भाई के त्याग से बहन बनी अंतरराष्ट्रीय एथलीट

कभी चंदे के पैसे से अन्नू रानी ने खरीदे थे जूते
खेलपथ संवाद
मेरठ।
समय बहुत बलवान होता है। कब किसकी किस्मत पलटी मार जाए नहीं कहा जा सकता। आज हम जिस भालाफेंक खिलाड़ी अन्नू रानी को खेलों का स्टार मानते हैं, अतीत में इस बेटी ने बहुत खराब दौर भी देखा है। आर्थिक तंगहाली के दौर में जब उसके पास भाला नहीं था तब वह गन्ने को ही भाला मानकर अभ्यास करती थी। अन्नू को अंतरराष्ट्रीय एथलीट बनाने में भाई उपेन्द्र का बड़ा हाथ है।
मेरठ से सटे सरधना क्षेत्र के बहादरपुर गांव निवासी अन्नू रानी ने बर्मिंघम में हुए कॉमनवेल्थ गेम्स में जेवलिन थ्रो में कांस्य पदक भारत की झोली में डाला है। अन्नू रानी के मेडल जीतते ही गांव में खुशी का माहौल है। अन्नू का सबसे बेहतरीन प्रयास 60 मीटर का रहा वहीं, ऑस्ट्रेलिया की केल्सी ने 64 मीटर की दूरी के साथ स्वर्ण पदक अपने नाम किया। बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स में एथलीट अन्नू रानी से भाला फेंक प्रतियोगिता में देश को गोल्ड की उम्मीद थी, लेकिन उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
बता दें कि चोटिल होने की वजह से नीरज चोपड़ा ने प्रतियोगिता में हिस्सा नहीं लिया था। ऐसे में पदक का पूरा दारोमदार मेरठ की बेटी अन्नू रानी पर था। अन्नू रानी का अपने खेत की चकरोड़ से बर्मिंघम तक पहुंचने का सफर बेहद दिलचस्प रहा है। जेवलिन क्वीन के नाम से पहचानी जाने वाली अन्नू के संघर्ष की कहानी किसी फिल्मी कहानी से कम नहीं है। गांव की पगडंडियों पर खेलते और गन्ने को भाला बनाकर प्रैक्टिस करने वाली अन्नू एक दिन देश-विदेश में होने वाली प्रतिस्पर्धाओं में देश का प्रतिनिधित्व करेंगी, यह शायद ही किसी ने सोचा होगा, लेकिन अपने संघर्ष और कड़ी मेहनत के दम पर उन्होंने ये कर दिखाया। बर्मिंघम में वह स्वर्ण जीतने के इरादे से मैदान पर उतरी थीं लेकिन उन्हें कांस्य पदक से संतोष करना पड़ा।
अन्नू रानी तीन बहन व दो भाइयों में सबसे छोटी हैं। उनके सबसे बड़े भाई उपेंद्र कुमार भी 5,000 मीटर के धावक थे और विश्वविद्यालय स्तर की प्रतियोगिताओं में हिस्सा भी ले चुके हैं। बड़े भाई के साथ अन्नू रानी ने भी खेल में रुचि दिखाई और सुबह चार बजे उठकर गांव में ही रास्तों पर दौड़ने जाया करतीं। पिता के डर से वह चोरी से अभ्यास करतीं। अन्नू यहां किसी ग्राउंड में नहीं, बल्कि कच्चे संकरे रास्ते जिसे ग्रामीण भाषा में चकरोड कहा जाता है, उस पर दौड़तीं। इसी चकरोड पर गन्ने को भाला बनाकर वह पहले जोर से फेंकतीं। उन्होंने यह प्रयास कई महीनों तक जारी रखा।
अन्नू की खेल में रुचि बढ़ी, तो भाई उपेंद्र कुमार ने उन्हें गुरुकुल प्रभात आश्रम का रास्ता दिखाया। घर से करीब 20 किलोमीटर दूर होने के कारण अन्नू जेवलिन थ्रो का अभ्यास करने के लिए सप्ताह में तीन दिन गुरुकुल प्रभात आश्रम के मैदान में जाती थीं। अन्नू के परिवार की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं थी कि दो खिलाड़ियों पर होने वाले खर्चे को वहन कर सके, इसे देखकर भाई उपेंद्र ने त्याग किया और बहन को आगे बढ़ाने में जुट गए।
उपेंद्र बताते हैं कि अन्नू के पास जूते नहीं थे, चंदे से इकट्ठा की गई रकम से उसके लिए जूते खरीदे। अन्नू ने अपना अभ्यास जारी रखा और जेवलिन थ्रो में बेहतरीन प्रदर्शन किया। अपने ही रिकॉर्ड तोड़कर वह नेशनल चैम्पियन बन गई। इसके बाद अन्नू ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। देश के साथ-साथ मेरठवासी भी उसकी जीत की कामना कर रहे थे।
अन्नू की उपलब्धियां:
2021 - टोक्यो ओलम्पिक में प्रतिभाग। 
2019 -  वर्ल्ड चैम्पियनशिप में फाइनल में जगह बनाने वाली पहली भारतीय महिला का रिकॉर्ड। 
2019 - एशियन चैंपियनशिप में रजत पदक।
2017 - एशियन चैम्पियनशिप में कांस्य पदक। 
2016 - साउथ एशियन गेम्स में रजत पदक। 
2014 - एशियन गेम्स में कांस्य पदक। 

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