प्रतिभाओं की हत्यारी, एसजीएफआई हमारी

खेलपथ संवाद
नई दिल्ली।
स्कूल गेम्स फेडरेशन आफ इंडिया में जारी नूरा-कुश्ती से प्रतिभाओं का काफी नुकसान हो रहा है लेकिन केन्द्रीय खेल मंत्रालय समस्या का समाधान निकालने की बजाय खेलो इंडिया यूथ गेम्स और खेलो इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स का झुनझुना बजा रहा है। केन्द्रीय खेल मंत्रालय के इस बेसुरे राग का कोई विरोध करने वाला दूर-दूर नजर नहीं आ रहा। अलबत्ता सबके सब उसी के सुर में सुर मिला रहे हैं।
दुनिया भर के ओलम्पिक और विश्व चैम्पियन खिलाड़ियों का मानना है कि जिस देश में स्कूली और ग्रासरूट खेलों को बढ़ावा दिया जाता है उन्हें अधिकाधिक पदक जीतने से कोई नहीं रोक सकता। चीन, अमेरिका, जर्मनी, रूस, फ़्रांस, इंग्लैण्ड आदि देशों के अधिकाधिक खिलाडी इसलिए ज्यादातर पदक जीत ले जाते हैं क्योंकि इन देशों का खेल आधार स्कूली खेलों पर टिका है। वैसे अपने देश में में हमारे नेता, अभिनेता और तमाम जिम्मेदार लोग भी इसी प्रकार की बातें करते आ रहे हैं लेकिन सच्चाई यह है कि आज तक देश की किसी भी सरकार ने स्कूली खेलों को प्राथमिकता नहीं दी। नतीजा सामने है, सत्तर से भी ज्यादा खेलों की दुकान चलाने वाले भारत में तीन चार खेलों को छोड़ बाकी का वर्तमान और भविष्य अंधेरे में डूबा है।
हो सकता है देश के कुछ खेल आकाओं और सरकारी पिट्ठुओं को यह बात रास न आए लेकिन यही सच है। वरना क्या कारण है कि पिछले तीन साल से देश की स्कूली खेल गतिविधियां ठप पड़ी हैं? चलिए मान लिया कि कोरोना के चलते साल भर खेल नहीं हो पाए लेकिन अब तो पूरी दुनिया खेल रही है। फिर भारतीय स्कूली खेलों को क्या हो गया है, क्यों हमारे खिलाडी घरों और स्कूल की चारदीवारी में कैद हो गए हैं? इसलिए क्योंकि स्कूल गेम्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसजीएफआई) बीमार है। उसे लूट-खसोट, भ्रष्टाचार और गुटबाजी की बीमारी लग गई है।
सरकार के खेल मंत्रालय को एसजीएफआई की करतूतें पता हैं, फिर भी यदि कोई हल नहीं निकल पा रहा तो इसलिए क्योंकि कई सालों से देश के खेलों को लूटने वालों की जड़ें बहुत मजबूत हैं। कुछ समय पहले यह लड़ाई दिल्ली बनाम आगरा की थी लेकिन सुशील कुमार के जेल जाने के बाद से आगरा अब महाराष्ट्र से भिड़ गया है। दोनों बुरी तरह गुत्थम-गुत्था हैं। एसजीएफआई की तमाम सदस्य इकाइयां मौन हैं और तमाशा देख रही हैं। गुटबाजों के खबरिया बता रहे हैं कि खेल मंत्रालय सब कुछ जानते हुए भी अनजान बना हुआ है। लेकिन यहां खेल मंत्रालय का खेल तब तक नहीं चलने वाला जब तक दोनों धड़े मिल बैठकर अध्यक्ष का चुनाव नहीं करा लेते, जिसकी सम्भावना कम ही नजर आती है।
लेकिन मामला देश के खेल भविष्य और भावी खिलाडियों के भविष्य का है। यह सही है कि खेल मंत्रालय ने खेलो इंडिया का बैनर खड़ा कर कुछ एक स्कूली खिलाड़ियों को अवसर दिया है लेकिन बिना स्कूली खेलों के आयोजन के काम नहीं चलने वाला। अच्छे खिलाड़ी तब ही निकल कर आएंगे जब विधिवत रूप से एसजीएफआई की गतिविधियां शुरू होंगी, जिसकी संभावना नजर नहीं आ रही। एक गुट कह रहा है कि जान-बूझकर मामले को लटकाया जा रहा है क्योंकि आगरा की दिल्ली दरबार में गहरी पैठ है। कुछ एक आरोप लगा रहे हैं कि एसजीएफआई दलगत राजनीति की शिकार हो गई है और कई खेल संघों की तरह स्कूली संस्था भी नेताओं की गुलाम बनने जा रही है। यदि ऐसा हुआ तो भारतीय खेलों की बुनियाद पूरी तरह ढह जाएगी और प्रतिभाएं बेवजह खेल छोड़ने को मजबूर हो जाएंगी।

 

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