछले 5-6 सालों से ही बैडमिंटन की शुरुआत की है और रियो ओलम्पिक में उसने बिल्कुल नई टीम भेजी थी और युवाओं से कहा था कि देखकर आओ, क्या माहौल है। असल में उसने 2024 के ओलम्पिक की तैयारी के लिहाज से बैडमिंटन खिलाड़ियों को भेजा था। 

भारत में एकाएक बैडमिंटन की लोकप्रियता का कारण बताते हुए मंजूषा ने कहा कि जब एक खिलाड़ी दूसरे खिलाड़ी को तैयार करता है तो इसमें सफलता जरूर मिलती है। गोपीचंद खुद एक खिलाड़ी रहे हैं और उन्हें सरकार का भी सहयोग मिला और आज साइना नेहवाल और पीवी सिंधु के रूप में ओलम्पिक पदक विजेता हमारे पास हैं। यही फार्मूला चीन, जापान और कोरिया ने भी अपनाया हुआ है। भारत में भी पूर्व खिलाड़ियों का अनुभव नए खिलाड़ियों को आगे बढ़ने में मदद कर सकता है। यही नहीं, कोचिंग के साथ ही ट्रेनर और डाइ‍टीशियन की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है। इन तीनों का होना बेहद जरूरी है।

रिलेटेड पोस्ट्स